"सुदामा चरित भाग-4": अवतरणों में अंतर
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(सुदामा ) - | (सुदामा ) - | ||
कामधेनु सुरतरू सहित, दीन्हीं सब बलवीर। | कामधेनु सुरतरू सहित, दीन्हीं सब बलवीर। | ||
जानि पीर | जानि पीर गुरु बन्धु जन, हरि हरि लीन्हीं पीर।।87।। | ||
विविध भॉति सेवा करी,.सुधा पियायो बाम। | विविध भॉति सेवा करी,.सुधा पियायो बाम। | ||
अति विनीत मृदु वचन कहि, सब पुरो मन काम।।88।। | अति विनीत मृदु वचन कहि, सब पुरो मन काम।।88।। | ||
लै आयसु, प्रिय स्नान करि, सुचि सुगन्ध सब लाइ। | लै आयसु, प्रिय स्नान करि, सुचि सुगन्ध सब लाइ। | ||
पूजी गौरि सोहाग हित, प्रीति सहित सुख पाइ।।89।। | पूजी गौरि सोहाग हित, प्रीति सहित सुख पाइ।।89।। | ||
षट्रस विविध प्रकार के, भोजन रचे बनाय। | षट्रस विविध प्रकार के, भोजन रचे बनाय। | ||
कंचन थार मंगाइ कै, रचि रचि धरे बनाय।।90।। | कंचन थार मंगाइ कै, रचि रचि धरे बनाय।।90।। | ||
कंचन चौकी डारि कै, दासी परम सुजानि। | कंचन चौकी डारि कै, दासी परम सुजानि। | ||
रतन जटित भाजन कनक , भरि गंगोदक आनि।।91।। | रतन जटित भाजन कनक, भरि गंगोदक आनि।।91।। | ||
घट कंचन को रतनयुत, सुचि सुगन्धि जल पूरि। | घट कंचन को रतनयुत, सुचि सुगन्धि जल पूरि। | ||
रच्छाधान समेत कै, जल प्रकास भरपूरि।।92।। | रच्छाधान समेत कै, जल प्रकास भरपूरि।।92।। | ||
रतन जटित पीढा कनक, आन्यो जेंवन काम। | रतन जटित पीढा कनक, आन्यो जेंवन काम। | ||
मरकत-मनि चौकी धरी, कछुक दूरि छबि धाम।।93।। | मरकत-मनि चौकी धरी, कछुक दूरि छबि धाम।।93।। | ||
चौकी लई मॅगाय कै, पग धोवन के काज। | चौकी लई मॅगाय कै, पग धोवन के काज। | ||
मनि-पादुका पवित्र अति, धरी विविध विधि साज।।94।। | मनि-पादुका पवित्र अति, धरी विविध विधि साज।।94।। | ||
चलि भोजन अब कीजिये, कह्यो दास मृदु भाखि। | चलि भोजन अब कीजिये, कह्यो दास मृदु भाखि। | ||
कृस्न कृस्न सानन्द कहि, धन्य भरी हरि साखि।।95।। | कृस्न कृस्न सानन्द कहि, धन्य भरी हरि साखि।।95।। | ||
बसन उतारे जाइ कै, धोवत चरन-सरोज। | बसन उतारे जाइ कै, धोवत चरन-सरोज। | ||
चौकी पै छबि देत यौं, जनु तनु धरे मनोज।।96।। | चौकी पै छबि देत यौं, जनु तनु धरे मनोज।।96।। | ||
पहिरि पादुका बिप्र बर, पीढा बैठे जाय। | पहिरि पादुका बिप्र बर, पीढा बैठे जाय। | ||
रति ते अति छवि- आगरी, पति सो हँसि मुसकाय।।97।। | रति ते अति छवि- आगरी, पति सो हँसि मुसकाय।।97।। | ||
बिबिध भाँति भोजन धरे, व्यंजन चारि प्रकार। | बिबिध भाँति भोजन धरे, व्यंजन चारि प्रकार। | ||
जोरी पछिओरी सकल, प्रथम कहे नहिं पार।।98।। | जोरी पछिओरी सकल, प्रथम कहे नहिं पार।।98।। | ||
