"शालिग्राम": अवतरणों में अंतर
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[[पद्म पुराण]] के अनुसार चार भुजाधारी भगवान [[विष्णु]] के दाहिनी एवं ऊर्ध्व भुजा के क्रम से अस्त्र विशेष ग्रहण करने पर केशव आदि नाम होते हैं अर्थात, दाहिनी ओर का ऊपर का हाथ, दाहिनी ओर का नीचे का हाथ, बायीं ओर का ऊपर का हाथ और बायीं ओर का नीचे का हाथ- इस क्रम से चारों हाथों में शंख, चक्र आदि आयुधों को क्रम या व्यतिक्रमपूर्वक धारण करने पर भगवान की भिन्न-भिन्न संज्ञाएँ होती हैं। उन्हीं संज्ञाओं का निर्देश करते हुए यहाँ भगवान का पूजन बतलाया जाता है। | |||
*उपर्युक्त क्रम से चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाले विष्णु का नाम 'केशव' है। | *उपर्युक्त क्रम से चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाले विष्णु का नाम 'केशव' है। | ||
*पद्म, गदा, चक्र और शंख के क्रम से शस्त्र धारण करने पर उन्हें 'नारायण' कहते हैं। | *पद्म, गदा, चक्र और शंख के क्रम से शस्त्र धारण करने पर उन्हें 'नारायण' कहते हैं। | ||
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*चक्र, शंख गदा तथा पद्म से युक्त भगवान वासुदेव! आपको प्रणाम है। | *चक्र, शंख गदा तथा पद्म से युक्त भगवान वासुदेव! आपको प्रणाम है। | ||
*शंख, चक्र, गदा और कमल आदि के द्वारा [[प्रद्युम्न]]मूर्ति धारण करनेवाले भगवान को नमस्कार है। | *शंख, चक्र, गदा और कमल आदि के द्वारा [[प्रद्युम्न]]मूर्ति धारण करनेवाले भगवान को नमस्कार है। | ||
*गदा, शंख, कमल तथा चक्रधारी [[ | *गदा, शंख, कमल तथा चक्रधारी [[अनिरुद्ध]] को प्रणाम है। | ||
*पद्म, शंख, गदा और चक्र से चिह्नित पुरुषोत्तम रूप को नमस्कार है। | *पद्म, शंख, गदा और चक्र से चिह्नित पुरुषोत्तम रूप को नमस्कार है। | ||
*गदा, शंख, चक्र और पद्म ग्रहण करने वाले अधोक्षज को प्रणाम है। | *गदा, शंख, चक्र और पद्म ग्रहण करने वाले अधोक्षज को प्रणाम है। | ||
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*संकर्षण मूर्ति में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है। | *संकर्षण मूर्ति में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है। | ||
*प्रद्युम्न के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है। | *प्रद्युम्न के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है। | ||
* | *अनिरुद्ध की मूर्ति गोल होती है और उसके भीतरी भाग में गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह द्वार भाग में नील वर्ण और तीन रेखाओं से युक्त भी होती है। | ||
*भगवान नारायण श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है। | *भगवान नारायण श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है। | ||
*भगवान नृसिंह की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं। ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है। वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं। | *भगवान नृसिंह की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं। ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है। वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं। | ||
*जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों; वह वाराह भगवान का स्वरूप है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है। भगवान वाराह भी सबकी रक्षा करने वाले हैं। कच्छप की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है। उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है। उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है। | *जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों; वह वाराह भगवान का स्वरूप है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है। भगवान वाराह भी सबकी रक्षा करने वाले हैं। कच्छप की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है। उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है। उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है। | ||
