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जैकब हीरा सवा सौ साल पहले | '''जैकब हीरा''' अथवा '''विक्टोरिया हीरा''' (''Jacob Diamond'' OR ''Victoria Diamond'') सवा सौ साल पहले [[अफ़्रीका महाद्वीप|अफ़्रीका]] की किसी खान में कच्चे रूप में मिला था। वहां से इसे एक व्यवसाय संघ द्वारा ऐमस्टरडम लाया गया और कटवा कर इसे नया रूप दिया गया। कहते हैं कि, यह दुनिया के सबसे बड़े हीरे में से एक है इसका वजन 184.75 कैरेट (36.9 ग्राम) है। यदि आप इसकी तुलना [[कोहिनूर हीरा|कोहिनूर हीरे]] से करें तो पायेंगे कि कोहिनूर हीरे का वजन पहले लगभग 186.06 कैरेट (37.2 ग्राम) था। अंग्रेजी हुकूमत ने कोहिनूर हीरे की चमक बढ़ाने के लिये इसे तरशवाया और अब इसका वजन 106,06 कैरेट (21.6 ग्राम) हो गया है। जैकब हीरे आकार में कोहीनूर हीरे से दोगुने बड़े इस पारदर्शी हीरे की अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कीमत क़रीब 400 करोड़ रुपए है। जो वजन के हिसाब से विश्व में सातवें नम्बर पर आता है। | ||
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14:28, 28 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

जैकब हीरा अथवा विक्टोरिया हीरा (Jacob Diamond OR Victoria Diamond) सवा सौ साल पहले अफ़्रीका की किसी खान में कच्चे रूप में मिला था। वहां से इसे एक व्यवसाय संघ द्वारा ऐमस्टरडम लाया गया और कटवा कर इसे नया रूप दिया गया। कहते हैं कि, यह दुनिया के सबसे बड़े हीरे में से एक है इसका वजन 184.75 कैरेट (36.9 ग्राम) है। यदि आप इसकी तुलना कोहिनूर हीरे से करें तो पायेंगे कि कोहिनूर हीरे का वजन पहले लगभग 186.06 कैरेट (37.2 ग्राम) था। अंग्रेजी हुकूमत ने कोहिनूर हीरे की चमक बढ़ाने के लिये इसे तरशवाया और अब इसका वजन 106,06 कैरेट (21.6 ग्राम) हो गया है। जैकब हीरे आकार में कोहीनूर हीरे से दोगुने बड़े इस पारदर्शी हीरे की अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में कीमत क़रीब 400 करोड़ रुपए है। जो वजन के हिसाब से विश्व में सातवें नम्बर पर आता है।
भारत में
जैकब हीरे को भारत लाने का श्रेय एक व्यवसायी अलैक्जेंडर मालकन जैकब को जाता है। जैकब रहस्यमयी व्यक्ति था पर भारतीय राजाओं के विश्वास पात्र था। कहते हैं कि वह इटली में एक रोमन कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ था। किपलिंग के उपन्यास किम में ब्रितानी गुप्त सेवा के लगन साहब का व्यक्तित्व जैकब पर आधारित है। 1890 में जैकब ने इस हीरे को बेचने की बात छठे निजाम, महबूब अली पाशा से की। उस समय इसका दाम 1 करोड़ 20 लाख रुपये आंका गया पर बात बनी 46 लाख में। निजाम ने 20 लाख रुपये उसे हिन्दुस्तान में लाने के लिये दिये, फिर लेने से मना कर दिया क्योंकि ब्रिटिश रेजीडेंट ने इस पर आपत्ति कर दी। निजाम ने जब पैसे वापस मांगे तो जैकब उसे वापस नहीं कर पाया। इस पर कलकत्ता हाईकोर्ट में मुकदमा चला और सुलह के बाद यह इम्पीरियल डायमंड निजाम को मिल गया, जो बाद में जैकब डायमंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महबूब अली पाशा ने जैकब हीरे पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया और इसे भी अन्य हीरों की तरह अपने संग्रह में यूं ही रखे रखा। उनके सुपुत्र और अंतिम निजाम उस्मान अली खान को यह उनके पिता की मृत्यु के कई सालों बाद में उनकी जूते के अगले हिस्से में मिला। निजाम अपने जीवन में इसका प्रयोग पेपरवेट की तरह किया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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