"शिरडी साईं बाबा": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) छो (Removed Category:नया पन्ना (using HotCat)) |
No edit summary |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
==ग्रन्थों का ज्ञान== | ==ग्रन्थों का ज्ञान== | ||
[[चित्र:Shirdi-Sai-Baba-2.jpg|thumb|250px|शिरडी साईं बाबा<br /> Shirdi Sai Baba]] | [[चित्र:Shirdi-Sai-Baba-2.jpg|thumb|250px|शिरडी साईं बाबा<br /> Shirdi Sai Baba]] | ||
मस्जिद का नाम उन्होंने द्वारकामाई रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिंदू नाम था। कहा जाता है कि उन्हें [[पुराण|पुराणों]], [[भगवदगीता]] और हिंदू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था। | मस्जिद का नाम उन्होंने द्वारकामाई रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिंदू नाम था। कहा जाता है कि उन्हें [[पुराण|पुराणों]], [[गीता|भगवदगीता]] और हिंदू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था। | ||
==साईं बाबा की शिक्षा== | ==साईं बाबा की शिक्षा== | ||
*सबका मालिक एक! | *सबका मालिक एक! |
10:34, 8 नवम्बर 2010 का अवतरण

Shirdi Sai Baba
शिरडी के साईं बाबा एक आध्यात्मिक गुरु है। साईं बाबा समूचे भारत के हिंदू-मुस्लिम श्रद्धालुओं तथा अमेरिका और कैरेबियन जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ समुदायों के प्रिय थे।
जीवन परिचय
साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर 1836 में हुआ था। साईं बाबा नाम की उत्पत्ति साईं शब्द से हुई है, जो मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पूज्य व्यक्ति और बाबा, पिता के लिए एक हिंदी शब्द। हालांकि इस बात पर आम सहमति है कि साईं बाबा का जन्म 1836 में हुआ था, लेकिन उनके आरंभिक वर्षों के बारे में रहस्य बना हुआ है। अधिकांश विवरणों के अनुसार, वह एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद लिए गए। बाद में चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिंदू गुरु का शिष्य बताया। लगभग 1858 में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के एक गांव शिरडी पहुंचे और 1918 में मृत्यु होने तक वहीं रहे।
शिरडी में आगमन
शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की, लेकिन शताब्दी के अंत उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिंदुओं और मुसलमानों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गई। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वह मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में रहे, जहाँ कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे।
ग्रन्थों का ज्ञान

Shirdi Sai Baba
मस्जिद का नाम उन्होंने द्वारकामाई रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिंदू नाम था। कहा जाता है कि उन्हें पुराणों, भगवदगीता और हिंदू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था।
साईं बाबा की शिक्षा
- सबका मालिक एक!
- श्रद्धा और सबूरी!
- मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है!
- जातिगत भेद भुला कर प्रेम पूर्वक रहना!
- ग़रीबो और लाचार की मदद करना सबसे बड़ी पूजा है!
- माता-पिता, बुजुर्गो, गुरुजनों, बड़ों का सम्मान करना चाहिए!
उपदेश
साईं बाबा के उपदेश अक्सर विरोधाभासी दृष्टांत के रूप में होते थे और उसमें हिंदुओं और मुसलमानों को जकड़ने वाली कट्टर औपचारिकता के प्रति तिरस्कार तथा साथ ही ग़रीबों और रोगियों के प्रति सहानुभूति परिलक्षित होती थी। शिरडी एक प्रमुख तीर्थस्थल है तथा उपासनी बाबा और मेहर बाबा जैसी आध्यात्मिक हस्तियाँ साईं बाबा के उपदेशों को मान्यता देती हैं, जबकि सत्य साईं बाबा (जन्म 1926) उनका अवतार होने क दावा करते हैं।
मृत्यु
साईं बाबा की मृत्यु 15 अक्टूबर 1918 में शिरडी में हुई थी।
|
|
|
|
|