*श्रीधर की मूर्ति में पाँच रेखाएँ होती हैं | *श्रीधर की मूर्ति में पाँच रेखाएँ होती हैं | ||
*वनमाली के स्वरूप में गदा का चिह्न होता है। | *वनमाली के स्वरूप में गदा का चिह्न होता है। | ||
*गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन मूर्ति की पहचान है। | *गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन मूर्ति की पहचान है। | ||
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*जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्री[[कृष्ण]] का स्वरूप है। वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है। | *जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्री[[कृष्ण]] का स्वरूप है। वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है। | ||
*हयग्रीव मूर्ति अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है। | *हयग्रीव मूर्ति अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है। | ||
*भगवान वैकुण्ठ कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है। | *भगवान वैकुण्ठ [[कौस्तुभ मणि]] धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है। | ||
*मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है। उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है। | *मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है। उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है। | ||
*जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री [[राम|रामचन्द्र]]जी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं। | *जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री [[राम|रामचन्द्र]]जी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं। | ||
*[[द्वारका]]पुरी में स्थित शालिग्राम स्वरूप भगवान गदाधर को नमस्कार है, उनका दर्शन बड़ा ही उत्तम है। | *[[द्वारका]]पुरी में स्थित शालिग्राम स्वरूप भगवान गदाधर को नमस्कार है, उनका दर्शन बड़ा ही उत्तम है। | ||
#भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं। | #भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं। | ||
#लक्ष्मीनारायण दो चक्रों से | #लक्ष्मीनारायण दो चक्रों से | ||
#त्रिविक्रम तीन से | #त्रिविक्रम तीन से | ||
#चतुर्व्यूह चार से | #चतुर्व्यूह चार से | ||
#वासुदेव पाँच से | #वासुदेव पाँच से | ||
#प्रद्युम्न छ: से | #प्रद्युम्न छ: से | ||
#संकर्षण सात से | #संकर्षण सात से | ||
#पुरुषोत्तम आठ से | #पुरुषोत्तम आठ से | ||
#नवव्यूह नव से | #नवव्यूह नव से | ||
#दशावतार दस से | #दशावतार दस से | ||
# | #अनिरुद्ध ग्यारह से | ||
#द्वादशात्मा बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं। | #द्वादशात्मा बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं। | ||
#इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है। | #इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है। | ||
*दण्ड, कमण्डलु और अक्षमाला धारण करनेवाले चतुर्मुख ब्रह्मा तथा | *दण्ड, कमण्डलु और अक्षमाला धारण करनेवाले चतुर्मुख ब्रह्मा तथा | ||
*पाँच मुख और दस भुजाओं से सुशोभित वृषध्वज महादेव जी अपने आयुधों सहित शालग्रामशिला में स्थित रहते हैं। | *पाँच मुख और दस भुजाओं से सुशोभित वृषध्वज महादेव जी अपने आयुधों सहित शालग्रामशिला में स्थित रहते हैं। | ||
*[[गौरी]], चण्डी, [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] और महालक्ष्मी आदि माताएँ, हाथ में कमल धारण करनेवाले [[सूर्य|सूर्यदेव]], हाथी के समान कंधेवाले गजानन [[गणेश]], छ: मुखों वाले स्वामी [[कार्तिकेय]] तथा और भी बहुत-से देवगण शालिग्राम प्रतिमा में मौजूद रहते हैं, अत: मन्दिर में शालिग्राम शिला की स्थापना अथवा पूजा करने पर ये उपर्युक्त [[देवता]] भी स्थापित और पूजित होते हैं। जो पुरुष ऐसा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है। | *[[गौरी]], चण्डी, [[सरस्वती देवी|सरस्वती]] और महालक्ष्मी आदि माताएँ, हाथ में कमल धारण करनेवाले [[सूर्य देवता|सूर्यदेव]], हाथी के समान कंधेवाले गजानन [[गणेश]], छ: मुखों वाले स्वामी [[कार्तिकेय]] तथा और भी बहुत-से देवगण शालिग्राम प्रतिमा में मौजूद रहते हैं, अत: मन्दिर में शालिग्राम शिला की स्थापना अथवा पूजा करने पर ये उपर्युक्त [[देवता]] भी स्थापित और पूजित होते हैं। जो पुरुष ऐसा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है। | ||
