"नंदि वर्मन तृतीय": अवतरणों में अंतर

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*[[नरसिंह वर्मन द्वितीय|नरसिंहवर्मा]] का उत्तराधिकारी परमेश्वरवर्मा द्वितीय था।  
'''नंदि वर्मन तृतीय''' (847-869 ई.), [[दंति वर्मन]] का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने अपने बाहुबल एवं पराक्रम से [[चोल वंश|चोलों]], [[पाण्ड्य साम्राज्य|पाण्ड्यों]] एवं [[चेर वंश|चेरों]] को पराजित कर पुनः एक बार [[पल्लव वंश|पल्लव]] साम्राज्य को शक्ति प्रदान की।
*उसके शासन काल में पल्लव राज्य में शान्ति और व्यवस्था क़ायम रही।
*पर आठवीं सदी के प्रथम चरण में जब उसकी मृत्यु हो गई, तो [[कांची|काञ्जी]] के राजसिंहासन के लिए अनेक राजकुमारों में गृहकलह प्रारम्भ हुए, जिसमें नन्दिवर्मा सफल हुआ।
*गृहकलह के काल में [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के चालुक्य राजाओं ने फिर पल्लव राज्य पर आक्रमण किया, और उसे जीत कर अपने अधीन कर लिया।
*पल्लवों को परास्त कर काञ्जी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने वाले इस वीर चालुक्य राजा का नाम विक्रमादित्य द्वितीय था।
*नन्दिवर्मा ने पल्लवों की सैन्यशक्ति को पुनः संगठित किया, और काञ्जी को चालुक्यों की अधीनता से मुक्त किया।
*निःसन्देह, नन्दिवर्मा बहुत वीर और महत्वाकांक्षी राजा था।
*वह केवल पल्लवों की स्वतंत्र सत्ता स्थापित करके ही संतुष्ट नहीं हुआ, अपितु दक्षिण दिशा में विजय यात्राएँ करके [[चोल साम्राज्य|चोल]] और [[पांड्य साम्राज्य|पांड्य]] देशों में भी उसने अपनी शक्ति का परिचय दिया।


{{प्रचार}}
*यह महान् पल्लव शासकों की पंक्ति का अंतिम पराक्रमी शासक था।
{{लेख प्रगति
*[[तमिल साहित्य]] के महान् कवि 'पोरुन्देवनार' को नंदि वर्मन का राजाश्रय मिला हुआ था।
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*तमिल काव्य 'नन्दिक्कलम्बकम' की रचना से इसके द्वारा विजित युद्धों के बारें में जानकारी मिलती है।
|प्रारम्भिक=
*इसके समय में मामल्लपुर तथा [[महाबलीपुरम]] के नगर अत्यन्त प्रसिद्ध हुए।
|माध्यमिक=
*नंदि वर्मन तृतीय की उपाधि 'अवनिनारायण' थी, 'नंदिप्कलम्बकम्' में इसे "चारों समुद्रों का स्वामी" कहा गया है।
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*इसके संरक्षण में [[तमिल भाषा|तमिल]] [[कवि]] 'पेरुन्देवनार' ने 'भारत वेणवा' नामक काव्य की रचना की थी।
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*वैलूर पाल्यम् अभिलेख में नंदि वर्मन तृतीय को [[विष्णु के अवतार|विष्णु का अवतार]] कहा गया है।
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
{{भारत के राजवंश}}


 
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[[Category:इतिहास_कोश]]
==संबंधित लेख==
{{पल्लव साम्राज्य}}
[[Category:इतिहास_कोश]][[Category:पल्लव साम्राज्य]]
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14:09, 30 जून 2017 के समय का अवतरण

नंदि वर्मन तृतीय (847-869 ई.), दंति वर्मन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी था। उसने अपने बाहुबल एवं पराक्रम से चोलों, पाण्ड्यों एवं चेरों को पराजित कर पुनः एक बार पल्लव साम्राज्य को शक्ति प्रदान की।

  • यह महान् पल्लव शासकों की पंक्ति का अंतिम पराक्रमी शासक था।
  • तमिल साहित्य के महान् कवि 'पोरुन्देवनार' को नंदि वर्मन का राजाश्रय मिला हुआ था।
  • तमिल काव्य 'नन्दिक्कलम्बकम' की रचना से इसके द्वारा विजित युद्धों के बारें में जानकारी मिलती है।
  • इसके समय में मामल्लपुर तथा महाबलीपुरम के नगर अत्यन्त प्रसिद्ध हुए।
  • नंदि वर्मन तृतीय की उपाधि 'अवनिनारायण' थी, 'नंदिप्कलम्बकम्' में इसे "चारों समुद्रों का स्वामी" कहा गया है।
  • इसके संरक्षण में तमिल कवि 'पेरुन्देवनार' ने 'भारत वेणवा' नामक काव्य की रचना की थी।
  • वैलूर पाल्यम् अभिलेख में नंदि वर्मन तृतीय को विष्णु का अवतार कहा गया है।


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