हरिहिं समर्पो कन्त अब, कहो मन्द हँसि वाम। | हरिहिं समर्पो कन्त अब, कहो मन्द हँसि वाम। | ||
करि घंटा को नाद त्यों, हरि सपर्पि लै नाम।।99।। | करि घंटा को नाद त्यों, हरि सपर्पि लै नाम।।99।। | ||
अगिनि जेंवाय विधान सों, वैस्यदेव करि नेम। | अगिनि जेंवाय विधान सों, वैस्यदेव करि नेम। | ||
बली काढि जेंवन लगे, करत पवन तिय प्रेम।।100।। | बली काढि जेंवन लगे, करत पवन तिय प्रेम।।100।। | ||
बार बार पूछति प्रिया, लीजै जो रूचि होइ। | बार बार पूछति प्रिया, लीजै जो रूचि होइ। | ||
कृस्न- कृपा पूरन सबै, अबै परोसौं सोइ।।101।। | कृस्न- कृपा पूरन सबै, अबै परोसौं सोइ।।101।। | ||
जेंइ चुके, अँचवन लगे, करन हेतु विश्राम। | जेंइ चुके, अँचवन लगे, करन हेतु विश्राम। | ||
रतन जटित पलका-कनक, बुनो सो रेशम दाम।।102।। | रतन जटित पलका-कनक, बुनो सो रेशम दाम।।102।। | ||
ललित बिछौना, बिरचि कै, पाँयत कसि कै डोरि। | ललित बिछौना, बिरचि कै, पाँयत कसि कै डोरि। | ||
राखे बसन सुसेवकनि, रूचिर अतर सों बोरि।।103।। | राखे बसन सुसेवकनि, रूचिर अतर सों बोरि।।103।। | ||
पानदान नेरे धर्यो भरि, बीरा छवि-धाम। | पानदान नेरे धर्यो भरि, बीरा छवि-धाम। | ||
चरन धोय पौढन लगे, करन हेतु विश्राम।।104।। | चरन धोय पौढन लगे, करन हेतु विश्राम।।104।। | ||
कोउ चँवर कोउ बीजना, कोउ सेवत पद चारू। | कोउ चँवर कोउ बीजना, कोउ सेवत पद चारू। | ||
अति विचित्र भूषन सजे, गज मोतिन के हारू।।105।। | अति विचित्र भूषन सजे, गज मोतिन के हारू।।105।। | ||
करि सिंगार पिय पै गई, पान खाति मुसुकाति। | करि सिंगार पिय पै गई, पान खाति मुसुकाति। | ||
कहौ कथा सब आदि तें, किमि दीन्हों सौगाति।।106।। | कहौ कथा सब आदि तें, किमि दीन्हों सौगाति।।106।। | ||
कही कथा सब आदि ते, राह चले की पीर। | कही कथा सब आदि ते, राह चले की पीर। | ||
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गये द्वार जिहि भाँति सों, सो सब करी बखानि। | गये द्वार जिहि भाँति सों, सो सब करी बखानि। | ||
कहि न जाय मुख लाल सों, कृस्न मिले जिमि आनि।।108।। | कहि न जाय मुख लाल सों, कृस्न मिले जिमि आनि।।108।। | ||
करि गहि भीतर लै गए, जहाँ सकल रनिवास। | करि गहि भीतर लै गए, जहाँ सकल रनिवास। | ||
पग धोवन को आपुही, बैठे रमानिवास।।109।। | पग धोवन को आपुही, बैठे रमानिवास।।109।। | ||
देखि चरन मेरे चल्यो, प्रभु नयनन तें बारि। | देखि चरन मेरे चल्यो, प्रभु नयनन तें बारि। | ||
ताही सों धोये चरन, देखि चकित नर-नारि।।110।। | ताही सों धोये चरन, देखि चकित नर-नारि।।110।। | ||
बहुरि कही श्री कृस्न जिमि, तन्दुल लीन्हें आप। | बहुरि कही श्री कृस्न जिमि, तन्दुल लीन्हें आप। | ||
भेंटे हृदय लगाय कै, मेटे भ्रम सन्ताप।।111।। | भेंटे हृदय लगाय कै, मेटे भ्रम सन्ताप।।111।। | ||