==प्राप्तिस्थल== | ==प्राप्तिस्थल== | ||
गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है। बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है। पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं। जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है। जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं। जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है। जो शालग्राम-शिला की क़ीमत लगाता है, जो बेचता है, जो विक्रय का अनुमोदन करता है तथा जो उसकी परीक्षा करके मूल्य का समर्थन करता है, वे सब नरक में पड़ते हैं। इसलिये शालिग्राम शिला और गोमती चक्र की | गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है। बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है। पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं। जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है। जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं। जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है। जो शालग्राम-शिला की क़ीमत लगाता है, जो बेचता है, जो विक्रय का अनुमोदन करता है तथा जो उसकी परीक्षा करके मूल्य का समर्थन करता है, वे सब नरक में पड़ते हैं। इसलिये शालिग्राम शिला और गोमती चक्र की ख़रीद-बिक्री छोड़ देनी चाहिये। शालिग्राम-स्थल से प्रकट हुए भगवान शालिग्राम और द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र- इन दोनों देवताओं का जहाँ समागम होता है, वहाँ मोक्ष मिलने में तनिक भी सन्देह नहीं है। द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं। ओंकार रूप तथा नित्यानन्द स्वरूप शालिग्राम को नमस्कार है। | ||
==तिलक की विधि== | ==तिलक की विधि== | ||
तिलक की विधि का वर्णन इस प्रकार है- | तिलक की विधि का वर्णन इस प्रकार है- | ||
*ललाट में केशव | *ललाट में केशव | ||
*कण्ठ में श्रीपुरुषोत्तम | *कण्ठ में श्रीपुरुषोत्तम | ||
*नाभि में नारायणदेव | *नाभि में नारायणदेव | ||
*हृदय में वैकुण्ठ | *हृदय में वैकुण्ठ | ||
*बायीं पसली में दामोदर | *बायीं पसली में दामोदर | ||
*दाहिनी पसली में त्रिविक्रम | *दाहिनी पसली में त्रिविक्रम | ||
*मस्तक पर हृषीकेश | *मस्तक पर हृषीकेश | ||
*पीठ में पद्मनाभ | *पीठ में पद्मनाभ | ||
*कानों में [[गंगा]]-[[यमुना]] | *कानों में [[गंगा नदी|गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] | ||
*दोनों भुजाओं में श्रीकृष्ण और हरि का निवास समझना चाहिये। उपर्युक्त स्थानों में तिलक करने से ये बारह देवता संतुष्ट होते हैं। तिलक करते समय इन बारह नामों का उच्चारण करना चाहिये। जो ऐसा करता है, वह सब पापों से शुद्ध होकर विष्णु लोक को जाता है। भगवान के चरणोदक को पीना चाहिये और पुत्र, मित्र तथा स्त्री आदि समस्त परिवार के शरीर पर उसे छिड़कना चाहिये। श्रीविष्णु का चरणोदक यदि पी लिया जाय तो वह करोड़ों जन्मों के पाप का नाश | *दोनों भुजाओं में श्रीकृष्ण और हरि का निवास समझना चाहिये। | ||
उपर्युक्त स्थानों में तिलक करने से ये बारह देवता संतुष्ट होते हैं। तिलक करते समय इन बारह नामों का उच्चारण करना चाहिये। जो ऐसा करता है, वह सब पापों से शुद्ध होकर विष्णु लोक को जाता है। भगवान के चरणोदक को पीना चाहिये और पुत्र, मित्र तथा स्त्री आदि समस्त परिवार के शरीर पर उसे छिड़कना चाहिये। श्रीविष्णु का चरणोदक यदि पी लिया जाय तो वह करोड़ों जन्मों के पाप का नाश करने वाला होता है। | |||
==अपराध और उनसे छूटने के उपाय== | ==अपराध और उनसे छूटने के उपाय== | ||
#भगवान के मन्दिर में खड़ाऊँ या सवारी पर चढ़कर जाना | #भगवान के मन्दिर में [[खड़ाऊँ]] या सवारी पर चढ़कर जाना | ||
#भगवत-सम्बन्धी उत्सवों का सेवन न करना | #भगवत-सम्बन्धी उत्सवों का सेवन न करना | ||
