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||[[भारत]] में [[रामायण]] और [[महाभारत]] अद्यतन महाकाव्यों के उदगम और प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। परवर्ती महाकाव्यों की रचना सार्वजनिक वाचक के लिए नहीं, वरन कलाकृति के रूप में हुई है। इसलिए इन्हें ‘कलात्मक महाकाव्य’ की [[संज्ञा]] देना उपयुक्त होगा। इस वर्ग के महाकाव्यों की भारत में एक सुदीर्घ परंपरा है - जो ‘[[कुमारसंभव]]’ ‘[[रघुवंश]]’ आदि [[संस्कृत]] महाकाव्यों से आरंभ होकर आधुनिक भाषाओं में ‘[[कामायनी]]’ तथा ‘श्रीरामायण दर्शनम्’ आदि तक निरंतर प्रवाहमान है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाकाव्य]] | ||[[भारत]] में [[रामायण]] और [[महाभारत]] अद्यतन महाकाव्यों के उदगम और प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। परवर्ती महाकाव्यों की रचना सार्वजनिक वाचक के लिए नहीं, वरन कलाकृति के रूप में हुई है। इसलिए इन्हें ‘कलात्मक महाकाव्य’ की [[संज्ञा]] देना उपयुक्त होगा। इस वर्ग के महाकाव्यों की भारत में एक सुदीर्घ परंपरा है - जो ‘[[कुमारसंभव]]’ ‘[[रघुवंश]]’ आदि [[संस्कृत]] महाकाव्यों से आरंभ होकर आधुनिक भाषाओं में ‘[[कामायनी]]’ तथा ‘श्रीरामायण दर्शनम्’ आदि तक निरंतर प्रवाहमान है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाकाव्य]] | ||
{[[कालिदास]] की अन्तिम रचना [[ | {[[कालिदास]] की अन्तिम रचना '[[अभिज्ञान शाकुन्तलम्]]' का हिन्दी अनुवाद किसने किया था? | ||
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-सदासुख लाल | -सदासुख लाल |
07:05, 24 अगस्त 2011 का अवतरण
हिन्दी
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