"वसंत ऋतु" के अवतरणों में अंतर

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'''वसंत ऋतु''' [[भारत]] की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार [[फरवरी]], [[मार्च]] और [[अप्रैल]] [[माह]] में वसंत ऋतु रहती है। वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय [[पंचतत्त्व]] अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- [[जल]], [[वायु देव|वायु]], [[पृथ्वी देवी|धरती]], [[आकाश तत्व|आकाश]] और [[अग्निदेव|अग्नि]] सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। [[आकाश]] स्वच्छ है, वायु सुहावनी है, [[अग्नि]] ([[सूर्य]]) रुचिकर है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और [[धरती]] उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता।  धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! [[पुनर्जन्म]] जो हो जाता है। [[श्रावण]] की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब वसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।
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'''वसंत ऋतु''' [[भारत]] की 6 ऋतुओं में से एक [[ऋतु]] है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार [[फरवरी]], [[मार्च]] और [[अप्रैल]] [[माह]] में वसंत ऋतु रहती है। वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय [[पंचतत्त्व]] अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- [[जल]], [[वायु देव|वायु]], [[पृथ्वी देवी|धरती]], [[आकाश तत्व|आकाश]] और [[अग्निदेव|अग्नि]] सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। [[आकाश]] स्वच्छ रहता है, वायु सुहावनी लगती है, [[अग्नि]] ([[सूर्य]]) रुचिकर होती है तो [[जल]] पीयूष के समान सुखदाता और [[धरती]] उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती [[जौ]] की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता।  धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! [[पुनर्जन्म]] जो हो जाता है। [[श्रावण]] की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब वसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।
 
==वसंत में गांव का मजा==
 
==वसंत में गांव का मजा==
वसंत के सुहाने मौसम में घूमने का मजा कुछ ख़ास ही होता है। इस सुहाने मौसम में अगर आप को कहीं जाने का मन करे तो आप सोचेंगे कहाँ जाएँ, क्या करें? इस मौसम में  पर्यटकों को रेतों से चमकते टीले देखने में अच्छे लगते है और पर्यटक ख़ूबसूरत पहाड़ियों के नज़ारे में मग्न होकर इसके आस-पास के गांव प्राकृतिक सौन्दर्य में खो जाते है। जहाँ एक तरफ रेतीले मैदान हों, तो दूसरी तरफ बर्फ़ से ढके पहाड़ या गांव, जो अपनी इलाज पद्धति के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। बात हो रही है [[लद्दाख]] के [[नुब्रा घाटी]] के मशहूर गांव के बारे में। लद्दाख में धूमने को बहुत कुछ है, लेकिन अधिकांश पर्यटन यहाँ के गाँव घूमने आते है। चाहे वह सुमुर गाँव हो या इलाजो के लिए मशहूर गाँव हांप स्प्रिंग हो या मांनेस्ट्री और खुबानी के खेती के लिए मशहूर गाँव दिसकिप हो। पर्यटकों की खातिरदारी गाँव का आदरर्पूण माहौल एवं शहर से कही दूर पहाड़ों के बीच प्राकृतिक सौन्द्रर्य का अनूठा दृश्य पर्यटकों को इन गाँव की ओर आकर्षित करता है। <br />
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वसंत के सुहाने मौसम में घूमने का मजा कुछ ख़ास ही होता है। इस सुहाने मौसम में अगर आप को कहीं जाने का मन करे तो आप सोचेंगे कहाँ जाएँ, क्या करें? इस मौसम में  पर्यटकों को रेतों से चमकते टीले देखने में अच्छे लगते है और पर्यटक ख़ूबसूरत पहाड़ियों के नज़ारे में मग्न होकर इसके आस-पास के गांव प्राकृतिक सौन्दर्य में खो जाते है। जहाँ एक तरफ रेतीले मैदान हों, तो दूसरी तरफ बर्फ़ से ढके पहाड़ या गांव, जो अपनी इलाज पद्धति के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। बात हो रही है [[लद्दाख]] के [[नुब्रा घाटी]] के मशहूर गांव के बारे में। लद्दाख में धूमने को बहुत कुछ है, लेकिन अधिकांश पर्यटन यहाँ के गाँव घूमने आते है। चाहे वह सुमुर गाँव हो या इलाजो के लिए मशहूर गाँव हांप स्प्रिंग हो या मांनेस्ट्री और खुबानी के खेती के लिए मशहूर गाँव दिसकिप हो। पर्यटकों की खातिरदारी गाँव का आदरर्पूण माहौल एवं शहर से कही दूर पहाड़ों के बीच प्राकृतिक सौन्द्रर्य का अनूठा दृश्य पर्यटकों को इन गाँव की ओर आकर्षित करता है। <br />[[चित्र:Mustard-1.jpg|thumb|left|सरसों के फूल]]
 
