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उत्कल उत्तरी [[ओडिशा]] का प्राचीन नाम जिसे उत् (उत्तर) [[कलिंग]] का संक्षिप्त रूप माना जाता है। कुछ विद्वानों के मत में द्रविड़ भाषाओं में '''ओक्कल''' किसान का पर्याय है और उत्कल इसी का रूपांतर है।<ref> | उत्कल उत्तरी [[ओडिशा]] का प्राचीन नाम जिसे उत् (उत्तर) [[कलिंग]] का संक्षिप्त रूप माना जाता है। कुछ विद्वानों के मत में द्रविड़ भाषाओं में '''ओक्कल''' किसान का पर्याय है और उत्कल इसी का रूपांतर है।<ref>देखें दि हिस्ट्री आव उड़ीसा; महताब, पृ. 1</ref> उत्कल का प्रथम उल्लेख सम्भवत: सूत्रकाल (पूर्वबुद्धकाल) में मिलता है। [[कालिदास]] ने [[रघुवंश]] 4, 38 में उत्कल निवासियों का उल्लेख रघु की दिग्विजय के प्रसंग में कलिंग विजय के पूर्व किया है- | ||
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उत्कल उत्तरी ओडिशा का प्राचीन नाम जिसे उत् (उत्तर) कलिंग का संक्षिप्त रूप माना जाता है। कुछ विद्वानों के मत में द्रविड़ भाषाओं में ओक्कल किसान का पर्याय है और उत्कल इसी का रूपांतर है।[1] उत्कल का प्रथम उल्लेख सम्भवत: सूत्रकाल (पूर्वबुद्धकाल) में मिलता है। कालिदास ने रघुवंश 4, 38 में उत्कल निवासियों का उल्लेख रघु की दिग्विजय के प्रसंग में कलिंग विजय के पूर्व किया है-
'स तीर्त्वा कपिशां सैन्यैर्बद्धद्विरदसेतुभि:,
उत्कलादर्शितपथ: कलिंगाभिमुखो ययौ'।
इससे स्पष्ट है कि कालिदास के समय में अथवा स्थूलरूप से, पूर्वगुप्तकाल में उत्कल उत्तरी उड़ीसा और कलिंग दक्षिणी उड़ीसा को कहते थे। उड्र, उड़ीसा के समग्र देश का सामान्य नाम था जो महाभारत में सभा पर्व महाभारत 31, 71 में उल्लिखित है। मध्यकाल में भी उत्कल नाम प्रचलित था। दिब्बिड़ दानपत्र[2] से सूचित होता है कि उत्कल नरेश जयत्सेन ने मत्स्यवंशीय राजा सत्यमार्तंड के साथ अपनी पुत्री प्रभावती का विवाह किया था और उसे ओड्डवाडी का शासक नियुक्त किया था। इसकी 23 पीढ़ियों के पश्चात 1269 ई. में उत्कल का राजा अर्जुन हुआ था जिसने यह दानपत्र प्रचलित किया था।