विजयाराजे सिंधिया

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राजमाता विजयाराजे सिंधिया भारती जनता पार्टी की नेता थी। (जन्म- 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश, मृत्यु- जनवरी 2001 ई. ग्वालियर)। विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर की राजमाता के रूप में जाना जाता था।

जीवन परिचय

राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म 1919 ई. सागर, मध्य प्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। विजया राजे सिंधिया के पिता श्री महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन ज़िला के डिप्टी कलेक्टर थे श्रीमती सिंधिया की माता श्रीमती विंदेश्वरी देवी थीं। विजयाराजे सिंधिया का विवाह के पूर्व का नाम लेखा दिव्येश्वरी था। विजया राजे सिंधिया का विवाह 21 फ़रवरी, 1941 ई. में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था। विजयाराजे सिंधिया के पुत्र माधवराव सिंधिया, पुत्री वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया हैं।

राजनीति सफर

ग्वालियर भारत के विशालतम और संपन्नतम राजेरजवाड़ों में से एक है। विजयाराजे सिंधिया अपने पति जीवाजी राव सिंधिया की मृत्यु के बाद सन 1962 ई. में कांग्रेस के टिकट पर वे संसद् सदस्य बनीं थीं। अपने सैध्दांतिक मूल्यों के दिशा निर्देश के कारण विजयाराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ में शामिल हो गईं। विजयाराजे सिंधिया का रिश्ता एक राजपरिवार से होते हुए भी वे अपनी ईमानदारी, सादगी और प्रतिबध्दता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गईं। और शीघ्र ही वे पार्टी में शक्ति स्तंभ के रूप में सामने आईं।

1957 में विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और उन्होंने दो कोणीय मुकाबले में हिंदू महासभा के देशपांडे को 60 हजार 57 मतों से शिकस्त दी। 1967 का चुनाव विजयाराजे सिंधिया ने स्वतंत्र प्रत्याशी के तौर पर लड़ा और कांग्रेस के डी. के. जाधव को एक लाख 86 हजार 189 मतों से पराजित किया। सन 1989 के आम चुनाव में विजयाराजे सिंधिया एक बार फिर गुना से भाजपा प्रत्याशी थीं। इससे पहले वे 22 साल पहले सन 1967 में वहाँ से जीती थीं। उनके मुकाबले कांग्रेस ने महेंद्रसिंह कालूखेड़ा को मैदान में उतारा। कालूखेड़ा राजमाता के हाथों 1 लाख 46 हजार 290 वोटों से परास्त हो गए।

1991 के चुनाव में पुन: विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के शशिभूषण वाजपेयी को 55 हजार 52 मतों से शिकास्त दी। विजयाराजे सिंधिया 1996 के चुनाव में फिर उम्मीदवार बनीं और उन्होंने भाजपा के टिकट पर अपनी जीत की हैट्रिक कायम करते हुए कांग्रेस के के पी सिंह को एक लाख 30 हजार 824 मतों से पराजित किया।

1998 के चुनाव में विजयाराजे सिंधिया ने अपनी जीत का सिलसिला चौथी बार भी लगातार जारी रखा। उन्होंने तब कांग्रेस के देवेंद्र सिंह रघुवंशी को एक लाख 29 हजार 82 मतों से पराजित कर डाला। 1999 के चुनाव में अस्वस्थ राजमाता ने अपने पुत्र माधवराव सिंधिया को यह आसंदी छोड़ दी और 1999 में माधवराव सिंधिया ने पांच उम्मीदवारों की मौजूदगी में अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भारतीय जनता पार्टी के देशराज सिंह को दो लाख 14 हजार 428 मतों से कीर्तिमान शिकास्त दी।

प्रेरणा स्त्रोत

राजमाता त्याग एवं समर्पण की प्रति मूर्ति थी। उन्होंने राजसी ठाठ-वाट का मोह त्यागकर जनसेवा को अपनाया तथा सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने जनसेवा से कभी अपना मुख नहीं मोड़ा। इसलिये राजमाता को अपना प्रेरणा स्त्रोत मानकर हमें उनके पदचिन्हों एवं आदर्शों पर चलना चाहिये।       

राजमाता पर फ़िल्म

ग्वालियर के राजवंश की आखिरी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने लोगों के दिलों पर बरसों राज किया। राजपथ से लोकपथ का उनका यह सफर क भी रजिया सुल्तान बनी बॉलीवुड की ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी अब परदे पर जीवंत करने जा रही हैं। 'एक थी रानी ऐसी भी' नामक फिल्म



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