जयप्रकाश नारायण

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लोकनायक जे. पी. मातृभूमि के वरदपुत्र जयप्रकाश नारायण ने हमारे देश की सराहनीय सेवा की है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण त्याग एवं बलिदान की प्रतिमूर्ति थे। कहा गया है– 'होनहार वीरवान के होत चीकने पात'  जयप्रकाश विचार के पक्के और बुद्धि के सुलझे हुए व्यक्ति थे। जय प्रकाश जी देश के सच्चे सपूत थे। उन्होंने देश को अन्धकार से प्रकाश की ओर लाने का सच्चा प्रयास किया, जिसमें वह पूरी तरह से सफल रहे हैं। लोकनायक जे. पी. ने भारतीय जनमानस पर अपना अमिट छाप छोड़ा है। उनका समाजवाद का नारा आज भी गूंज रहा है। समाजवाद के सम्बन्ध में न केवल उनके राजनैतिक जीवन से था, अपितु यह उनके सम्पूर्ण जीवन में समाया हुआ था।

जीवन परिचय

जय प्रकाश का जन्म बिहार प्रान्त के छपरा जनपद में दशहरे के दिन सन 1902 में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री 'देवकी बाबू' था, माता 'फूलरानी देवी' थीं। इन्हें चार वर्ष तक दाँत नहीं आया, जिससे इनकी माताजी इन्हें 'बडल जी' कहती थीं। इन्होंने जब बोलना आरम्भ किया तो वाणी में ओज झलकने लगा। 1920 में जे. पी. का विवाह 'प्रभा' नामक लड़की से हुआ। प्रभावती स्वभाव से अत्यन्त मृदुल थीं। गांधी जी का उनके प्रति अपार स्नेह था। प्रभा से शादी होने के समय और शादी के बाद में भी गांधी जी से उनके पिता का सम्बन्ध था, क्योंकि प्रभावती के पिता श्री 'ब्रजकिशोर बापू' चम्पारन में जहाँ गांधी जी ठहरे थे, प्रभा को साथ लेकर गये थे। प्रभा विभिन्न राष्ट्रीय उत्सवों और कार्यक्रमों में भाग लेती थीं।

स्वतंत्रता संग्राम में भाग

जे. पी. ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का निश्चय किया, क्योंकि इन्हें मौलाना की एक गरज सुनाई पड़ी, जिसे उन्होंने पटना में ध्वनित किया था। मौलाना ने कहा था -

'नौजवानों अंग्रेज़ी (शिक्षा) का त्याग करो और मैदान में आकर ब्रिटिश हुकूमत की ढहती दीवारों को धराशायी करो और ऐसे हिन्दुस्तान का निर्माण करो, जो सारे आलम में खुशबू पैदा करे।'

जे. पी. ने इस वक्तव्य ने सुना तो उनके अंतर्मन में हलचल मच गया। जे. पी. पढ़ाई छोड़कर आंदोलन में कूद पड़े। भविष्य में जयप्रकाश जी प्रभा के साथ आ गये और नेहरू जी के यहाँ ठहरे। यहाँ उन्होंने देश को आज़ाद करने की विविध योजनाएँ बनाना आरम्भ कर दिया। एक दिन पटना में 'आचार्य नरेन्द्रदेव' की अध्यक्षता में समाजवादी कार्यकर्ताओं की राष्ट्रीय स्तर पर मीटिंग चल रही थी। नरेन्द्र देव का कहना था कि,

"आज़ादी तो हमें तभी प्राप्त होगी, जबकि हम समाजवादी लड़ाई का मार्ग पकड़ें।

वहाँ पर यह विचार भी बताया गया कि यह संघर्ष तभी सफल होगा, जबकि हम समाजवाद की राह का अनुसरण करें। कोई भी आंदोलन बिना मध्यमवर्गीय लोगों के सहयोग के सफल नहीं होता। भविष्य में कोंग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ तो जे. पी. को उसमें शामिल किया गया और उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया। जयप्रकाश जी ने नई पार्टी की खूब सेवा की और उसका प्रचार एवं प्रसार किया। जे. पी. विलक्षण प्रतिभा से युक्त थे। उनकी बातों का भारतीय जनमानस पर अच्छा प्रभाव था। जे. पी. जी आजीवन मन से देश की सेवा करते रहे। उनके नेतृत्व में विभिन्न आंदोलन हुए। जे. पी. जी के निम्न आदर्श थे–

  1. सत्य,
  2. निष्ठा और
  3. ईमानदारी।

==गिरफ़्तारी==  जे. पी. जी ने अपने जीवन में संयम का पालन किया। अपने क्रान्तिकारी विचारों से उन्होंने देश की जनता को संघर्ष के पथ पर अग्रसर किया। उनके आहावान पर लाखों की संख्या में लोग अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध बगावत पर उतर आये। भारत माता को अंग्रेज़ी की त्रासदी से मुक्ति दिलाने के लिए वे संघर्ष करते रहे। किन्तु 7 मार्च सन् 1940 की शाम को ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और वे जेल भेज दिये गये। जे. पी. जी की गिरफ्तारी वस्तुत: एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी। क्योंकि वे कोई सामान्य कार्यकर्ता न थे, अपितु वे शीर्ष के नेता थे। वे पाश्चात्य समाजवाद के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता प्राप्त करना चाहते थे।  

