"पुष्यमित्र शुंग": अवतरणों में अंतर
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'''पुष्यमित्र शुंग''' [[मौर्य वंश]] को पराजित करने वाला तथा [[शुंग वंश]] (लगभग 185 ई. पू.) का प्रवर्तक था। वह जन्म से [[ब्राह्मण]] और कर्म से [[क्षत्रिय]] था। मौर्य वंश के अन्तिम राजा [[बृहद्रथ मौर्य|बृहद्रथ]] ने उसे अपना सेनापति नियुक्त कर | '''पुष्यमित्र शुंग''' [[मौर्य वंश]] को पराजित करने वाला तथा [[शुंग वंश]] (लगभग 185 ई. पू.) का प्रवर्तक था। वह जन्म से [[ब्राह्मण]] और कर्म से [[क्षत्रिय]] था। मौर्य वंश के अन्तिम राजा [[बृहद्रथ मौर्य|बृहद्रथ]] ने उसे अपना सेनापति नियुक्त कर दिया था। एक दिन जब बृहद्रथ सैन्य प्रदर्शन का निरीक्षण कर रहा था, तभी पुष्यमित्र ने उसे मरवा दिया और वह स्वयं सिंहासन पर बैठ गया। | ||
==शुंग वंश की स्थापना== | ==शुंग वंश की स्थापना== | ||
बौद्ध ग्रन्थ में पुष्यमित्र शुंग को मौर्य वंश का अन्तिम शासक बतलाया गया है, जो कि सन्देहस्पद है। मौर्य साम्राज्य के अन्तिम शासक बृहद्रथ की हत्या करके 184 ई.पू. में पुष्यमित्र ने मौर्य साम्राज्य के राज्य पर अधिकार कर लिया। पुष्यमित्र शुंग द्वारा जिस नये राजवंश की स्थापना की गई, उसे पूरे देश में 'शुंग राजवंश' के नाम से जाना गया। पुष्यमित्र शुंग ने 38 वर्ष तक राज्य किया, यह शासन अवधि किसी भी प्रकार से सरल नहीं थी। पुष्यमित्र का शासनकाल पूरी तरह से चुनौतियों से भरा हुआ था। उस समय [[भारत]] पर कई विदेशी आक्रान्ताओं ने आक्रमण किये गए, जिनका सामना पुष्यमित्र शुंग को करना पड़ा। | |||
==अश्वमेध यज्ञ== | ==अश्वमेध यज्ञ== | ||
साम्राज्य पर दक्षिण पूर्व से [[उड़ीसा]] के राजा [[खारवेल]] ने तथा उत्तर से भारतीय [[यवन]] राजा [[मीनेंडर]] ने आक्रमण किया। पुष्यमित्र ने दोनों ही आक्रमणों को सफलतापूर्वक सामना किया और इन्हें विफल कर दिया। उसने विशाल साम्राज्य को खण्डित नहीं होने दिया और अपनी विजयों के उपलक्ष्यों में लम्बे अंतराल के बाद [[अश्वमेध यज्ञ]] का अनुष्ठान किया। अशोक के प्रभाव से अश्वमेध जैसे हिंसाप्रधान यज्ञों की परिपाटी विलुप्त हो गई थी। पुष्यमित्र शुंग ने [[हिन्दू धर्म]] को फिर से जीवित किया और राजभाषा के रूप में [[संस्कृत]] की फिर से प्रतिष्ठापना की। प्रसिद्ध संस्कृत वैयाकरण [[पतंजलि]] उसी के काल में हुए। | साम्राज्य पर दक्षिण पूर्व से [[उड़ीसा]] के राजा [[खारवेल]] ने तथा उत्तर से भारतीय [[यवन]] राजा [[मीनेंडर]] ने आक्रमण किया। पुष्यमित्र ने दोनों ही आक्रमणों को सफलतापूर्वक सामना किया और इन्हें विफल कर दिया। उसने विशाल साम्राज्य को खण्डित नहीं होने दिया और अपनी विजयों के उपलक्ष्यों में लम्बे अंतराल के बाद [[अश्वमेध यज्ञ]] का अनुष्ठान किया। अशोक के प्रभाव से अश्वमेध जैसे हिंसाप्रधान यज्ञों की परिपाटी विलुप्त हो गई थी। पुष्यमित्र शुंग ने [[हिन्दू धर्म]] को फिर से जीवित किया और राजभाषा के रूप में [[संस्कृत]] की फिर से प्रतिष्ठापना की। प्रसिद्ध संस्कृत वैयाकरण [[पतंजलि]] उसी के काल में हुए। |
