तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली अनुवाक-5

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
  • इस अनुवाक में शरीर के 'विज्ञानमय कोश' का वर्णन है।
  • विज्ञान के द्वारा ही यज्ञों और कर्मों की वृद्धि होती है।
  • समस्त देवगण विज्ञान को ब्रह्म-रूप में मानकर उसकी उपासना करते हैं।
  • विज्ञानमय शरीर में 'आत्मा' ही ब्रह्म-रूप है।
  • 'प्रेम' उस विज्ञानमय शरीर का सिर है, 'आमोद' दाहिना पंख है, 'प्रमोद' बायां पंख है, 'आनन्द' मध्य भाग है और 'ब्रह्म' ही उसकी पूंछ, अर्थात् आधार है।
  • उसे जानने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9

तैत्तिरीयोपनिषद भृगुवल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10

तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली

अनुवाक-1 | अनुवाक-2 | अनुवाक-3 | अनुवाक-4 | अनुवाक-5 | अनुवाक-6 | अनुवाक-7 | अनुवाक-8 | अनुवाक-9 | अनुवाक-10 | अनुवाक-11 | अनुवाक-12