"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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+[[एम. जी. रानाडे]] | +[[एम. जी. रानाडे]] | ||
-[[स्वामी सहजानंद सरस्वती]] | -[[स्वामी सहजानंद सरस्वती]] | ||
||[[चित्र:M-g-ranade.jpg|right|100px|महादेव गोविन्द रानाडे]]'महादेव गोविन्द रानाडे' [[भारत]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान और न्यायविद थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। [[प्रार्थना समाज]], [[आर्य समाज]] और [[ब्रह्म समाज]] का [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के जीवन पर बहुत प्रभाव था। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने [[महाराष्ट्र]] में अंधविश्वास और हानिकारक रूढ़ियों का जमकर विरोध किया था। [[धर्म]] में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे '[[बाल विवाह]]' के कट्टर विरोधी और 'विधवा विवाह' के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी। महादेव गोविन्द रानाडे 'दकन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[ | ||[[चित्र:M-g-ranade.jpg|right|100px|महादेव गोविन्द रानाडे]]'महादेव गोविन्द रानाडे' [[भारत]] के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान और न्यायविद थे। उन्होंने विभिन्न प्रकार के समाज सुधार के कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। [[प्रार्थना समाज]], [[आर्य समाज]] और [[ब्रह्म समाज]] का [[महादेव गोविन्द रानाडे]] के जीवन पर बहुत प्रभाव था। प्रार्थना समाज के मंच से रानाडे ने [[महाराष्ट्र]] में अंधविश्वास और हानिकारक रूढ़ियों का जमकर विरोध किया था। [[धर्म]] में उनका अंधविश्वास नहीं था। वे मानते थे कि देश काल के अनुसार धार्मिक आचरण बदलते रहते हैं। उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया। वे '[[बाल विवाह]]' के कट्टर विरोधी और 'विधवा विवाह' के समर्थक थे। इसके लिए उन्होंने एक समिति 'विधवा विवाह मण्डल' की स्थापना भी की थी। महादेव गोविन्द रानाडे 'दकन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में भी प्रमुख थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महादेव गोविन्द रानाडे]] | ||
{किस स्थान पर '[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]]' लागू नहीं हुआ था?(यूजीसी इतिहास, पृ. 563, प्र. 51) | {किस स्थान पर '[[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]]' लागू नहीं हुआ था?(यूजीसी इतिहास, पृ. 563, प्र. 51) | ||
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-[[कोलकाता]] | -[[कोलकाता]] | ||
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||[[चित्र:University-of-Madras.jpg|right|100px|मद्रास विश्वविद्यालय, चेन्नई]]'चेन्नई' (भूतपूर्व [[मद्रास]]), [[तमिलनाडु|तमिलनाडु राज्य]] की राजधानी, [[दक्षिण भारत]], '[[बंगाल की खाड़ी]]' के कोरोमण्डल तट पर स्थित है। तमिलनाडु की राजधानी [[चेन्नई]] [[भारत]] के चार महानगरों में से एक है। [[समुद्र]] किनारे बसे इस शहर में बंदरगाह भी हैं। पहले इस शहर को 'मद्रास' के नाम से जाना जाता था। [[मद्रास]] मछुआरे के गाँव मद्रासपटनम का छोटा रूप था, जहाँ ब्रिटिश [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने 1639-1640 में एक क़िले और व्यापारिक चौकी का निर्माण किया था। उस समय सूती कपड़े की बुनाई एक स्थानीय उद्योग था और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने बुनकरों तथा स्थानीय व्यापारियों को क़िले के आस-पास बसने के लिए बुलाया था। 1652 तक फ़ोर्ट सेंट जार्ज फ़ैक्ट्री को प्रेज़िडेंसी की प्रतिष्ठा मिल गई और 1668 और 1749 के बीच कम्पनी ने अपने नियंत्रण का विस्तार किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चेन्नई]], [[वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट]] | |||
{निम्न में से कौन सा अख़बार सरकार का समर्थक और भारतीयों का आलोचक था?(यूजीसी इतिहास, पृ. 564, प्र. 66) | {[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास|समाचार पत्रों के इतिहास]] में निम्न में से कौन-सा [[अख़बार]] ब्रिटिश सरकार का समर्थक और भारतीयों का आलोचक था?(यूजीसी इतिहास, पृ. 564, प्र. 66) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+पायनियर | +[[पायनियर]] | ||
-स्टेट्समैन | -स्टेट्समैन | ||
-हिन्दुस्तान स्टैण्डर्स | -हिन्दुस्तान स्टैण्डर्स | ||
-उपरोक्त में से कोई नहीं | -उपरोक्त में से कोई नहीं | ||
