"मिश्रित सामान्य ज्ञान 61": अवतरणों में अंतर
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-पंजाब, राजस्थान, गुजरात, उड़ीसा और [[बंगाल]] | -पंजाब, राजस्थान, गुजरात, उड़ीसा और [[बंगाल]] | ||
+[[पंजाब]], [[राजस्थान]], [[गुजरात]], [[उत्तर प्रदेश]], [[हरियाणा]], [[सिंध]] और [[बलूचिस्तान]] | +[[पंजाब]], [[राजस्थान]], [[गुजरात]], [[उत्तर प्रदेश]], [[हरियाणा]], [[सिंध]] और [[बलूचिस्तान]] | ||
||[[चित्र:Indus-Valley-Civilization-Pottery.jpg|border|100px|right|सिंधु घाटी सभ्यता कालीन बर्तन]]'सिंधु घाटी सभ्यता' विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता थी। यह [[हड़प्पा सभ्यता]] और सिंधु-सरस्वती सभ्यता के नाम से भी जानी जाती है। अब तक इस सभ्यता के [[अवशेष]] [[पाकिस्तान]] और [[भारत]] के [[पंजाब]], [[सिंध]], [[बलूचिस्तान]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[हरियाणा]], पश्चिमी [[उत्तर प्रदेश]], [[जम्मू-कश्मीर]] के भागों में पाये जा चुके हैं। इस सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू के मांदा से लेकर दक्षिण में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] के मुहाने भगतराव तक और पश्चिमी में मकरान समुद्र तट पर सुत्कागेनडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में [[मेरठ]] तक है। इस सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल सुत्कागेनडोर, पूर्वी पुरास्थल आलमगीर, उत्तरी पुरास्थल मांडा तथा दक्षिणी पुरास्थल दायमाबाद है। लगभग त्रिभुजाकार वाला यह भाग कुल क़रीब 12,99,600 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सिंधु घाटी सभ्यता]] | |||
{मराठा मण्डल या मराठा राज्य संघ की स्थापना किस [[पेशवा]] के समय में हुई? | {मराठा मण्डल या मराठा राज्य संघ की स्थापना किस [[पेशवा]] के समय में हुई? | ||
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+[[बालाजी विश्वनाथ]] | +[[बालाजी विश्वनाथ]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[चित्र:Balaji-vishwvanath-statue.jpg|border|100px|right|बालाजी विश्वनाथ]]'बालाजी विश्वनाथ' का जन्म एक निर्धन [[परिवार]] में हुआ था। शाहू के सेनापति धनाजी जादव ने [[1708]] ई. में [[बालाजी विश्वनाथ]] 'कारकून' (राजस्व का क्लर्क) नियुक्त किया था। धनाजी जादव की मृत्यु के उपरान्त वह उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव के साथ संयुक्त रहा। चन्द्रसेन जादव ने उसे [[1712]] ई. में 'सेनाकर्त्ते' (सैन्यभार का संगठनकर्ता) की उपाधि दी। इस प्रकार उसे एक असैनिक शासक तथा सैनिक संगठनकर्ता-दोनों रूपों में अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर मिला। शीघ्र ही शाहू ने उसके द्वारा की गई बहुमूल्य सेवाओं को स्वीकार किया और [[16 नवम्बर]], [[1713]] ई. को उसे "[[पेशवा]]" (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बालाजी विश्वनाथ]] | |||
{[[मुग़ल]] बादशाह ने किसे ‘नवाब’ की पदवी प्रदान की थी? | {[[मुग़ल]] बादशाह ने किसे ‘नवाब’ की पदवी प्रदान की थी? | ||
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-[[रॉबर्ट क्लाइव|क्लाइव]] | -[[रॉबर्ट क्लाइव|क्लाइव]] | ||
-[[जनरल पेरों]] | -[[जनरल पेरों]] | ||