बहुरि कही जेवनार सब, जिमि कीन्हीं बहु भाँति। | |||
बहुरि कही जेवनार | |||
बरनि कहाँ लगि को कहै, सब व्यंजन की पाँति।।112।। | बरनि कहाँ लगि को कहै, सब व्यंजन की पाँति।।112।। | ||
जादिन अधिक सनेह सों, सपन दिखायो मोहिं। | जादिन अधिक सनेह सों, सपन दिखायो मोहिं। | ||
से देख्यो परतच्छ ही, सपन न निसफल होहिं।।113।। | |||
बरनि कथा वहि विधि सबै, कह्ययो आपनो मोह। | बरनि कथा वहि विधि सबै, कह्ययो आपनो मोह। | ||
वृथा कृपानिधि भगत-हितु-चिदानन्द सन्दोह।।114।। | वृथा कृपानिधि भगत-हितु-चिदानन्द सन्दोह।।114।। | ||
साजे सब साज-,बाजि गज राजत हैं, | साजे सब साज-,बाजि गज राजत हैं, | ||
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सम्पति सुदामा जू को कहाँ लौं दई है प्रभु, | सम्पति सुदामा जू को कहाँ लौं दई है प्रभु, | ||
कहाँ लौं गिनाऊँ जहाँ कंचन महल है।।115।। | कहाँ लौं गिनाऊँ जहाँ कंचन महल है।।115।। | ||
अगनित गज वाजि रथ पालकी समाज, | अगनित गज वाजि रथ पालकी समाज, | ||
पंक्ति 164: | पंक्ति 135: | ||
जानी नहिं विपति सुदामा जू की कहाँ गई, | जानी नहिं विपति सुदामा जू की कहाँ गई, | ||
देखिये विधान जदुराय के सुदान के।।116।। | देखिये विधान जदुराय के सुदान के।।116।। | ||
कहूँ सपनेहूँ सुबरन के महल होते, | कहूँ सपनेहूँ सुबरन के महल होते, | ||
पंक्ति 174: | पंक्ति 144: | ||
जो पै पतिवरता न देती उपदेश तू तो, | जो पै पतिवरता न देती उपदेश तू तो, | ||
एती कृपा द्वारिकेस मो पैं कब करते।।117।। | एती कृपा द्वारिकेस मो पैं कब करते।।117।। | ||
पहरि उठे अम्बर रूचिर सिंहासन पर आय। | पहरि उठे अम्बर रूचिर सिंहासन पर आय। | ||
बैठे प्रभुता निरखि कै, सुर-पति रह्यो लजाई।।118।। | बैठे प्रभुता निरखि कै, सुर-पति रह्यो लजाई।।118।। | ||
कै वह टूटि.सि छानि हती कहाँए कंचन के सब धाम सुहावत। | कै वह टूटि.सि छानि हती कहाँए कंचन के सब धाम सुहावत। | ||
पंक्ति 184: | पंक्ति 152: | ||
भूमि कठोर पै रात कटै कहाँए कोमल सेज पै नींद न आवत। | भूमि कठोर पै रात कटै कहाँए कोमल सेज पै नींद न आवत। | ||
कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभुए के परताप तै दाख न भावत॥।119।। | कैं जुरतो नहिं कोदो सवाँ प्रभुए के परताप तै दाख न भावत॥।119।। | ||
धन्य धन्य जदुवंश - मनि, दीनन पै अनुकूल। | धन्य धन्य जदुवंश - मनि, दीनन पै अनुकूल। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
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13:04, 2 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण
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भाग-4 कृष्ण महिमा गान |
टीका टिप्पणी और संदर्भ