जंगबहादुर

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जंगबहादुर (जन्म- 18 जून, 1817, काठमाण्डू, नेपाल; मृत्यु- 25 फ़रवरी, 1877, काठमाण्डू) वर्ष 1846 से 1877 तक नेपाल के प्रधानमंत्री और वास्तविक शासक थे। उन्होंने नेपाल में शक्तिशाली 'राणा वंश' के आनुवंशिक प्रधानमंत्रियों की परंपरा स्थापित की थी और 1951 तक यह पद उनके वंशजों के पास ही रहा।

नेपाल पर अधिकार

जंगबहादुर का जन्म 18 जून, 1817 को काठमाण्डू, नेपाल में हुआ था। इन्होंने नेपाल में 'राणा वंश' की स्थापना की थी। जंगबहादुर साहसी और योग्य व्यक्ति थे। उन्होंने अत्याचारी गगन सिंह की हत्या करके नेपाल की सत्ता पर अधिकार जमाया था। गगन सिंह ने 1846 में छोटी रानी के साथ मिलकर स्वयं प्रधानमंत्री बनने और रानी के बेटे को राजगद्दी पर बैठाने का षड़यंत्र किया। बाद में जंगबहादुर ने राजा और रानी, दोनों को अपदस्थ करके देश निकाला दे दिया। क्योंकि उन्होंने जंगबहादुर की हत्या करने का प्रयत्न किया था। जंगबहादुर को आजीवन प्रधानमंत्री मनोनीत कर दिया गया और वंशानुगत उपाधि 'राणा' प्रदान की गई। 1850-51 के दौरान वह इंग्लैंड गए और जीवन भर अंग्रेज़ों के पक्के दोस्त रहे।[1]

अंग्रेज़ों से मित्रता

जंगबहादुर की कूटनीतिक सूझबूझ और समझौतावादी नीति की सहायता से नेपाल स्वतंत्र बना रहा, जबकि समूचा भारतीय उपमहाद्वीप ब्रिटिश शासन के अधीन हो गया था। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने अंग्रेज़ों की मदद के लिए गोरखा सैनिकों का दस्ता भेजा और ब्रिटिश सेना में 'गोरखा ब्रिगेड' रखने की परंपरा स्थापित की।

प्रशासनिक सुधार

जंगबहादुर ने अपने देश का प्रशासन सुधारने तथा उसका आधुनिकीकरण करने की दिशा में भी बहुत काम किया और पुरानी दंड संहिता में संशोधन किया। यद्यपि उन्होंने 'सती प्रथा' समाप्त करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हीं की तीन पत्नीयाँ उनकी चिता में जलकर सती हो गईं।

उत्तराधिकार आदेश

वंशानुगत प्रधानमंत्री नियुक्त होने के बाद जंगबहादुर को लगा कि देश की सुरक्षा के लिए उनके बाद पूरी तरह वयस्क और योग्य व्यक्ति को ही शासन संभालना चाहिए। इसीलिए उन्होंने ऐसा उत्तराधिकार आदेश तैयार कराया, जिसके अनुसार प्रधानमंत्री पद पिता के बाद आवश्यक रूप से बेटे को न मिलकर परिवार के ही एक भाई से दूसरे भाई को मिल सकता था। दूसरी पीढ़ी में यह पद सभी भाइयों के बेटों को आयु के क्रम में और इसी तरह आने वाली पीढ़ीयों तक चलता रहा। इस प्रकार जंगबहादुर की मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई राणा उदीप सिंह प्रधानमंत्री बनें।[1]

20वीं शताब्दी के पहले 50 वर्ष तक राणा परिवार के लोग ही प्रधानमंत्री पद पर बने रहे। आख़िरी वंशानुगत प्रधानमंत्री मोहन 1951 में सेवानिवृत्त हुए। बाद में भी राणा परिवार बहुत प्रभावशाली और शक्तिशाली बना रहा। फ़रवरी, 1970 में युवराज बीरेंद्र ने, जो 1972 में नेपाल के नरेश बने थे, राणा परिवार की कन्या से विवाह किया, जो उनकी महारानी बनीं।


इन्हें भी देखें: नेपाल एवं पशुपतिनाथ मन्दिर


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 भारत ज्ञानकोश, खंड़ 2 |लेखक: इंदु रामचंदानी |प्रकाशक: एंसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका (इण्डिया) प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 194 |

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