प्राकृतिक सौन्द्रर्य का असली मजा लद्दाख की नुब्रा घाटी में बसा है। अगर आप इस इलाके में वसंत ऋतु में जाये तो माहौल और पावान पर होती है। गाँव के रेतीले रास्तो पर चलते हुए हरी भरी मैदानो का नज़ारा लेते हुए गाँव के दुसरे ओर स्थित पहाड़ पर नजर दौडाना अपने आप में एक मस्त कर देने वाला माहौल पैदा करता है। ईश्वर को याद करने के लिए यहाँ एक बहुत बड़ा प्रार्थना गृह बना हुआ है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को काफ़ी आकर्षित करता है। इस गाँव में 350 साल पुराना एक मांनस्ट्री है जो पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करती है।
 
प्राकृतिक सौन्द्रर्य का असली मजा लद्दाख की नुब्रा घाटी में बसा है। अगर आप इस इलाके में वसंत ऋतु में जाये तो माहौल और पावान पर होती है। गाँव के रेतीले रास्तो पर चलते हुए हरी भरी मैदानो का नज़ारा लेते हुए गाँव के दुसरे ओर स्थित पहाड़ पर नजर दौडाना अपने आप में एक मस्त कर देने वाला माहौल पैदा करता है। ईश्वर को याद करने के लिए यहाँ एक बहुत बड़ा प्रार्थना गृह बना हुआ है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को काफ़ी आकर्षित करता है। इस गाँव में 350 साल पुराना एक मांनस्ट्री है जो पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करती है।
 
====सुमुर गाँव====
 
====सुमुर गाँव====
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====कहाँ ठहरें====
 
====कहाँ ठहरें====
 
ठहरने के लिए हर गाँव में छोटे से लेकर बड़े होटल एवं रेस्टोरेंट हैं। यहाँ के स्थानीय लोगों ने अपने घर में पर्यटकों के लिए आरामदायक व्यवस्था बना रखी है। सारे गाँव [[लेह]] से 110-130 किमी की दूरी पर स्थित है। इन गाँव में पहुँचने के लिए [[श्रीनगर]]-लेह-मार्ग और [[मनाली हिमाचल प्रदेश|मनाली]]-लेह-मार्ग से बस एवं छोटी गाड़ियों से जा सकते हैं। लेह से इस इलाके में जाने के लिए बस एवं छोटी गाड़ियाँ हर वक्त मिलती रहती हैं। लेह देश के हर महानगर से जुड़ा हुआ है। वायुमार्ग के रास्ते लेह एयरपोर्ट पर पहुँचा जा सकता है।  
 
ठहरने के लिए हर गाँव में छोटे से लेकर बड़े होटल एवं रेस्टोरेंट हैं। यहाँ के स्थानीय लोगों ने अपने घर में पर्यटकों के लिए आरामदायक व्यवस्था बना रखी है। सारे गाँव [[लेह]] से 110-130 किमी की दूरी पर स्थित है। इन गाँव में पहुँचने के लिए [[श्रीनगर]]-लेह-मार्ग और [[मनाली हिमाचल प्रदेश|मनाली]]-लेह-मार्ग से बस एवं छोटी गाड़ियों से जा सकते हैं। लेह से इस इलाके में जाने के लिए बस एवं छोटी गाड़ियाँ हर वक्त मिलती रहती हैं। लेह देश के हर महानगर से जुड़ा हुआ है। वायुमार्ग के रास्ते लेह एयरपोर्ट पर पहुँचा जा सकता है।  
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==संबंधित लेख==
 
