"पट्टदकल": अवतरणों में अंतर
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'''पट्टदकल''' एक ऐतिहासिक स्थान है। जो [[महाराष्ट्र]] के [[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] में मालप्रभा नदी के तट पर, [[बादामी]] से 12 मील दूरी पर स्थित है। | '''पट्टदकल''' एक ऐतिहासिक स्थान है। जो [[महाराष्ट्र]] के [[बीजापुर ज़िला|बीजापुर ज़िले]] में मालप्रभा नदी के [[तट]] पर, [[बादामी]] से 12 मील दूरी पर स्थित है। | ||
*992 ई. के एक अभिलेख में पट्टदकल नगर को [[चालुक्य]] नरेशों की राजधानी कहा गया है। सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में ग्यारहवीं शताब्दी तक निर्मित मन्दिरों के लिए यह स्थान प्रख्यात रहा है। | *992 ई. के एक अभिलेख में पट्टदकल नगर को [[चालुक्य]] नरेशों की राजधानी कहा गया है। सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में ग्यारहवीं शताब्दी तक निर्मित मन्दिरों के लिए यह स्थान प्रख्यात रहा है। | ||
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*यह बात महत्त्वपूर्ण है कि पट्टदकल के कलाकारों ने आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली दोनों को साथ-साथ विकसित करने का प्रयास किया है। | *यह बात महत्त्वपूर्ण है कि पट्टदकल के कलाकारों ने आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली दोनों को साथ-साथ विकसित करने का प्रयास किया है। | ||
*पट्टदकल आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली के छः मन्दिर हैं। | *पट्टदकल आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली के छः मन्दिर हैं। | ||
*आर्य शैली का सबसे अधिक प्रसिद्ध मन्दिर पापनाथ का है और द्रविड़ शैली के मन्दिरों में विरुपाक्ष का है। | *आर्य शैली का सबसे अधिक प्रसिद्ध मन्दिर पापनाथ का है और द्रविड़ शैली के मन्दिरों में विरुपाक्ष का है। | ||
*पापनाथ मन्दिर के गर्भगृह के ऊपर एक शिखर है। वह ऊपर की ओर संकरा होता गया है। इसके गर्भगृह और मण्डप के बीच जो अंतराल बनाया गया है, वह भी एक मण्डप की भाँति प्रतीत होता है। | *पापनाथ मन्दिर के गर्भगृह के ऊपर एक शिखर है। वह ऊपर की ओर संकरा होता गया है। इसके गर्भगृह और मण्डप के बीच जो अंतराल बनाया गया है, वह भी एक मण्डप की भाँति प्रतीत होता है। | ||
*इस युग का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्दिर [[विरुपाक्ष मंदिर]] है, जिसे पहले लोकेश्वर मन्दिर भी कहा जाता था। इस | [[चित्र:Pattadakal.jpg|thumb|250px|left|पट्टदकल]] | ||
*इस युग का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्दिर [[विरुपाक्ष मंदिर]] है, जिसे पहले लोकेश्वर मन्दिर भी कहा जाता था। इस शिव मन्दिर को [[विक्रमादित्य द्वितीय]] (734-745 ई.) की पत्नी लोक महादेवी ने बनवाया था। | |||
*विरुपाक्ष मंदिर के गर्भगृह और मण्डप के बीच में भी अंतराल है। यह अंतराल छोटा है, जिससे इमारत का अनुपात बिगड़ने नहीं पाया है। मुख्य भवन 120 फुट लम्बा है। | *विरुपाक्ष मंदिर के गर्भगृह और मण्डप के बीच में भी अंतराल है। यह अंतराल छोटा है, जिससे इमारत का अनुपात बिगड़ने नहीं पाया है। मुख्य भवन 120 फुट लम्बा है। | ||
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*विरुपाक्ष मन्दिर अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। इसमें विभिन्न भागों का कलात्मक मूर्तियों से [[अलंकरण]] किया गया है। | *विरुपाक्ष मन्दिर अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। इसमें विभिन्न भागों का कलात्मक मूर्तियों से [[अलंकरण]] किया गया है। | ||
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पट्टदकल एक ऐतिहासिक स्थान है। जो महाराष्ट्र के बीजापुर ज़िले में मालप्रभा नदी के तट पर, बादामी से 12 मील दूरी पर स्थित है।
- 992 ई. के एक अभिलेख में पट्टदकल नगर को चालुक्य नरेशों की राजधानी कहा गया है। सातवीं शताब्दी के अंतिम चरण में ग्यारहवीं शताब्दी तक निर्मित मन्दिरों के लिए यह स्थान प्रख्यात रहा है।
- पट्टदकल के मन्दिर बादामी और ऐहोल से अधिक विकसित हैं।
- पट्टदकल की मूर्तिकला धार्मिक और लौकिक दोनों प्रकार की है। प्रथम में देवी-देवताओं तथा रामायण-महाभारत की अनेक धार्मिक कथाओं का चित्रण मिलता है। दूसरी में सामाजिक और घरेलू जीवन, पशु-पक्षी, वाद्य यंत्र तथा पंचतंत्र की कथाओं का अंकन का अंकन मिलता हैं।
- यह बात महत्त्वपूर्ण है कि पट्टदकल के कलाकारों ने आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली दोनों को साथ-साथ विकसित करने का प्रयास किया है।
- पट्टदकल आर्य शैली के चार मन्दिर और द्रविड़ शैली के छः मन्दिर हैं।
- आर्य शैली का सबसे अधिक प्रसिद्ध मन्दिर पापनाथ का है और द्रविड़ शैली के मन्दिरों में विरुपाक्ष का है।
- पापनाथ मन्दिर के गर्भगृह के ऊपर एक शिखर है। वह ऊपर की ओर संकरा होता गया है। इसके गर्भगृह और मण्डप के बीच जो अंतराल बनाया गया है, वह भी एक मण्डप की भाँति प्रतीत होता है।

- इस युग का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्दिर विरुपाक्ष मंदिर है, जिसे पहले लोकेश्वर मन्दिर भी कहा जाता था। इस शिव मन्दिर को विक्रमादित्य द्वितीय (734-745 ई.) की पत्नी लोक महादेवी ने बनवाया था।
- विरुपाक्ष मंदिर के गर्भगृह और मण्डप के बीच में भी अंतराल है। यह अंतराल छोटा है, जिससे इमारत का अनुपात बिगड़ने नहीं पाया है। मुख्य भवन 120 फुट लम्बा है।
- विरुपाक्ष मंदिर के चारों ओर प्राचीर और एक सुन्दर द्वार है। द्वार मण्डपों पर द्वारपाल की प्रतिमाएँ हैं। एक द्वारपाल की गदा पर एक सर्प लिपटा हुआ है, जिसके कारण उसके मुख पर विस्मय एवं घबराहट के भावों की अभिव्यंजना बड़े कौशल के साथ अंकित की गई है। मुख्य मण्डप में स्तम्भों की छः पंक्तियाँ हैं, जिनमें से प्रत्येक में पाँच स्तम्भों हैं।
- श्रृंगारिक दृश्यों का प्रदर्शन किया गया है। अन्य पर महाकाव्यों के चित्र उत्कीर्ण हैं। जिनमें हनुमान का रावण की सभा में आगमन, खर दूषण- युद्ध तथा सीता हरण के दृश्य उल्लेखनीय हैं।
- विरुपाक्ष मन्दिर अपने स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध है। इसमें विभिन्न भागों का कलात्मक मूर्तियों से अलंकरण किया गया है।
- कलामर्मज्ञों ने इस मन्दिर की बड़ी प्रशंसा की है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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