||[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास]] यूरोपीय लोगों के [[भारत]] में प्रवेश के साथ ही प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] को दिया जाता है। 1557 ई. में [[गोवा]] के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई. में [[अंग्रेज़]] [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] ने [[भारत]] की पहली पुस्तक की छपाई की। ब्रिटिश शासन में [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] समाचार पत्रों एवं भारतीय समाचार पत्रों के दृष्टिकोण में अंतर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार पत्रों को भारतीय समाचार पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधायें उपलब्ध थीं, वही भारतीय समाचार पत्र पर प्रतिबन्ध लगा था। सभी [[समाचार पत्र|समाचार पत्रों]] में 'इंग्लिश मैन' सर्वाधिक रूढ़िवादी एवं प्रतिक्रियावादी था। 'पायनियर' ब्रिटिश सरकार का पूर्ण समर्थक समाचार-पत्र था, जबकि 'स्टेट्समैन' कुछ तटस्थ दृष्टिकोण रखता था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[भारत में समाचार पत्रों का इतिहास]] | |||
{वह [[कांग्रेस]] प्रेसिडेंट कौन था, जिसने [[1942]] में क्रिप्स के साथ शिमला कांफ़्रेंस में [[लॉर्ड वेवेल]] के साथ वार्ता की?(यूजीसी इतिहास, पृ. 564, प्र. 70) | {वह [[कांग्रेस]] प्रेसिडेंट कौन था, जिसने [[1942]] में क्रिप्स के साथ शिमला कांफ़्रेंस में [[लॉर्ड वेवेल]] के साथ वार्ता की?(यूजीसी इतिहास, पृ. 564, प्र. 70) | ||
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-[[सी. राजगोपालाचारी]] | -[[सी. राजगोपालाचारी]] | ||
+[[अबुल कलाम आज़ाद]] | +[[अबुल कलाम आज़ाद]] | ||
||[[चित्र:Abul-Kalam-Azad.gif|right|100px|अबुल कलाम आज़ाद]]'मौलाना अबुल कलाम मुहीउद्दीन अहमद' [[मुस्लिम]] विद्वान थे। उन्होंने '[[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]]' में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। [[अबुल कलाम आज़ाद]] ने [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का समर्थन किया और सांप्रदायिकता पर आधारित देश के विभाजन का विरोध किया। स्वतंत्र [[भारत]] में वह भारत सरकार के पहले शिक्षा मंत्री थे। उन्हें 'मौलाना आज़ाद' के नाम से भी जाना जाता है। जब [[जवाहरलाल नेहरू]] और अबुल कलाम को ऐतिहासिक 'शिमला कॉन्फ्रेंस में भाग लेने जाना पड़ा, तब मौलाना बहुत बीमार थे। उनके डॉक्टर ने प्रार्थना की कि कॉन्फ्रेंस दो हफ्ते तक स्थगित कर दी जाये। लेकिन [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना आज़ाद]] इसके लिए राजी नहीं हुए। उनकी हालत देखकर [[लॉर्ड वेवेल|वाइसराय लॉर्ड वेवेल]] ने इन्हें वाइसरीगल इस्टेट में ही एक मकान में ठहराया और उनकी देखभाल के लिए अपने निजी स्टाफ के कुछ लोगों को तैनात किया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अबुल कलाम आज़ाद]] | |||
{[[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने [[भारत]] का प्रथम प्रिटिंग प्रेस कहाँ पर स्थापित किया?(यूजीसी इतिहास, पृ. 565, प्र. 86) | {[[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] ने [[भारत]] का प्रथम प्रिटिंग प्रेस कहाँ पर स्थापित किया?(यूजीसी इतिहास, पृ. 565, प्र. 86) | ||
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-[[मुम्बई]] | -[[मुम्बई]] | ||
-[[कालीकट]] | -[[कालीकट]] | ||
||[[पुर्तग़ाल]] देश के निवासियों को '[[पुर्तग़ाली]]' कहा जाता है। [[वास्कोडिगामा]] भी एक पुर्तग़ाली नाविक था। वास्कोडिगामा के द्वारा की गई [[भारत]] यात्राओं ने पश्चिमी यूरोप से 'केप ऑफ़ गुड होप' होकर पूर्व के लिए समुद्री मार्ग खोल दिए थे। जिस स्थान का नाम पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]] रखा था, वह आज का छोटा-सा [[समुद्र]] तटीय शहर 'गोअ-वेल्हा' है। कालान्तर में इस क्षेत्र को 'गोवा' कहा जाने लगा, जिस पर पुर्तग़ालियों ने क़ब्ज़ा किया था। [[भारत]] में 'गोधिक स्थापत्य कला' का आगमन भी [[पुर्तग़ाली|पुर्तग़ालियों]] के साथ ही हुआ था। पुर्तग़ालियों ने [[गोवा]], [[दमन और दीव]] पर 1661 ई. तक शासन किया। उनके आगमन से भारत में [[तम्बाकू]] की खेती, जहाज़ निर्माण तथा प्रिंटिंग प्रेस की शुरुआत हुई। भारत में प्रथम प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना वर्ष 1556 ई. में गोवा में हुई थी। यह पुर्तग़ालियों की भारतवासियों के लिए एक महत्त्वपूर्ण देन थी।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पुर्तग़ाली]], [[गोवा]] | |||
{[[भारत]] का प्रथम श्रमिक संघ 'बम्बई मिल हैण्ड एसोसिएशन' कब स्थापित हुआ था?(यूजीसी इतिहास, पृ. 567, प्र. 136) | {[[भारत]] का प्रथम श्रमिक संघ 'बम्बई मिल हैण्ड एसोसिएशन' कब स्थापित हुआ था?(यूजीसी इतिहास, पृ. 567, प्र. 136) |
07:32, 1 जुलाई 2013 का अवतरण
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