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||[[चोल साम्राज्य]] का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। [[चोल राजवंश|चोल शासकों]] ने [[श्रीलंका]] पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और [[मालदीव]] द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव [[कलिंग]] और [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्र]] [[दोआब]] पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी [[एशिया]] में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। चोल साम्राज्य दक्षिण [[भारत]] का निःसन्देह सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था। {{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चोल साम्राज्य]] | ||[[चोल साम्राज्य]] का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। [[चोल राजवंश|चोल शासकों]] ने [[श्रीलंका]] पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और [[मालदीव]] द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव [[कलिंग]] और [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्र]] [[दोआब]] पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी [[एशिया]] में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके। चोल साम्राज्य दक्षिण [[भारत]] का निःसन्देह सबसे शक्तिशाली साम्राज्य था।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चोल साम्राज्य]] | ||
{निम्नलिखित में से किस शासक को [[बंगाल]] के [[पाल वंश|पालों]] की श्रेष्ठता को नष्ट करने का श्रेय जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1170 | {निम्नलिखित में से किस शासक को [[बंगाल]] के [[पाल वंश|पालों]] की श्रेष्ठता को नष्ट करने का श्रेय जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1170 | ||
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+[[विजय सेन]] | +[[विजय सेन]] | ||
-[[कुलोत्तुंग प्रथम|कुलोत्तुंग]] | -[[कुलोत्तुंग प्रथम|कुलोत्तुंग]] | ||
||सामंतसेन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी [[विजय सेन]] [[सेन वंश]] का पराक्रमी शासक हुआ। उसने [[बंगाल]] को पुनः पूर्ण राजनीतिक एकता प्रदान की। [[कलिंग]], कामरूप एवं [[मगध]] को जीत कर विजय सेन ने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण अभिलेख 'देवपाड़ा अभिलेख' है जिसमें उसके सीमा विस्तार तथा विजयों का उल्लेख मिलता है। | ||सामंतसेन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी [[विजय सेन]] [[सेन वंश]] का पराक्रमी शासक हुआ। उसने [[बंगाल]] को पुनः पूर्ण राजनीतिक एकता प्रदान की। [[कलिंग]], कामरूप एवं [[मगध]] को जीत कर विजय सेन ने अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण अभिलेख 'देवपाड़ा अभिलेख' है जिसमें उसके सीमा विस्तार तथा विजयों का उल्लेख मिलता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[विजय सेन]] | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा [[ग्रंथ]] पाली धर्मग्रंथ नहीं | {निम्नलिखित में से कौन-सा [[ग्रंथ]] पाली धर्मग्रंथ नहीं है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-487 | ||
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-[[ललितविस्तर]] | -[[ललितविस्तर]] | ||
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-[[सद्धर्मपुण्डरीक]] | -[[सद्धर्मपुण्डरीक]] | ||
-समाधिराज | -समाधिराज | ||
||[[बौद्ध धर्म]] के [[विनयपिटक]] के [[सुत्तविभंग|सुत्तविभंग ग्रंथ]] में सुत्तविभंग का शाब्दिक अर्थ है- 'सुत्रों (पातिभोक्ख के सूत्र) पर टीका।' इसके दो भाग 'महाविभंग' एवं 'भिक्खुनी विभंग' हैं। महाविभंग में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एवं भिक्खुनी विभंग में बौद्ध भिक्षुणियों हेतु नियमों का उल्लेख है। | |||
{निम्नलिखित [[अभिलेख|अभिलेखों]] में से किसमें [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] और [[अशोक]] दोनों के नाम का उल्लेख है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-655 | {निम्नलिखित [[अभिलेख|अभिलेखों]] में से किसमें [[चन्द्रगुप्त मौर्य]] और [[अशोक]] दोनों के नाम का उल्लेख है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-655 | ||
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+[[रुद्रदामन]] का [[जूनागढ़]] स्थित [[अभिलेख]] | +[[रुद्रदामन]] का [[जूनागढ़]] स्थित [[अभिलेख]] | ||
-[[स्कन्दगुप्त]] का जूनागढ़ अभिलेख | -[[स्कन्दगुप्त]] का जूनागढ़ अभिलेख | ||
||[[रुद्रदामन]] 'कार्दमक वंशी' [[चष्टन]] का पौत्र था, जिसे चष्टन के बाद गद्दी पर बैठाया गया था। यह इस वंश का सर्वाधिक योग्य शासक था और इसका शासन काल 130 से 150 ई. माना जाता है। रुद्रदामन एक अच्छा प्रजापालक, तर्कशास्त्र का विद्वान् तथा [[संगीत]] का प्रेमी था। इसके समय में [[उज्जयिनी]] शिक्षा का बहुत ही महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन चुकी थी।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[रुद्रदामन]] | |||
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11:56, 12 नवम्बर 2017 का अवतरण
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