"प्रयोग:दीपिका3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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{कौन-सा विचारक संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानता? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-8 | |||
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-ब्लैकस्टोन | |||
- | -लासवेल | ||
+सी.एफ.स्ट्रांग | |||
- | -के.सी. व्हीयर | ||
|| | ||सी.एफ. स्ट्रांग संविधान एवं संविधानवाद में अंतर नहीं मानते हैं। इनके अनुसार [[संविधान]] पर आधारित शासन ही संविधानवाद तथा संविधान में कोई अंतर नहीं है। इनके विचार का समर्थन कोरी तथा अब्राहम जैसे विद्वान भी करते हैं। सी.एफ. स्ट्रांग के अनुसार "संविधान उन सिद्धांतों का समूह है जिसके अनुसार राज्य के अधिकारों, नागरिकों के अधिकारों, तथा दोनों के संबंधों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है। कोरी एवं अब्राहम के अनुसार स्थापित संविधान के निर्देशों के अनुसार शासन को संविधानवाद माना जाता है।" | ||
{ | {[[कार्ल मार्क्स]] और एफ. एंगेल्स सहलेखक हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-201,प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-दास कैपिटल के | |||
- | -एंटी-डुहरिंग के | ||
+जर्मन आइडियालॉजी के | |||
- | -क्रिटिक ऑफ़ दि गोथा प्रोग्राम के | ||
||' | ||'दि जर्मन आइडियालॉजी' [[कार्ल मार्क्स]] और फ्रेडरिक एंगल्स द्वारा वर्ष 1846 में लिखी गई। इसका प्रथम प्रकाशन वर्ष 1932 में किया गया। | ||
{ | {[[राज्य]] के स्वरूप के बारे में निम्नलिखित में कौन सही हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-9,प्रश्न-27 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -राज्य अपने में एक साध्य है। | ||
- | +राज्य साध्य का एक साधन है। | ||
- | -राज्य साधन और साध्य दोनों है। | ||
-राज्य न साधन है, न साध्य है। | |||
|| | ||आदर्शवादी विचारक (जैसे हीगल प्लेटो तथा सर्वाधिकार वादी विचारक जैसे मुसोलिनी या हिटलर) राज्य को स्वयं में साध्य मानते हैं जबकि उदारवादी विचारक एवं सामाजवादी विचारक राज्य को साधन मानते हैं। चूंकि प्रश्न में राज्य का स्वरूप किसी विचारधारा से संबंधित कर नहीं पूछा गया है। अत: प्रश्न में राज्य के वर्तमान स्वरूप के बारे में विचार किया जाएगा। वर्तमान समय में राज्य को एक साधन माना जाता है। आज विश्व के किसी भी हिस्से में राज्य की प्रकृति चाहे जो हो, भले ही वह सैन्य तंत्र हो, राज्य को साध्य न मानकर साधन माना जाता है। | ||
{ | {राज्य की यत्पत्ति का दैवी सिद्धांत नहीं मानता है कि- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-21,प्रश्न-25 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -राजा लोग पृथ्वी पर जीवित प्रतिमाएं है। | ||
- | -राजा ईश्वर का प्रतिनिधि होने के नाते केवल उसी के प्रति उत्तरदायी है। | ||
+ | +राज्य सरकार और वास्तव में सभी संस्थाएं मानवीय चेतना की परिणाम हैं और वे ऐसी कृतियां हैं जो मानव के नैतिक उद्देश्यों को समझने के फलस्वरूप उत्पन्न हुई हैं। | ||
- | -राजा के प्रति विद्रोह की भावना ही ईश्वर के प्रति विद्रोह है और जो ऐसा करेगा उसे मृत्युदण्ड मिलेगा। | ||
||राज्य की उत्पत्ति का | ||राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत राज्य को मानवीय कृति नहीं, ईश्वरीय सृष्टी मानता है। जेम्स प्रथम का प्रसिद्ध वाक्य था "राजा लोग पृथ्वी पर ईश्वर की जीवित प्रतिमाएं है"। यह सिद्धांत यह मानता है कि राजा ईश्वर का प्रतिनिधि है, इसलिए उसी के प्रति उत्तरदायी है। राजा के प्रति विद्रोह की भावना ही ईश्वर के प्रति विद्रोह है और जो ऐसा करेगा उसे मृत्युदण्ड मिलेगा। राज्य की उत्पत्ति का दैवीय सिद्धांत राज्य को मान चेतना का परिणाम और नैतिक उद्देश्यों के लिए हुई उसकी उत्पत्ति में विश्वास नहीं करता है। | ||
{राजनीतिक | {राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाता है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-47,प्रश्न-17 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-राजनीतिक दल, [[न्यायालय]], संविधान | |||
- | -विधानपालिका, राजनीतिक दल, न्यायालय | ||
+राजनीतिक दल, विधानपालिका, संविधान | |||
- | -विधानपालिका, न्यायालय, कार्यपालिका | ||
||राजनीतिक | ||लोकतंत्र जनता का, जनता के द्वारा और जनता के लिए शासन है। लोकतत्र में देश का प्रशासन सीधे जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से किया जाता है। ये राजनीतिक प्रतिनिधि देश की जनता के लिए नियम एवं कानून का निर्माण करते हैं। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को अपने प्रतिनिधि का चुनाव करने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने हेतु चुनाव लड़ने का अधिकार होता है। | ||
