"जगजीत सिंह": अवतरणों में अंतर
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जगजीत सिंह (अंग्रेज़ी: Jagjit Singh) (जन्म- 8 फ़रवरी, 1941 [[गंगानगर]], [[राजस्थान]] - मृत्यु- 10 अक्टूबर, 2011 [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह और अपनी सहराना आवाज़ से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर राज करने वाले प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। खालिस [[उर्दू]] जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली.. नवाबों, रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह जगजीत सिंह हैं। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि [[ग़ालिब]], [[मीर]], मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। [[हिंदी]], उर्दू, पंजाबी, भोजपुरी सहित कई जबानों में गाने वाले जगजीत सिंह को साल 2003 में भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक [[पद्मभूषण]] से नवाज़ा गया है। | जगजीत सिंह ([[अंग्रेज़ी]]: Jagjit Singh) (जन्म- 8 फ़रवरी, 1941 [[गंगानगर]], [[राजस्थान]] - मृत्यु- 10 अक्टूबर, 2011 [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]) ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह और अपनी सहराना आवाज़ से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर राज करने वाले प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। खालिस [[उर्दू]] जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली.. नवाबों, रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह जगजीत सिंह हैं। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि [[ग़ालिब]], [[मीर]], मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। [[हिंदी]], उर्दू, [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]], [[भोजपुरी भाषा|भोजपुरी]] सहित कई जबानों में गाने वाले जगजीत सिंह को साल 2003 में भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक [[पद्मभूषण]] से नवाज़ा गया है। | ||
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शुरूआती शिक्षा [[गंगानगर]] के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए [[जालंधर]] आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद [[कुरूक्षेत्र]] विश्वविद्यालय से [[इतिहास]] में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। | शुरूआती शिक्षा [[गंगानगर]] के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए [[जालंधर]] आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद [[कुरूक्षेत्र]] विश्वविद्यालय से [[इतिहास]] में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया। | ||
====संगीत की शुरुआत==== | ====संगीत की शुरुआत==== | ||
बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंड़ित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में [[मुंबई]] आ गए। | बचपन में अपने पिता से [[संगीत]] विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंड़ित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और [[ध्रुपद]] की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में [[मुंबई]] आ गए। | ||
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जगजीत सिंह पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। यहाँ से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। इसके बाद फ़िल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फ़िल्म 'लीला' का संगीत औसत दर्ज़े का रहा। 1994 में ख़ुदाई, 1989 में बिल्लू बादशाह, 1989 में क़ानून की आवाज़, 1987 में राही, 1986 में ज्वाला, 1986 में लौंग दा लश्कारा, 1984 में रावण और 1982 में सितम के न गीत चले और न ही फ़िल्में। | |||
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1967 में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए। | 1967 में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए। |
10:10, 10 अक्टूबर 2011 का अवतरण
जगजीत सिंह
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पूरा नाम | जगजीत सिंह |
जन्म | 8 फ़रवरी, 1941 |
जन्म भूमि | गंगानगर, राजस्थान |
मृत्यु | 10 अक्टूबर, 2011 |
मृत्यु स्थान | मुम्बई, महाराष्ट्र |
पति/पत्नी | चित्रा सिंह |
संतान | विवेक और मोनिका |
कर्म भूमि | मुंबई |
कर्म-क्षेत्र | संगीतकार, गायक, संगीत निर्देशक, कार्यकर्ता |
मुख्य रचनाएँ | ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’, ‘ओ मां तुझे सलाम’, ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’ |
विषय | ग़लज़, शास्त्रीय, धार्मिक, लोक |
शिक्षा | स्नातक, पोस्ट ग्रेजुएशन |
विद्यालय | डीएवी कॉलेज, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मभूषण |
प्रसिद्धि | ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह |
नागरिकता | भारतीय |
संगीत वाद्य यंत्र | हारमोनियम, तानपुरा, पियानो |
अन्य जानकारी | जगजीत सिंह की ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। |
अद्यतन | 14:53, 10 अक्टूबर 2011 (IST)
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जगजीत सिंह (अंग्रेज़ी: Jagjit Singh) (जन्म- 8 फ़रवरी, 1941 गंगानगर, राजस्थान - मृत्यु- 10 अक्टूबर, 2011 मुम्बई, महाराष्ट्र) ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह और अपनी सहराना आवाज़ से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर राज करने वाले प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली.. नवाबों, रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह जगजीत सिंह हैं। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। हिंदी, उर्दू, पंजाबी, भोजपुरी सहित कई जबानों में गाने वाले जगजीत सिंह को साल 2003 में भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्मभूषण से नवाज़ा गया है।
जीवन परिचय
जन्म
जगजीत जी का जन्म 8 फ़रवरी, 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गाँव का रहने वाला है। माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गाँव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए।
शिक्षा
शुरूआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।
संगीत की शुरुआत
बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंड़ित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए।
जीवन में संघर्ष
जगजीत सिंह पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। यहाँ से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। इसके बाद फ़िल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फ़िल्म 'लीला' का संगीत औसत दर्ज़े का रहा। 1994 में ख़ुदाई, 1989 में बिल्लू बादशाह, 1989 में क़ानून की आवाज़, 1987 में राही, 1986 में ज्वाला, 1986 में लौंग दा लश्कारा, 1984 में रावण और 1982 में सितम के न गीत चले और न ही फ़िल्में।
विवाह
1967 में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।
फ़िल्मी जगत
1981 में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित अर्थ को भला कौन भूल सकता है। अर्थ में जगजीत जी ने ही संगीत दिया था। फ़िल्म का हर गाना लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया था। ये सारी फ़िल्में उन दिनों औसत से कम दर्ज़े की फ़िल्में मानी गईं। ज़ाहिर है कि जगजीत सिंह ने बतौर कमजोर बहुत पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में असफल ही रहे। कुछ हिट फ़िल्मी गीत ये रहे-
- ‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’
- ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’
- ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’
- ‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’
- ‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’
- ‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’
- ट्रैफ़िक सिगनल का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न)
- ‘तुम बिन’ का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’
- ‘वीर ज़ारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ)
- ‘तरक़ीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ (अलका याज्ञिक के साथ)
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