{{ऋतुएँ}}
 
{{tocright}}
 
'''वर्षा ऋतु''' [[भारत]] की प्रमुख 4 ऋतुओं में से एक ऋतु है। हमारे देश में सामान्य रूप से [[15 जून]] से [[15 सितम्बर]] तक [[वर्षा]] की ऋतु होती है, जब सम्पूर्ण देश पर दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएं प्रभावी होती हैं। इस समय उत्तर पश्चिमी भारत में [[ग्रीष्म ऋतु]] में बना निम्न [[वायुदाब]] का क्षेत्र अधिक तीव्र एवं व्यवस्थति होता हैं। इस निम्न वायुदाब के कारण ही दक्षिणी-पूर्वी सन्मागी हवाएं, जो कि दक्षिणी गोलार्द्ध में [[मकर रेखा]] की ओर से भूमध्यरेखा को पार करती है, भारत की ओर आकृष्ट होती है तथा भारतीय प्रायद्वीप से लेकर [[बंगाल की खाड़ी]] एवं [[अरब सागर]] पर प्रसारित हो जाती है। समुद्री भागों से आने के कारण आर्द्रता से परिपूर्ण ये पवनें अचानक भारतीय परिसंचरण से घिर कर दो शाखाओं में विभाजित हो जाती हैं तथा प्रायद्वीपीय भारत एवं [[म्यांमार]] की ओर तेजी से आगे बढ़ती है।<br />
 
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनें जब स्थलीय भागों में प्रवेश करती हैं, तो प्रचण्ड गर्जन एवं तड़ित झंझावत के साथ तीव्रता से घनघोर वर्षा करती हैं। इस प्रकार की पवनों के आगमन एवं उनसे होने वाली वर्षा को 'मानसून का फटना अथवा टूटना' कहा जाता है। इन पवनों की गति 30 कि.मी. प्रति घंटे से भी अधिक होती है और ये एक महीने की भीतर ही सम्पूर्ण देश में प्रभावी हो जाती हैं। इन पवनों को देश का उच्चावन काफ़ी मात्रा में नियन्त्रित करता है, क्योंकि अपने प्रारम्भ में ही प्रायद्वीप की उपस्थिति के कारण दो शाखओं में विभाजित हो जाती हैं - बंगाल की खाड़ी का मानूसन तथा अरब सागर का मानसून।
 
==बंगाल की खाड़ी का मानसून==
 
बंगाल की खाड़ी का मानूसन दक्षिणी [[हिन्द महासागर]] की स्थायी पवनों की वह शाखा है, जो भूमध्य रेखा को पार करके भारत में पूर्व की ओर प्रवेश करती है। इसके द्वारा सबसे पहले म्यांमार की [[अराकानयोमा]] तथा पीगूयोमा पर्वतमालाओं से टकराकर तीव्र वर्षा की जाती है। इसके बाद ये पवनें सीधे उत्तर की दिशा में मुड़कर [[गंगा]] के डेल्टा क्षेत्र से होकर [[खासी पहाड़ियाँ|खासी पहाड़ियों]] तक पहुंचती हैं तथा लगभग 15,00 मी. की ऊंचाई तक उठकर [[मेघालय]] के चेरापूंजी तथा मासिनराम  नामक स्थानों पर घनघोर वर्षा करती हैं। ख़ासी पहाड़ियों को पार करने के बाद यह शाखा दो भागों में विभाजित हो जाती है। एक शाखा [[हिमालय]] पर्वतमाला के सहारे उसके तराई के क्षेत्र में घनघोर वर्षा करती है, जबकि दूसरी शाखा [[असम]] की ओर चली जाती है। हिमालय पर्वतमाला के सहारे आगे बढ़ने वाली शाखा ज्यो-त्यों पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है। इन पवनों की शुष्कता का कारण इनका स्थानीय पवनों से मिलना भी है।
 
==अरब सागर का मानसून==
 
भूमध्यरेखा के दक्षिण से आने वाली स्थायी पवने जब मानसून के रूप में अरब सागर की ओर बढ़ती हैं तो सबसे पहले पश्चिमी घाट पहाड़ से टकराती हैं और लगभग 900 से 2,100 मी. की ऊंचाई पर चढ़ने के कारण आर्द्र पवनें सम्पृक्त होकर पश्चिमी तटीय मैदानी भाग में तीव्र वर्षा करती हैं। पश्चिमी घाट पर्वत को पार करते समय इनकी शुष्कता में वृद्धि हो जाती है, जिसके कारण दक्षिण पठार पर इनसे बहुत ही कम वर्षा प्राप्त होती है तथा यह क्षेत्र वृष्टि छाया प्रदेश के अन्तर्गत आ जाता है। अरब सागरीय मानसून की एक शाखा [[मुम्बई]] के उत्तर में [[नर्मदा नदी|नर्मदा]] तथा [[ताप्ती नदी|ताप्ती]] नदियों की घाटी में प्रवेश करके [[छोटा नागपुर पठार|छोटा नागपुर के पठार]] पर वर्षा करती है और बंगाल की खाड़ी के मानूसन से मिल जाती है। इसकी दूसरी शाखा [[सिन्धु नदी]] के डेल्टा से आगे बढ़कर [[राजस्थान]] के मरुस्थल से होती हुई सीधे हिमालय पर्वत से जा टकराती है। राजस्थान में इसके मार्ग में कोई अवरोधक न होने के कारण वर्षा का एकदम अभाव पाया जाता है, क्योंकि [[अरावली पर्वतमाला]] इनके समानान्तर पड़ती है।
 