#भगवान के सामने जाकर प्रणाम न करना | #भगवान के सामने जाकर प्रणाम न करना | ||
#उच्छिष्ट या अपवित्र अवस्था में भगवान की वन्दना करना | #उच्छिष्ट या अपवित्र अवस्था में भगवान की वन्दना करना | ||
#एक हाथ से प्रणाम करना | #एक हाथ से प्रणाम करना | ||
#भगवान के सामने ही एक स्थान पर खड़े-खड़े प्रदक्षिणा करना | #भगवान के सामने ही एक स्थान पर खड़े-खड़े प्रदक्षिणा करना | ||
#भगवान के आगे पाँव फैलाना | #भगवान के आगे पाँव फैलाना | ||
#पलंग पर बैठना | #पलंग पर बैठना | ||
#सोना | #सोना | ||
#खाना | #खाना | ||
#झूठ बोलना | #झूठ बोलना | ||
# | #ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना | ||
#परस्पर बात करना | #परस्पर बात करना | ||
#रोना | #रोना | ||
#झगड़ा करना | #झगड़ा करना | ||
#किसी को दण्ड देना | #किसी को दण्ड देना | ||
#अपने बल के घंमड में आकर किसी पर अनुग्रह करना | #अपने बल के घंमड में आकर किसी पर अनुग्रह करना | ||
#स्त्रियों के प्रति कठोर बात कहना | #स्त्रियों के प्रति कठोर बात कहना | ||
#कम्बल ओढ़ना | #कम्बल ओढ़ना | ||
#दूसरे की निन्दा | #दूसरे की निन्दा | ||
#परायी स्तुति | #परायी स्तुति | ||
#गाली बकना | #गाली बकना | ||
#अधोवायु का त्याग (अपशब्द) करना | #अधोवायु का त्याग (अपशब्द) करना | ||
#शक्ति रहते हुए गौण उपचारों से पूजा करना | #शक्ति रहते हुए गौण उपचारों से पूजा करना | ||
#मुख्य उपचारों का प्रबन्ध न करना | #मुख्य उपचारों का प्रबन्ध न करना | ||
#भगवान को भोग लगाये बिना ही भोजन करना | #भगवान को भोग लगाये बिना ही भोजन करना | ||
#सामयिक फल आदि को भगवान की सेवा में अर्पण न करना | #सामयिक फल आदि को भगवान की सेवा में अर्पण न करना | ||
#उपयोग में लाने से बचे हुए भोजन को भगवान के लिये निवेदन करना | #उपयोग में लाने से बचे हुए भोजन को भगवान के लिये निवेदन करना | ||
#भोजन का नाम लेकर दूसरे की निन्दा तथा प्रशंसा करना | #भोजन का नाम लेकर दूसरे की निन्दा तथा प्रशंसा करना | ||
#गुरु के समीप मौन रहना | #गुरु के समीप मौन रहना | ||
#आत्म-प्रशंसा करना | #आत्म-प्रशंसा करना | ||
#देवताओं को कोसना | #देवताओं को कोसना | ||
ये विष्णु के प्रति बत्तीस अपराध बताये गये हैं। 'मधुसूदन! मुझसे प्रतिदिन हज़ारों अपराध होते रहते हैं; किन्तु मैं आपका ही सेवक हूँ, ऐसा समझकर मुझे उनके लिये क्षमा करें।'<ref>अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया। तवाहमिति माँ मत्वा क्षमस्व मधुसूदन॥ (पद्म पुराण,79।44)</ref>। इस मन्त्र का उच्चारण करके भगवान के सामने [[पृथ्वी देवी|पृथ्वी]] पर दण्ड की भाँति पड़कर साष्टांग प्रणाम करना चाहिये। ऐसा करने से भगवान श्रीहरि सदा हज़ारों अपराध क्षमा करते हैं। | |||
==हविष्यात्र== | ==हविष्यात्र== | ||
#द्विजातियों के लिये सबेरे और शाम- दो ही समय भोजन करना वेद विहित है। | #द्विजातियों के लिये सबेरे और शाम- दो ही समय भोजन करना वेद विहित है। | ||
#गोल लौकी, लहसुन, ताड़का फल और भाँटा- इन्हें वैष्णव पुरुषों को नहीं खाना चाहिये। | #गोल लौकी, [[लहसुन]], ताड़का फल और भाँटा- इन्हें वैष्णव पुरुषों को नहीं खाना चाहिये। | ||
#वैष्णव के लिये बड़, पीपल, मदार, कुम्भी, तिन्दुक, कोविदार (कचनार) और [[कदम्ब]] के पत्ते में भोजन करना निषिद्ध है। | #वैष्णव के लिये बड़, [[पीपल]], मदार, कुम्भी, तिन्दुक, कोविदार ([[कचनार]]) और [[कदम्ब]] के पत्ते में भोजन करना निषिद्ध है। | ||
#जला हुआ तथा भगवान को अर्पण न किया हुआ अन्न, जम्बीर और बिजौरा नीबू, शाक तथा ख़ाली नमक भी वैष्णव को | #जला हुआ तथा भगवान को अर्पण न किया हुआ अन्न, जम्बीर और बिजौरा नीबू, शाक तथा ख़ाली नमक भी वैष्णव को नहीं खाना चाहिये। | ||
#यदि दैवात कभी खा ले तो भगवन्नाम का स्मरण करना चाहिये। | #यदि दैवात कभी खा ले तो भगवन्नाम का स्मरण करना चाहिये। | ||
