"पाल चित्रकला": अवतरणों में अंतर
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*9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासन में विशेष रूप से विकसित होने वाली पाल शैली की [[चित्रकला]] की विषयवस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। | *9वीं से 12वीं शताब्दी तक [[बंगाल]] में [[पाल वंश]] के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासन में विशेष रूप से विकसित होने वाली पाल शैली की [[चित्रकला]] की विषयवस्तु [[बौद्ध धर्म]] से प्रभावित रही है। | ||
*प्रारम्भ में ताड़ पत्र और बाद में काग़ज़ पर बनाये जाने वाले चित्रों में वज्रयान बौद्ध धर्म के दृश्य चित्रित हैं। | *प्रारम्भ में ताड़ पत्र और बाद में [[काग़ज़]] पर बनाये जाने वाले चित्रों में वज्रयान बौद्ध धर्म के दृश्य चित्रित हैं। | ||
*दृष्टांत शैली की प्रधानता वाली इस शैली ने [[तिब्बत]] और [[नेपाल]] की चित्रकला को भी प्रभावित किया है। इसका प्रमुख केन्द्र पूर्वोत्तर [[भारत]] ही रहा है। | *दृष्टांत शैली की प्रधानता वाली इस शैली ने [[तिब्बत]] और [[नेपाल]] की चित्रकला को भी प्रभावित किया है। इसका प्रमुख केन्द्र पूर्वोत्तर [[भारत]] ही रहा है। | ||
*परंतु वर्तमान में इस शैली के चित्र देश के विभिन्न भागों में स्थित संग्रहालयों में भी देखे जा सकते हैं। | *परंतु वर्तमान में इस शैली के चित्र देश के विभिन्न भागों में स्थित संग्रहालयों में भी देखे जा सकते हैं। |
14:32, 26 जनवरी 2011 का अवतरण
- 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बंगाल में पाल वंश के शासकों धर्मपाल और देवपाल के शासन में विशेष रूप से विकसित होने वाली पाल शैली की चित्रकला की विषयवस्तु बौद्ध धर्म से प्रभावित रही है।
- प्रारम्भ में ताड़ पत्र और बाद में काग़ज़ पर बनाये जाने वाले चित्रों में वज्रयान बौद्ध धर्म के दृश्य चित्रित हैं।
- दृष्टांत शैली की प्रधानता वाली इस शैली ने तिब्बत और नेपाल की चित्रकला को भी प्रभावित किया है। इसका प्रमुख केन्द्र पूर्वोत्तर भारत ही रहा है।
- परंतु वर्तमान में इस शैली के चित्र देश के विभिन्न भागों में स्थित संग्रहालयों में भी देखे जा सकते हैं।
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