==वर्षा का वितरण==
 
{| class="bharattable-green" align="right"
 
|+मौसम के अनुसार वर्षा का वितरण
 
![[वर्षा]] का मौसम !! समयावधि !! वार्षिक वर्षा का<br /> प्रतिशत (लगभग)
 
|-
 
|दक्षिणी-पश्चिमी मानसून || जून से सितम्बर तक || 73.7
 
|-
 
|परवर्ती मानसून  || अक्टूबर से दिसम्बर || 13.3
 
|-
 
|[[शीत ऋतु]] अथवा उत्तरी पश्चिमी मानसून || जनवरी - फरवरी || 2.6
 
|-
 
|पूर्व-मानसून  || मार्च से मई || 10.0
 
|}
 
====अधिक वर्षा वाले क्षेत्र====
 
पश्चिमी घाट पर्वत का पश्चिमी तटीय भाग, [[हिमालय]] पर्वतमाला की दक्षिणावर्ती तलहटी में सम्मिलित राज्य- [[असम]], [[अरुणाचल प्रदेश]], [[मेघालय]], [[सिक्किम]], [[पश्चिम बंगाल]] का उत्तरी भाग, पश्चिमी तट के [[कोंकण]], [[मालाबार तट]] ([[केरल]]), दक्षिणी किनारा, [[मणिपुर]] एवं [[मेघालय]] इत्यादि सम्मिलित हैं। यहाँ वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 सेमी. से अधिक होती है। विश्व की सर्वाधिक वर्षा वाले स्थान मासिनराम तथा चेरापूंजी मेघालय में ही स्थित हैं।
 
====साधारण वर्षा वाले क्षेत्र====
 
इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा की मात्रा 100 से 200 सेमी. तक होती है। यह मानसूनी वन प्रदेशों का क्षेत्र है। इसमें पश्चिमी घाट का पूर्वोत्तर ढाल, पश्चिम बंगाल का दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र, [[उड़ीसा]], [[बिहार]], दक्षिणी-पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] तथा तराई क्षेत्र के समानान्तर पतली पट्टी में स्थित [[उत्तर प्रदेश]] [[पंजाब]] होते हुए [[जम्मू कश्मीर]] के क्षेत्र शामिल हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा की विषमता 15 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक पायी जाती है। अतिवृष्टि एवं अनावृष्टि के कारण फसलों की बहुत हानि होती है।
 
====न्यून वर्षा वाले क्षेत्र====
 
इसके अन्तर्गत [[मध्य प्रदेश]], दक्षिणी का पठारी भाग [[गुजरात]], उत्तरी तथा दक्षिणी [[आन्ध्र प्रदेश]], [[कर्नाटक]], पूर्वी [[राजस्थान]], दक्षिणी पंजाब, [[हरियाणा]] तथा दक्षिणी उत्तरी प्रदेश आते हैं। यहाँ 50 से 100 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा की विषमता 20 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक होती है।
 
====अपर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्र====
 
इन क्षेत्रों में होने वाली वार्षिक वर्षा की मात्रा 50 सेमी. से भी कम होती है। [[कच्छ]], पश्चिमी राजस्थान, [[लद्दाख]] आदि क्षेत्र इसके अन्तर्गत शामिल किये जाते हैं। यहाँ [[कृषि]] बिना सिंचाई के सम्भव नहीं है।
 
 
  
 
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07:36, 5 मार्च 2015 का अवतरण

वसंत ऋतु
सरसों के खेत
विवरण वसंत ऋतु भारत की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है।
कब अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार फ़रवरी से अप्रैल माह तक वसंत ऋतु रहती है।
प्राकृतिक सौंदर्य ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं।
संबंधित लेख होली, बसंत पंचमी
अन्य जानकारी इस ऋतु में आकाश स्वच्छ रहता है, वायु सुहावनी लगती है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर होती है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है।