05:14, 8 नवम्बर 2011 का अवतरण
पुष्यमित्र शुंग मौर्य वंश को पराजित करने वाला तथा शुंग वंश (लगभग 185 ई. पू.) का प्रवर्तक था। वह जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय था। मौर्य वंश के अन्तिम राजा बृहद्रथ ने उसे अपना सेनापति नियुक्त कर दिया था। एक दिन जब बृहद्रथ सैन्य प्रदर्शन का निरीक्षण कर रहा था, तभी पुष्यमित्र ने उसे मरवा दिया और वह स्वयं सिंहासन पर बैठ गया।
शुंग वंश की स्थापना
बौद्ध ग्रन्थ में पुष्यमित्र शुंग को मौर्य वंश का अन्तिम शासक बतलाया गया है, जो कि सन्देहस्पद है। मौर्य साम्राज्य के अन्तिम शासक बृहद्रथ की हत्या करके 184 ई.पू. में पुष्यमित्र ने मौर्य साम्राज्य के राज्य पर अधिकार कर लिया। पुष्यमित्र शुंग द्वारा जिस नये राजवंश की स्थापना की गई, उसे पूरे देश में 'शुंग राजवंश' के नाम से जाना गया। पुष्यमित्र शुंग ने 38 वर्ष तक राज्य किया, यह शासन अवधि किसी भी प्रकार से सरल नहीं थी। पुष्यमित्र का शासनकाल पूरी तरह से चुनौतियों से भरा हुआ था। उस समय भारत पर कई विदेशी आक्रान्ताओं ने आक्रमण किये गए, जिनका सामना पुष्यमित्र शुंग को करना पड़ा।
अश्वमेध यज्ञ
साम्राज्य पर दक्षिण पूर्व से उड़ीसा के राजा खारवेल ने तथा उत्तर से भारतीय यवन राजा मीनेंडर ने आक्रमण किया। पुष्यमित्र ने दोनों ही आक्रमणों को सफलतापूर्वक सामना किया और इन्हें विफल कर दिया। उसने विशाल साम्राज्य को खण्डित नहीं होने दिया और अपनी विजयों के उपलक्ष्यों में लम्बे अंतराल के बाद अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया। अशोक के प्रभाव से अश्वमेध जैसे हिंसाप्रधान यज्ञों की परिपाटी विलुप्त हो गई थी। पुष्यमित्र शुंग ने हिन्दू धर्म को फिर से जीवित किया और राजभाषा के रूप में संस्कृत की फिर से प्रतिष्ठापना की। प्रसिद्ध संस्कृत वैयाकरण पतंजलि उसी के काल में हुए।
- पुष्यमित्र का मित्र एवं उत्तराधिकारी अग्निमित्र तथा पौत्र वसुमित्र दोनों ही महान योद्धा थे। कहा जाता है कि पुष्यमित्र ने बहुत बौद्ध स्तूपों का घ्वंस कराया तथा बौद्ध श्रमणों का सिर कटवाया, किन्तु इसका कोई भी प्रमाण अभी तक उपलब्ध नहीं है।
शासक राजा
पुष्यमित्र शुंग के पश्चात इस वंश में नौ शासक और हुए, जिनके नाम इस प्रकार थे-
- अग्निमित्र
- वसुज्येष्ठ
- वसुमित्र
- अन्ध्रक
- तीन अज्ञात शासक
- भागवत
- देवभूति
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