||'डूप्ले' का पूरा नाम 'जोसेफ़ फ़्रैक्वाय डूप्ले' था। वह फ़्राँसीसी ईस्ट कम्पनी की व्यापारिक सेवा में [[भारत]] आया और बाद को [[1731]] ई. में चन्द्रनगर का गवर्नर बन गया। सन [[1741]] में वह पाण्डिचेरी का गवर्नर-जनरल बनाया गया और [[1754]] तक इस पद पर रहा, जहाँ से वह वापस बुला लिया गया। [[डूप्ले]] योद्धा न होते हुए भी एक कुशल राजनीतिज्ञ और राजनेता था। [[भारतीय इतिहास]] में हुए [[कर्नाटक युद्ध|कर्नाटक युद्धों]] में डूप्ले ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन युद्धों के माध्यम से डूप्ले ने अपनी एक अमिट छाप भारतीय इतिहास में छोड़ी है।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डूप्ले]] | |||
{निम्नलिखित में से गुरिल्ला युद्ध का पथ-प्रदर्शक कौन था? | {निम्नलिखित में से गुरिल्ला युद्ध का पथ-प्रदर्शक कौन था? | ||
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-[[औरंगज़ेब]] | -[[औरंगज़ेब]] | ||
-[[नाना साहिब|नाना]] | -[[नाना साहिब|नाना]] | ||
||[[चित्र:Chatrapati-Shivaji.jpg|border|100px|right|शिवाजी]]'शिवाजी' [[भारत]] के [[मराठा साम्राज्य]] के संस्थापक थे। उनके [[पिता]] का नाम [[शाहजी भोंसले]] और [[माता]] का नाम [[जीजाबाई]] था। मराठे पहले ही अपनी स्वतंत्र पहचान बनाने के प्रति सचेत थे, फिर भी उन्हें संगठित करने और उनमें एक राजनीतिक लक्ष्य के प्रति चेतना जगाने का कार्य [[शिवाजी]] ने किया। शिवाजी की प्रगति का लेखा मराठों के उत्थान को प्रतिबिंबित करता है। सन 1645-1647 के बीच 18 वर्ष की अवस्था में उन्होंने [[पूना]] के निकट अनेक पहाड़ी क़िलों पर विजय प्राप्त की, जैसे- [[रायगढ़ महाराष्ट्र|रायगढ़]], कोडंना और [[तोरण दुर्ग|तोरण]]। फिर 1656 ई. में उन्होंने शक्तिशाली [[मराठा]] प्रमुख चंद्रराव मोरे पर विजय प्राप्त की और जावली पर अधिकार कर लिया, जिसने उन्हें उस क्षेत्र का निर्विवाद स्वामी बना दिया और [[सतारा]] एवं [[कोंकण]] की विजय का मार्ग प्रशस्त कर दिया।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[शिवाजी]] | |||
{[[सिंधु घाटी सभ्यता]] में घोड़े के [[अवशेष]] कहाँ मिले हैं? | {[[सिंधु घाटी सभ्यता]] में घोड़े के [[अवशेष]] कहाँ मिले हैं? | ||
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-[[माण्डा]] | -[[माण्डा]] | ||
-[[कालीबंगा]] | -[[कालीबंगा]] | ||
||[[चित्र:Surkotada.jpg|border|100px|right|सुरकोटदा]]'सुरकोटदा' या 'सुरकोटडा' [[गुजरात]] के [[कच्छ]] ज़िले में स्थित है। इस स्थल से [[हड़प्पा सभ्यता]] के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। [[सुरकोटदा]] की खोज सन [[1964]] में जगपति जोशी ने की थी। इस स्थल से [[सिंधु सभ्यता]] के पतन के [[अवशेष]] परिलक्षित होते हैं। यहाँ पर एक बहुत बड़ा टीला था। यहाँ पर किये गये [[उत्खनन]] में एक [[दुर्ग]] बना मिला, जो कच्ची [[ईंट|ईंटों]] और [[मिट्टी]] का बना था। परकोटे के बाहर एक अनगढ़ पत्थरों की दीवार थी। मृद्भाण्ड सैंधव सभ्यता के हैं।अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुरकोटदा]] | |||
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10:17, 9 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण
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