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वसंत ऋतु भारत की 6 ऋतुओं में से एक ऋतु है। अंग्रेज़ी कलेंडर के अनुसार फरवरी, मार्च और अप्रैल माह में वसंत ऋतु रहती है। वसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्त्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंच-तत्त्व- जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं। आकाश स्वच्छ रहता है, वायु सुहावनी लगती है, अग्नि (सूर्य) रुचिकर होती है तो जल पीयूष के समान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं तो निर्धन शिशिर की प्रताड़ना से मुक्त होने के सुख की अनुभूति करने लगते हैं। सच! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब वसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।

वसंत में गांव का मजा

वसंत के सुहाने मौसम में घूमने का मजा कुछ ख़ास ही होता है। इस सुहाने मौसम में अगर आप को कहीं जाने का मन करे तो आप सोचेंगे कहाँ जाएँ, क्या करें? इस मौसम में पर्यटकों को रेतों से चमकते टीले देखने में अच्छे लगते है और पर्यटक ख़ूबसूरत पहाड़ियों के नज़ारे में मग्न होकर इसके आस-पास के गांव प्राकृतिक सौन्दर्य में खो जाते है। जहाँ एक तरफ रेतीले मैदान हों, तो दूसरी तरफ बर्फ़ से ढके पहाड़ या गांव, जो अपनी इलाज पद्धति के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। बात हो रही है लद्दाख के नुब्रा घाटी के मशहूर गांव के बारे में। लद्दाख में धूमने को बहुत कुछ है, लेकिन अधिकांश पर्यटन यहाँ के गाँव घूमने आते है। चाहे वह सुमुर गाँव हो या इलाजो के लिए मशहूर गाँव हांप स्प्रिंग हो या मांनेस्ट्री और खुबानी के खेती के लिए मशहूर गाँव दिसकिप हो। पर्यटकों की खातिरदारी गाँव का आदरर्पूण माहौल एवं शहर से कही दूर पहाड़ों के बीच प्राकृतिक सौन्द्रर्य का अनूठा दृश्य पर्यटकों को इन गाँव की ओर आकर्षित करता है।

सरसों के फूल

प्राकृतिक सौन्द्रर्य का असली मजा लद्दाख की नुब्रा घाटी में बसा है। अगर आप इस इलाके में वसंत ऋतु में जाये तो माहौल और पावान पर होती है। गाँव के रेतीले रास्तो पर चलते हुए हरी भरी मैदानो का नज़ारा लेते हुए गाँव के दुसरे ओर स्थित पहाड़ पर नजर दौडाना अपने आप में एक मस्त कर देने वाला माहौल पैदा करता है। ईश्वर को याद करने के लिए यहाँ एक बहुत बड़ा प्रार्थना गृह बना हुआ है जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को काफ़ी आकर्षित करता है। इस गाँव में 350 साल पुराना एक मांनस्ट्री है जो पर्यटको को अपनी ओर आकर्षित करती है।

सुमुर गाँव

नुब्रा घाटी में सेमस्टेम लिंग गोपा के नाम से प्रसिद्ध यह गांव काफ़ी लोकप्रिय हैं। यहाँ सक्युमनी का एक बड़ी मुर्ति है, जिसके आस-पास लगी तस्वीर पर्यटको को आकर्षित करती है। यह इलाका नुब्रो घाटी के मानेंस्टी के नाम से भी जाना जाता है।

हाँट स्प्रिंग

यहाँ गाँव अपनी इलाजी पद्धति के लिए काफ़ी प्रसिद्ध है। यहाँ आने वाले पर्यटक प्रकृति नज़ारों के साथ-साथ त्वचा से जुड़ी परेशानियाँ भी दूर कराते हैं। इस इलाके में इलाज के लिए लोग काफ़ी दूर-दूर से आते हैं।

कहाँ ठहरें

ठहरने के लिए हर गाँव में छोटे से लेकर बड़े होटल एवं रेस्टोरेंट हैं। यहाँ के स्थानीय लोगों ने अपने घर में पर्यटकों के लिए आरामदायक व्यवस्था बना रखी है। सारे गाँव लेह से 110-130 किमी की दूरी पर स्थित है। इन गाँव में पहुँचने के लिए श्रीनगर-लेह-मार्ग और मनाली-लेह-मार्ग से बस एवं छोटी गाड़ियों से जा सकते हैं। लेह से इस इलाके में जाने के लिए बस एवं छोटी गाड़ियाँ हर वक्त मिलती रहती हैं। लेह देश के हर महानगर से जुड़ा हुआ है। वायुमार्ग के रास्ते लेह एयरपोर्ट पर पहुँचा जा सकता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख