"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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||[[महाभारत]] संग्राम के उस अठारहवें दिन रात्रिकाल में महाबली [[अश्वत्थामा]] ने पाण्डवों की सोयी हुई एक अक्षौहिणी सेना को सदा के लिये सुला दिया। उसने [[द्रौपदी]] के पाँचों पुत्रों, उसके पांचालदेशीय बन्धुओं तथा [[धृष्टद्युम्न]] को भी जीवित नहीं छोड़ा। द्रौपदी पुत्रहीन होकर रोने-बिलखने लगी। तब [[अर्जुन]] ने सींक के अस्त्र से अश्वत्थामा को परास्त करके उसके मस्तक की मणि निकाल ली। उसे मारा जाता देखकर द्रौपदी ने ही अनुनय-विनय करके उसके प्राण बचाये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अश्वत्थामा]] | ||[चित्र:Dronacharya.jpg|right|100px|धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य का वध][[महाभारत]] संग्राम के उस अठारहवें दिन रात्रिकाल में महाबली [[अश्वत्थामा]] ने पाण्डवों की सोयी हुई एक अक्षौहिणी सेना को सदा के लिये सुला दिया। उसने [[द्रौपदी]] के पाँचों पुत्रों, उसके पांचालदेशीय बन्धुओं तथा [[धृष्टद्युम्न]] को भी जीवित नहीं छोड़ा। क्योंकि धृष्टद्युम्न ने अश्वत्थामा के पिता द्रोणाचार्य का वध किया था। द्रौपदी पुत्रहीन होकर रोने-बिलखने लगी। तब [[अर्जुन]] ने सींक के अस्त्र से अश्वत्थामा को परास्त करके उसके मस्तक की मणि निकाल ली। उसे मारा जाता देखकर द्रौपदी ने ही अनुनय-विनय करके उसके प्राण बचाये।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अश्वत्थामा]] | ||
{[[महाभारत]] युद्ध के उपरान्त [[कौरव]] सेना के कितने महारथी शेष बचे? | {[[महाभारत]] युद्ध के उपरान्त [[कौरव]] सेना के कितने महारथी शेष बचे? | ||
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||दुष्ट [[अश्वत्थामा]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ को नष्ट करने के लिये उस पर अस्त्र का प्रयोग किया। वह गर्भ उसके अस्त्र से प्राय: दग्ध हो गया था; किंतु भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने उसको पुन: जीवन-दान दिया। उत्तरा का वही गर्भस्थ शिशु आगे चलकर राजा [[परीक्षित]] के नाम से विख्यात हुआ। [[कृतवर्मा]], [[कृपाचार्य]] तथा [[अश्वत्थामा]]-ये तीन कौरवपक्षीय वीर उस संग्राम से जीवित बचे। दूसरी ओर पाँच [[पाण्डव]], [[सात्यकि]] तथा भगवान श्रीकृष्ण-ये सात ही जीवित रह सके; दूसरे कोई नहीं बचे। उस समय सब ओर अनाथ स्त्रियों का आर्तनाद व्याप्त हो रहा था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | ||[[चित्र:Sanjaya-Dhritarashtra.jpg|right|100px|धृतराष्ट्र तथा संजय]]दुष्ट [[अश्वत्थामा]] ने [[उत्तरा]] के गर्भ को नष्ट करने के लिये उस पर अस्त्र का प्रयोग किया। वह गर्भ उसके अस्त्र से प्राय: दग्ध हो गया था; किंतु भगवान [[श्रीकृष्ण]] ने उसको पुन: जीवन-दान दिया। उत्तरा का वही गर्भस्थ शिशु आगे चलकर राजा [[परीक्षित]] के नाम से विख्यात हुआ। [[कृतवर्मा]], [[कृपाचार्य]] तथा [[अश्वत्थामा]]-ये तीन कौरवपक्षीय वीर उस संग्राम से जीवित बचे। दूसरी ओर पाँच [[पाण्डव]], [[सात्यकि]] तथा भगवान श्रीकृष्ण-ये सात ही जीवित रह सके; दूसरे कोई नहीं बचे। उस समय सब ओर अनाथ स्त्रियों का आर्तनाद व्याप्त हो रहा था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | ||
{[[महाभारत]] में राज्य के कितने महत्त्वपूर्ण अंग बताये गए हैं? | {[[महाभारत]] में राज्य के कितने महत्त्वपूर्ण अंग बताये गए हैं? | ||
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||[[चित्र:Krishna-Arjuna. | ||[[चित्र:Krishna-Arjuna.jpg|right|100px|अर्जुन को गीता का ज्ञान देना]][[महाभारत]] में राज्य के स्वरूप में सात अंग निहित हैं। ये इस प्रकार हैं:- 'राजा', '[[अमात्य]]', 'कोष', 'दण्ड', 'मित्र', 'जनपद' तथा 'पुर'। इनको महाभारत में नाम भेद से जहाँ-तहाँ अनेक बार स्मरण किया गया है। शांतिपर्व में राजा के कर्त्तव्यों का उल्लेख करते हुए [[भीष्म]] ने कहा है कि राजा को उचित है कि वह सात वस्तुओं की अवश्य रक्षा करे। ये हैं- राजा का अपना शरीर, मंत्री, कोष, दण्ड, मित्र, राष्ट्र और नगर। राजा को इन सात का प्रयत्नपूर्वक पालन करना चाहिए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[महाभारत]] | ||
{[[धृतराष्ट्र]] के दामाद का क्या नाम था? | {[[धृतराष्ट्र]] के दामाद का क्या नाम था? |
13:47, 2 फ़रवरी 2012 का अवतरण
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