मलूटी
मलूटी झारखण्ड के दुमका ज़िले के शिकारीपाड़ा अंचल में सूड़ीचुआ पड़ाव से 4 कि.मी. आगे एक पहाड़ी क्षेत्र का गाँव है। इस गाँव की एक विशेषता यह भी है कि यह पूरी तरह से शिक्षित गाँव है। यहाँ कभी 108 मन्दिर और इतने ही तालाब हुआ करते थे। किन्तु वर्तमान में सिर्फ़ 74 मन्दिर और इतने ही तालाब बचे हैं। मन्दिरों के इस गाँव को एक ही स्थान पर मन्दिर, मस्ज़िद और गिरजाघर होने का भी सौभाग्य प्राप्त है।
मंदिरों का गाँव
दुमका ज़िले का यह गाँव 'मंदिरों का गाँव' के रूप में विख्यात है। पश्चिम बंगाल की सीमा पर स्थित दुमका ज़िले का प्राचीन मलूटी गाँव द्वारका नदी के तट पर बसा है। दुमका से क़रीब 55 किलोमीटर दूर। यहाँ 74 मंदिर जीर्णावस्था में थे। उनमें से 42 मंदिरों के संरक्षण का कार्य पूरा हो चुका है। बिहार के पुरातत्व विभाग ने 1984 में पूरे गाँव को पुरातात्विक प्रांगण के रूप में विकसित करने की योजना के तहत मंदिरों का संरक्षण कार्य शुरू किया था। आज पूरा गाँव पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो रहा है।[1]
प्राचीन स्थापत्य कला
मंदिरों की पाषाण मूर्तियां और फलक प्राचीन स्थापत्य कला के अनोखे और दुर्लभ प्रमाण हैं। यहाँ स्थित देवी मौलिक्षा मंदिर तो अभी भी एक जीवंत शक्तिपीठ माना जाता है। मलूटी का पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ 'तारापीठ' से सीधा सम्बंध है। कहा जाता है कि वामाखेपा की जीवन लीला माँ तारा से जुड़ी थी और उनकी समाधि तारापीठ में है। आज भी वामाखेपा का त्रिशूल मलूटी में स्थापित है। यहाँ के मंदिरों में 'रामायण' के विभिन्न दृश्य उकेरे हुए हैं। कृष्ण लीलाएं भी चित्रित हैं। एक प्रतिमा ऐसी भी है, जिसमें राम-कृष्ण-शंकर और विष्णु को एकाकार दिखाने का प्रयास अनोखा है।
ऐतिहासिक महत्त्व
मलूटी से पूर्व पाषाण काल के पत्थर के औजार और पालकालीन मूर्तियों के अवशेष भी मिले हैं। यह पुरातात्विक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण और दर्शनीय गाँव है। अब तो गाँव और आसपास के क्षेत्रा को रमणीक और आकर्षक बना दिया गया है। यहाँ माँ काली की पूजा के अवसर पर बहुत बड़ा मेला लगता है। यहाँ तीर्थयात्री भी पहुंचते हैं और आम सैलानी भी।
कैसे पहुँचें
'रामपुर हाट' मलूटी गाँव का निकटतम रेलवे स्टेशन है। यहाँ तक दुमका-रामपुर सड़क पर 'सूरी चुआ' नामक स्थान पर बस से उतर कर उत्तर की ओर 5 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है।
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