#हेमन्त ऋतु में उत्पन्न होने वाला | #हेमन्त ऋतु में उत्पन्न होने वाला सफ़ेद [[धान]] जो सड़ा हुआ न हो, मूँग, [[तिल]], [[जौ|यव]], केराव, कंगनी, नीवार (तीना), शाक, हिलमोचिका (हिलसा), कालशाक, बथुवा, मूली, दूसरे-दूसरे मूल-शाक, सेंधा और साँभर नमक, [[गाय]] का [[दही]], गाय का [[घी]], बिना माखन निकाला हुआ गाय का [[दूध]], कटहल, आम हर्रे, पिप्पली, [[ज़ीरा]], नारंगी, [[इमली]], [[केला]], लवली (हरफा रेवरी), आँवले का फल, गुड़ के सिवा ईंख के रस से तैयार होने वाली अन्य सभी वस्तुएँ तथा बिना तेल के पकाया हुआ अन्न-इन सभी खाद्य पदार्थों को मुनि लोग हविष्यान्न कहते हैं। | ||
==तुलसी की महिमा== | ==तुलसी की महिमा== | ||
जो मनुष्य तुलसी के पत्र और पुष्प आदि से युक्त माला धारण करता है, उसको भी विष्णु ही समझना चाहिये। आँवले का वृक्ष लगाकर मनुष्य विष्णु के समान हो जाता है। आँवले के चारों ओर साढे तीन सौ हाथ की भूमि को कुरुक्षेत्र जानना चाहिये। तुलसी की लकड़ी के रुद्राक्ष के समान दाने बनाकर उनके द्वारा तैयार की हुई माला कण्ठ में धारण करके भगवान का पूजन आरम्भ करना चाहिये। भगवान को चढ़ायी हुई तुलसी की माला मस्तक पर धारण करे तथा भगवान को अर्पण किये हुए चन्दन के द्वारा अपने अंगों पर भगवान का नाम लिखे। यदि तुलसी के काष्ठ की बनी हुई मालाओं से अलकृंत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटिगुना फल | [[चित्र:Holy basil.jpg|thumb|[[तुलसी]]]] | ||
{{Main| तुलसी }} | |||
जो मनुष्य [[तुलसी]] के पत्र और पुष्प आदि से युक्त माला धारण करता है, उसको भी [[विष्णु]] ही समझना चाहिये। आँवले का वृक्ष लगाकर मनुष्य विष्णु के समान हो जाता है। आँवले के चारों ओर साढे तीन सौ हाथ की भूमि को [[कुरुक्षेत्र]] जानना चाहिये। तुलसी की लकड़ी के [[रुद्राक्ष]] के समान दाने बनाकर उनके द्वारा तैयार की हुई माला कण्ठ में धारण करके भगवान का पूजन आरम्भ करना चाहिये। भगवान को चढ़ायी हुई तुलसी की माला मस्तक पर धारण करे तथा भगवान को अर्पण किये हुए [[चन्दन]] के द्वारा अपने अंगों पर भगवान का नाम लिखे। यदि तुलसी के काष्ठ की बनी हुई मालाओं से अलकृंत होकर मनुष्य [[देवता|देवताओं]] और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटिगुना फल देने वाला होता है। जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ की बनी हुई माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुन: प्रसाद रूप से उसको भक्ति पूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं। पाद्य आदि उपचारों से तुलसी की पूजा करके इस मन्त्र का उच्चारण करे- जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर [[यमराज]] को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान [[श्रीकृष्ण]] के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्ष रूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है। <ref> या द्रष्टानिखिलाघसंशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।<br /> | |||
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:॥ (पद्मपुराण) </ref> | प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:॥ (पद्मपुराण) </ref> | ||
==टीका | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | <references/> | ||
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05:03, 4 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
- शालिग्राम / 'सालिग्राम'
पद्म पुराण के अनुसार चार भुजाधारी भगवान विष्णु के दाहिनी एवं ऊर्ध्व भुजा के क्रम से अस्त्र विशेष ग्रहण करने पर केशव आदि नाम होते हैं अर्थात, दाहिनी ओर का ऊपर का हाथ, दाहिनी ओर का नीचे का हाथ, बायीं ओर का ऊपर का हाथ और बायीं ओर का नीचे का हाथ- इस क्रम से चारों हाथों में शंख, चक्र आदि आयुधों को क्रम या व्यतिक्रमपूर्वक धारण करने पर भगवान की भिन्न-भिन्न संज्ञाएँ होती हैं। उन्हीं संज्ञाओं का निर्देश करते हुए यहाँ भगवान का पूजन बतलाया जाता है।
- उपर्युक्त क्रम से चारों हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करने वाले विष्णु का नाम 'केशव' है।
- पद्म, गदा, चक्र और शंख के क्रम से शस्त्र धारण करने पर उन्हें 'नारायण' कहते हैं।
- क्रमश: चक्र, शंख, पद्म और गदा ग्रहण करने से वे 'माधव' कहलाते हैं।
- गदा, पद्म, शंख और चक्र-इस क्रम से आयुध धारण करने वाले भगवान का नाम 'गोविन्द' है।
- पद्म, शंख, चक्र और गदाधारी विष्णु रूप भगवान को प्रणाम है।
- शंख, पद्म, गदा और चक्र धारण करने वाले मधुसूदन-विग्रह को नमस्कार है।
- गदा, चक्र, शंख और पद्म से युक्त त्रिविक्रम को तथा
- चक्र, गदा, पद्म और शंखधारी वामन मूर्ति को प्रणाम है।
- चक्र, पद्म और गदा धारण करने वाले श्रीधर रूप को नमस्कार है।
- चक्र, गदा, शंख तथा पद्मधारी हृषीकेश! आपको प्रणाम है।
- पद्म, शंख, गदा और चक्र ग्रहण करने वाले पद्मनाभ विग्रह को नमस्कार है।
- शंख, गदा, चक्र और पद्मधारी दामोदर! आपको मेरा प्रणाम है।
- शंख, कमल, चक्र तथा गदा धारण करने वाले संकर्षण को नमस्कार है।
- चक्र, शंख गदा तथा पद्म से युक्त भगवान वासुदेव! आपको प्रणाम है।
- शंख, चक्र, गदा और कमल आदि के द्वारा प्रद्युम्नमूर्ति धारण करनेवाले भगवान को नमस्कार है।
- गदा, शंख, कमल तथा चक्रधारी अनिरुद्ध को प्रणाम है।
- पद्म, शंख, गदा और चक्र से चिह्नित पुरुषोत्तम रूप को नमस्कार है।
- गदा, शंख, चक्र और पद्म ग्रहण करने वाले अधोक्षज को प्रणाम है।
- पद्म, गदा, शंख और चक्र धारण करने वाले नृसिंह भगवान को नमस्कार है।
- पद्म, चक्र, शंख और गदा लेने वाले अच्युतस्वरूप को प्रणाम है।
- गदा, पद्म, चक्र और शंखधारी श्रीकृष्ण विग्रह को नमस्कार है।
शालिग्राम का स्वरूप और महिमा का वर्णन
- जिस शालिग्राम-शिला में द्वार-स्थान पर परस्पर सटे हुए दो चक्र हों, जो शुक्ल वर्ण की रेखा से अंकित और शोभा सम्पन्न दिखायी देती हों, उसे भगवान श्री गदाधर का स्वरूप समझना चाहिये।
- संकर्षण मूर्ति में दो सटे हुए चक्र होते हैं, लाल रेखा होती है और उसका पूर्वभाग कुछ मोटा होता है।
- प्रद्युम्न के स्वरूप में कुछ-कुछ पीलापन होता है और उसमें चक्र का चिह्न सूक्ष्म रहता है।
- अनिरुद्ध की मूर्ति गोल होती है और उसके भीतरी भाग में गहरा एवं चौड़ा छेद होता है; इसके सिवा, वह द्वार भाग में नील वर्ण और तीन रेखाओं से युक्त भी होती है।
- भगवान नारायण श्याम वर्ण के होते हैं, उनके मध्य भाग में गदा के आकार की रेखा होती है और उनका नाभि-कमल बहुत ऊँचा होता है।
- भगवान नृसिंह की मूर्ति में चक्र का स्थूल चिह्न रहता है, उनका वर्ण कपिल होता है तथा वे तीन या पाँच बिन्दुओं से युक्त होते हैं। ब्रह्मचारी के लिये उन्हीं का पूजन विहित है। वे भक्तों की रक्षा करनेवाले हैं।
- जिस शालिग्राम-शिला में दो चक्र के चिह्न विषम भाव से स्थित हों, तीन लिंग हों तथा तीन रेखाएँ दिखायी देती हों; वह वाराह भगवान का स्वरूप है, उसका वर्ण नील तथा आकार स्थूल होता है। भगवान वाराह भी सबकी रक्षा करने वाले हैं। कच्छप की मूर्ति श्याम वर्ण की होती है। उसका आकार पानी की भँवर के समान गोल होता है। उसमें यत्र-तत्र बिन्दुओं के चिह्न देखे जाते हैं तथा उसका पृष्ठ-भाग श्वेत रंग का होता है।
- श्रीधर की मूर्ति में पाँच रेखाएँ होती हैं
- वनमाली के स्वरूप में गदा का चिह्न होता है।
- गोल आकृति, मध्यभाग में चक्र का चिह्न तथा नीलवर्ण, यह वामन मूर्ति की पहचान है।
- जिसमें नाना प्रकार की अनेकों मूर्तियों तथा सर्प-शरीर के चिह्न होते हैं, वह भगवान अनन्त की प्रतिमा है।
- दामोदर की मूर्ति स्थूलकाय एवं नीलवर्ण की होती है। उसके मध्य भाग में चक्र का चिह्न होता है। भगवान दामोदर नील चिह्न से युक्त होकर संकर्षण के द्वारा जगत की रक्षा करते हैं।
- जिसका वर्ण लाल है, तथा जो लम्बी-लम्बी रेखा, छिद्र, एक चक्र और कमल आदि से युक्त एवं स्थूल है, उस शालिग्राम को ब्रह्मा की मूर्ति समझनी चाहिये।
- जिसमें बृहत छिद्र, स्थूल चक्र का चिह्न और कृष्ण वर्ण हो, वह श्रीकृष्ण का स्वरूप है। वह बिन्दुयुक्त और बिन्दुशून्य दोनों ही प्रकार का देखा जाता है।
- हयग्रीव मूर्ति अंकुश के समान आकार वाली और पाँच रेखाओं से युक्त होती है।
- भगवान वैकुण्ठ कौस्तुभ मणि धारण किये रहते हैं। उनकी मूर्ति बड़ी निर्मल दिखायी देती है। वह एक चक्र से चिह्नित और श्याम वर्ण की होती है।
- मत्स्य भगवान की मूर्ति बृहत कमल के आकार की होती है। उसका रंग श्वेत होता है तथा उसमें हार की रेखा देखी जाती है।
- जिस शालिग्राम का वर्ण श्याम हो, जिसके दक्षिण भाग में एक रेखा दिखायी देती हो तथा जो तीन चक्रों के चिह्न से युक्त हो, वह भगवान श्री रामचन्द्रजी का स्वरूप है, वे भगवान सबकी रक्षा करनेवाले हैं।
- द्वारकापुरी में स्थित शालिग्राम स्वरूप भगवान गदाधर को नमस्कार है, उनका दर्शन बड़ा ही उत्तम है।
- भगवान गदाधर एक चक्र से चिह्नित देखे जाते हैं।
- लक्ष्मीनारायण दो चक्रों से
- त्रिविक्रम तीन से
- चतुर्व्यूह चार से
- वासुदेव पाँच से
- प्रद्युम्न छ: से
- संकर्षण सात से
- पुरुषोत्तम आठ से
- नवव्यूह नव से
- दशावतार दस से
- अनिरुद्ध ग्यारह से
- द्वादशात्मा बारह चक्रों से युक्त होकर जगत की रक्षा करते हैं।
- इससे अधिक चक्र चिह्न धारण करने वाले भगवान का नाम अनन्त है।
- दण्ड, कमण्डलु और अक्षमाला धारण करनेवाले चतुर्मुख ब्रह्मा तथा
- पाँच मुख और दस भुजाओं से सुशोभित वृषध्वज महादेव जी अपने आयुधों सहित शालग्रामशिला में स्थित रहते हैं।
- गौरी, चण्डी, सरस्वती और महालक्ष्मी आदि माताएँ, हाथ में कमल धारण करनेवाले सूर्यदेव, हाथी के समान कंधेवाले गजानन गणेश, छ: मुखों वाले स्वामी कार्तिकेय तथा और भी बहुत-से देवगण शालिग्राम प्रतिमा में मौजूद रहते हैं, अत: मन्दिर में शालिग्राम शिला की स्थापना अथवा पूजा करने पर ये उपर्युक्त देवता भी स्थापित और पूजित होते हैं। जो पुरुष ऐसा करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष आदि की प्राप्ति होती है।
प्राप्तिस्थल
गण्डकी अर्थात नारायणी नदी के एक प्रदेश में शालिग्राम स्थल नाम का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है; वहाँ से निकलनेवाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है। फिर यदि उसका पूजन किया जाय, तब तो उसके फल के विषय में कहना ही क्या है; वह भगवान के समीप पहुँचाने वाला है। बहुत जन्मों के पुण्य से यदि कभी गोष्पद के चिह्न से युक्त श्रीकृष्ण शिला प्राप्त हो जाय तो उसी के पूजन से मनुष्य के पुनर्जन्म की समाप्ति हो जाती है। पहले शालिग्राम-शिला की परीक्षा करनी चाहिये; यदि वह काली और चिकनी हो तो उत्तम है। यदि उसकी कालिमा कुछ कम हो तो वह मध्यम श्रेणी की मानी गयी है। और यदि उसमें दूसरे किसी रंग का सम्मिश्रण हो तो वह मिश्रित फल प्रदान करने वाली होती है। जैसे सदा काठ के भीतर छिपी हुई आग मन्थन करने से प्रकट होती है, उसी प्रकार भगवान विष्णु सर्वत्र व्याप्त होने पर भी शालिग्राम शिला में विशेष रूप से अभिव्यक्त होते हैं। जो प्रतिदिन द्वारका की शिला-गोमती चक्र से युक्त बारह शालिग्राम मूर्तियों का पूजन करता है, वह वैकुण्ठ लोक में प्रतिष्ठित होता है। जो मनुष्य शालिग्राम-शिला के भीतर गुफ़ा का दर्शन करता है, उसके पितर तृप्त होकर कल्प के अन्ततक स्वर्ग में निवास करते हैं। जहाँ द्वारकापुरी की शिला- अर्थात गोमती चक्र रहता है, वह स्थान वैकुण्ठ लोक माना जाता है; वहाँ मृत्यु को प्राप्त हुआ मनुष्य विष्णुधाम में जाता है। जो शालग्राम-शिला की क़ीमत लगाता है, जो बेचता है, जो विक्रय का अनुमोदन करता है तथा जो उसकी परीक्षा करके मूल्य का समर्थन करता है, वे सब नरक में पड़ते हैं। इसलिये शालिग्राम शिला और गोमती चक्र की ख़रीद-बिक्री छोड़ देनी चाहिये। शालिग्राम-स्थल से प्रकट हुए भगवान शालिग्राम और द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र- इन दोनों देवताओं का जहाँ समागम होता है, वहाँ मोक्ष मिलने में तनिक भी सन्देह नहीं है। द्वारका से प्रकट हुए गोमती चक्र से युक्त, अनेकों चक्रों से चिह्नित तथा चक्रासन-शिला के समान आकार वाले भगवान शालिग्राम साक्षात चित्स्वरूप निरंजन परमात्मा ही हैं। ओंकार रूप तथा नित्यानन्द स्वरूप शालिग्राम को नमस्कार है।
तिलक की विधि
तिलक की विधि का वर्णन इस प्रकार है-
- ललाट में केशव
- कण्ठ में श्रीपुरुषोत्तम
- नाभि में नारायणदेव
- हृदय में वैकुण्ठ
- बायीं पसली में दामोदर
- दाहिनी पसली में त्रिविक्रम
- मस्तक पर हृषीकेश
- पीठ में पद्मनाभ
- कानों में गंगा-यमुना
- दोनों भुजाओं में श्रीकृष्ण और हरि का निवास समझना चाहिये।
उपर्युक्त स्थानों में तिलक करने से ये बारह देवता संतुष्ट होते हैं। तिलक करते समय इन बारह नामों का उच्चारण करना चाहिये। जो ऐसा करता है, वह सब पापों से शुद्ध होकर विष्णु लोक को जाता है। भगवान के चरणोदक को पीना चाहिये और पुत्र, मित्र तथा स्त्री आदि समस्त परिवार के शरीर पर उसे छिड़कना चाहिये। श्रीविष्णु का चरणोदक यदि पी लिया जाय तो वह करोड़ों जन्मों के पाप का नाश करने वाला होता है।
अपराध और उनसे छूटने के उपाय
- भगवान के मन्दिर में खड़ाऊँ या सवारी पर चढ़कर जाना
- भगवत-सम्बन्धी उत्सवों का सेवन न करना
- भगवान के सामने जाकर प्रणाम न करना
- उच्छिष्ट या अपवित्र अवस्था में भगवान की वन्दना करना
- एक हाथ से प्रणाम करना
- भगवान के सामने ही एक स्थान पर खड़े-खड़े प्रदक्षिणा करना
- भगवान के आगे पाँव फैलाना
- पलंग पर बैठना
- सोना
- खाना
- झूठ बोलना
- ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना
- परस्पर बात करना
- रोना
- झगड़ा करना
- किसी को दण्ड देना
- अपने बल के घंमड में आकर किसी पर अनुग्रह करना
- स्त्रियों के प्रति कठोर बात कहना
- कम्बल ओढ़ना
- दूसरे की निन्दा
- परायी स्तुति
- गाली बकना
- अधोवायु का त्याग (अपशब्द) करना
- शक्ति रहते हुए गौण उपचारों से पूजा करना
- मुख्य उपचारों का प्रबन्ध न करना
- भगवान को भोग लगाये बिना ही भोजन करना
- सामयिक फल आदि को भगवान की सेवा में अर्पण न करना
- उपयोग में लाने से बचे हुए भोजन को भगवान के लिये निवेदन करना
- भोजन का नाम लेकर दूसरे की निन्दा तथा प्रशंसा करना
- गुरु के समीप मौन रहना
- आत्म-प्रशंसा करना
- देवताओं को कोसना
ये विष्णु के प्रति बत्तीस अपराध बताये गये हैं। 'मधुसूदन! मुझसे प्रतिदिन हज़ारों अपराध होते रहते हैं; किन्तु मैं आपका ही सेवक हूँ, ऐसा समझकर मुझे उनके लिये क्षमा करें।'[1]। इस मन्त्र का उच्चारण करके भगवान के सामने पृथ्वी पर दण्ड की भाँति पड़कर साष्टांग प्रणाम करना चाहिये। ऐसा करने से भगवान श्रीहरि सदा हज़ारों अपराध क्षमा करते हैं।
हविष्यात्र
- द्विजातियों के लिये सबेरे और शाम- दो ही समय भोजन करना वेद विहित है।
- गोल लौकी, लहसुन, ताड़का फल और भाँटा- इन्हें वैष्णव पुरुषों को नहीं खाना चाहिये।
- वैष्णव के लिये बड़, पीपल, मदार, कुम्भी, तिन्दुक, कोविदार (कचनार) और कदम्ब के पत्ते में भोजन करना निषिद्ध है।
- जला हुआ तथा भगवान को अर्पण न किया हुआ अन्न, जम्बीर और बिजौरा नीबू, शाक तथा ख़ाली नमक भी वैष्णव को नहीं खाना चाहिये।
- यदि दैवात कभी खा ले तो भगवन्नाम का स्मरण करना चाहिये।
- हेमन्त ऋतु में उत्पन्न होने वाला सफ़ेद धान जो सड़ा हुआ न हो, मूँग, तिल, यव, केराव, कंगनी, नीवार (तीना), शाक, हिलमोचिका (हिलसा), कालशाक, बथुवा, मूली, दूसरे-दूसरे मूल-शाक, सेंधा और साँभर नमक, गाय का दही, गाय का घी, बिना माखन निकाला हुआ गाय का दूध, कटहल, आम हर्रे, पिप्पली, ज़ीरा, नारंगी, इमली, केला, लवली (हरफा रेवरी), आँवले का फल, गुड़ के सिवा ईंख के रस से तैयार होने वाली अन्य सभी वस्तुएँ तथा बिना तेल के पकाया हुआ अन्न-इन सभी खाद्य पदार्थों को मुनि लोग हविष्यान्न कहते हैं।
तुलसी की महिमा

जो मनुष्य तुलसी के पत्र और पुष्प आदि से युक्त माला धारण करता है, उसको भी विष्णु ही समझना चाहिये। आँवले का वृक्ष लगाकर मनुष्य विष्णु के समान हो जाता है। आँवले के चारों ओर साढे तीन सौ हाथ की भूमि को कुरुक्षेत्र जानना चाहिये। तुलसी की लकड़ी के रुद्राक्ष के समान दाने बनाकर उनके द्वारा तैयार की हुई माला कण्ठ में धारण करके भगवान का पूजन आरम्भ करना चाहिये। भगवान को चढ़ायी हुई तुलसी की माला मस्तक पर धारण करे तथा भगवान को अर्पण किये हुए चन्दन के द्वारा अपने अंगों पर भगवान का नाम लिखे। यदि तुलसी के काष्ठ की बनी हुई मालाओं से अलकृंत होकर मनुष्य देवताओं और पितरों के पूजनादि कार्य करे तो वह कोटिगुना फल देने वाला होता है। जो मनुष्य तुलसी के काष्ठ की बनी हुई माला भगवान विष्णु को अर्पित करके पुन: प्रसाद रूप से उसको भक्ति पूर्वक धारण करता है, उसके पातक नष्ट हो जाते हैं। पाद्य आदि उपचारों से तुलसी की पूजा करके इस मन्त्र का उच्चारण करे- जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों में चढ़ाने पर मोक्ष रूपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है। [2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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