ग्वालियर प्रशस्ति

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मिहिरकुल की 'ग्वालियर प्रशस्ति' एक शिलालेख है, जिस पर संस्कृत में मातृछेत द्वारा सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है। अलेक्जैण्डर कनिंघम ने 1861 में इसे देखा था और इसके बारे में उसी वर्ष प्रकाशित किया। उसके बाद इस शिलालेख के अनेकों अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। यह क्षतिग्रत अवस्था में विद्यमान है। इसकी लिपि प्राचीन उत्तरी गुप्त लिपि है और इसे श्लोक के रूप में लिखा गया है।

  • इस शिलालेख में हूण राजा मिहिरकुल के शासनकाल में छठी शताब्दी के प्रथम भाग में सूर्य मन्दिर के निर्माण का उल्लेख है।
  • प्रशस्ति का लेखक भट्ट धनिक का पुत्र बालादित्य है।
  • यह लेख एक प्रस्तर पर उत्कीर्ण है जो प्रशस्ति के रूप में है। इस लेख में 17 श्लोक हैं।
  • लेख में राजाओं के नाम के साथ उनकी उपलब्धियों का वर्णन किया गया है।
  • यह प्रशस्ति ग्वालियर से एक किलोमीटर पश्चिम में स्थित सागर नामक स्थान से प्राप्त हुई है।
  • प्रतिहार वंश के शासकों की राजनीतिक उपलब्धियों और उनकी वंशावलियों को ज्ञात करने का मुख्य साधन है।
  • यह प्रशस्ति तिथिविहीन है।
  • प्रशस्ति विशुद्ध संस्कृत में लिखी गई है। इस प्रशस्ति के लेख की लिपि उत्तरी ब्राह्मी लिपि है।
  • लेख का उद्देश्य प्रतिहार राजवंश शासक वर्ग द्वारा विष्णु के मंदिर का निर्माण कराए जाने की जानकारी देना और साथ ही अपनी प्रशस्ति लिखवाना ताकि स्वयं को चिरस्थाई बना सकें।
  • इस अभिलेख का राजनीतिक महत्व यह है कि इस अभिलेख की चौथी पंक्ति से प्रतिहार वंश की वंशावली के बारे में सूचना प्रारंभ होती है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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