अत: एक उदार राजनीतिक प्रणाली में व्यक्ति का राजनीतिक प्रतिनिधित्व राजनीतिक दल, विधायिका, [[संसद]] एवं संविधान सभा द्वारा सुनिश्चित होता है। | |||
{" | {"स्वयं पर, स्वयं के शरीर और [[मस्तिष्क]] पर व्यक्ति संप्रभु है।" यह वक्तव्य किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-23,प्रश्न-5 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -जेरेमी बेंथम का | ||
- | -रूसो का | ||
- | +जॉन ऑस्टिन का | ||
-जॉन स्टुअर्ट मिल का | |||
|| | ||उपर्युक्त कथन जॉन स्टुअर्ट मिल का है। जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने निबंध 'ऑन लिवर्टी' में इसकी भूमिका में स्पष्ट रूप से यह व्यक्त किया है कि लोगों की स्वतंत्रता पर राज्य की शक्ति की एक सीमा होती है। | ||
{ | {नाजियों द्वारा किस पुस्तक को अपना [[बाइबिल]] माना गया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-42,प्रश्न-15 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -दास कैपिटल | ||
- | -वार एंड पीस | ||
+ | +मीन कैम्फ | ||
-[[ | -कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो | ||
||[[जर्मनी]] में नाजियों द्वारा, हिटलर की पुस्तक मीनकैक (अर्थ-मेरा संघर्ष) को बाइबिल माना गया था। यह पुस्तक हिटलर की आत्मकथा के साथ-साथ उसकी राजनीतिक विचार धारा और [[जर्मनी]] के बारे में उसकी योजनाओं का वर्णन है। जर्मनी लैंड्सवर्ग जेल में बंद हिटलर ने 1923 में बोलना शुरू किया जिसे हिटलर के सहायक रूडोल्फ हेस लिखता गया। इस पुस्तक का सम्पादन रूडोल्फ हेस ने ही किया था। | |||
{"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह | {"कानून संप्रभु का आदेश है।" यह निम्न में से किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-68,प्रश्न-26 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+ | +बेंथम का | ||
- | -डायसी का | ||
- | -लास्की का | ||
- | -ऑस्टिन का | ||
||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii) आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की | ||जॉन ऑस्टिन के अनुसार "कानून उच्चतर द्वारा निम्नतर को दिया गया आदेश है।" या "कानून संप्रभु की आज्ञा (आदेश) है।" ऑस्टिन के कानून को इस परिभाषा में तीन तत्व निहित है- (i) संप्रभुता (ii)आदेश (समादेश) (iii) शास्ति-अर्थात संप्रभु के आदेश की अवहेलना करने वाले को दण्ड देने की शक्ति। इस प्रकार ऑस्टिन ने कानून को संप्रभु आदेश (समादेश) माना है। ऑस्टिन ने अपनी पुस्तक में संप्रभुता की एकलवदी अवधारणा का प्रतिपादन किया है। | ||
{ओम्बुड्समैन की अवधारणा | {ओम्बुड्समैन की अवधारणा निम्नलिखित में से किसके संबंधित है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-191,प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -प्रशासनिक अभिकरण | ||
+ | +लोकपाल, लोक आयुक्त | ||
-[[लोक सेवा आयोग]] | |||
-[[ | -सी.बी.आई. | ||
||ओम्बुड्समैन की अवधारणा 'लोकपाल' व 'लोक आयुक्त' से संबंधित है। ये उच्च सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वार किए जा रहे भ्रष्टाचार की शिकायतें सुनने एवं उस पर कार्यवाही करने के निमित पद हैं। | |||
{ | {यह किसका मत है कि ब्रिटिश का अस्तित्व नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-200,प्रश्न-45 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | +डी. टॉकविल | ||
-[[ | -रैम्जे म्योर | ||
-एच.लास्की | |||
-ब्रोगन | |||
||फ्रेंच विचारक डी टॉकविल के मतानुसार [[इंग्लैंड]] में [[संविधान]] जैसी कोई वस्तु नहीं है।" [[अमेरिका]] के टॉमस पेन ने भी इसी विचार का समर्थन किया है। जार्ज बर्नार्ड शा ने भी ऐसे ही विचार व्यक्ति किए है इनके अनुसार, "हमारा एक ब्रिटिश संविधान नहीं है, लेकिन कोई नहीं जानता कि यह क्या है। यह कहीं भी लिखा हुआ नहीं है और न ही इसमें संशोधन किया जा सकता है।" | |||
{ | {अमेरिकी प्रणाली में निहित शक्तियों का अर्थ है कि- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-193,प्रश्न-9 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -संघीय सरकार आपात काल लागू कर सकती है | ||
- | -संघीय शक्तियां [[संसद]] में निहित हैं | ||
-संघीय शक्तियां [[राष्ट्रपति]] में निहित हैं | |||
- | +संघीय सरकार को वे शक्तियाँ भी मिल सकती हैं जो संविधान में स्पष्टत: उल्लिखित नहीं हैं | ||
||अमेरिकी प्रणाली में निहित शक्तियों का अर्थ है कि संघीय सरकार को वे शक्तियां भी मिल सकती है जो संविधान में स्पष्टत: उल्लिखित नहीं हैं। | |||
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12:07, 15 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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