योगदान

जयप्रकाश जी के योगदानों के बारे में जितना कहा जाए वह कम है। ये अत्यन्त परिश्रमी व्यक्ति थे। इनकी विलक्षणता की तारीफ़ स्वयं गांधीजी और नेहरू जैसे लोग किया करते थे। भारत माता को आज़ाद कराने हेतु इन्होंने तरह-तरह की परेशानियों को झेला किन्तु इन्होंने अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके। क्योंकि ये दृढ़निश्चयी व्यक्ति थे। संघर्ष के इसी दौर में उनकी पत्नी भी गिरफ्तार कर ली गईं और उन्हें दो वर्ष की सजा हुई। क्योंकि वह भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूदी थीं और जनप्रिय नेत्री बन चुकी थीं। जे. पी. जी अपनी निष्ठा और चतुराई के लिए प्रसिद्ध थे। वे सच्चे देशभक्त एवं ईमानदार नेता थे। वे ब्रिटिश प्रशासन का समूल नष्ट करने पर तुले हुए थे।

उन्होंने विश्व स्तर पर अपनी आवाज़ बुलन्द करते हुए कहा है कि विश्व के संकट को मद्देनज़र रखते हुए भारत को आज़ादी प्राप्त होना अति आवश्यक है। जब तक हम आज़ाद न होंगे, हमारा स्वतंत्र अस्तित्व क़ायम न होगा और हम विकास के पथ पर अग्रसर न हो सकेंगे।

महात्मा गांधी ने अपने सारवान भाषण में कहा था– करो या मरो" "Do or die

ये वाक्यांश जे. पी. बाबू के मन में सदैव गूंजता रहता था। फलत: उन्होंने देश को आज़ाद करने हेतु 'करो या मरो' का निर्णय लिया। गांधीजी के इस महामंत्र का उन्होंने जमकर प्रचार व प्रसार भी किया। गांधीजी से प्रेरणा लेकर जे. पी. आगे बढ़ते गये और स्वतंत्रता का बिगुल बज उठा। जब जे. पी. की गिरफ्तारी हुई तो ठीक दूसरे दिन महात्मा गांधी की भी गिरफ्तारी हुई। सैकड़ों हज़ारों की संख्या में लोग अपने नेताओं की रिहाई की मांग करने लगे। अंग्रेज़ स्तब्ध रह गये। देश के कोने-कोने के कार्यकर्ता बन्दी बनाये गये। क्रान्ति की स्थिति सम्पूर्ण देश के सम्मुख आयी हज़ारों की संख्या में लोगों ने गिरफ्तारियाँ दीं।

आज़ादी की लडाई

जय प्रकाश नारायण जी को हज़ारी बाग़ जेल में क़ैद किया गया था। बापू जय प्रकाश जी जेल से भागने की योजना बनाने लगे। इसी बीच दीपावली का त्योहार आया और जेलर साहब ने जश्न मनाने हेतु नाच-गाने का भव्य प्रोग्राम तैयार किया था, लोग मस्ती में झूम रहे थे। इसी बीच जब नाच-गाने का कार्यक्रम हुआ तो जे. पी. और छ: सहयोगियों ने धोती बांधकर जेल परिसर को लांघ लिया। इसकी सूचना लन्दन तक पहुँची। कुछ दिन बाद जे. पी. और राममनोहर लोहिया दोनों लोग गिरफ्तार कर लिये गये। किन्तु येनकेन प्रकारेण वे लाग फ़रार हो गये। भविष्य में जे. पी. रावलपिंडी पहुँचे और वहाँ पर इन्होंने अपना नाम बदल लिया। किन्तु ट्रेन में किसी दिन सफ़र करते हुए इन्हें अंग्रेज़ पुलिस अफ़सर ने दो भारतीय सैनिकों की सहायता से गिरफ्तार कर लिया। इन्हें लाहौर की काल कोठरी में रखा गया तथा इनकी कुर्सी पर बांधकर पिटाई की गई। भविष्य में इन्हें वहाँ से आगरा सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। इसी बीच ब्रिटेन में 'कन्जरवेटिव पार्टी' की हार हुई और 'लिबरल पार्टी' सत्ता में आयी। सत्ता सम्भालने के बाद लिबरल पार्टी ने अपनी घोषणा में यह वक्तव्य जारी किया कि वह भारत को शीघ्र ही आज़ाद करने वाली है। जयप्रकाश नारायण का संकल्प पूर्ण हुआ। जब लिबरल पार्टी ने यह घोषणा की कि वह भारत को आज़ादी प्रदान करेगी, उसके कुछ समय बाद उसने भारत के सपूतों के हाथ में सत्ता सौंपी। इस प्रकार अथक प्रयास के फलस्वरूप 15 अगस्त, सन 1947 को हमारा देश आज़ाद हो गया।  

कर्मयोगी

लोकनायक बाबू जय प्रकाश नारायण ने स्वार्थलोलुपता में कोई कार्य नहीं किया है। वे देश के सच्चे सपूत थे और उन्होंने निष्ठा की भावना से देश की सेवा की है। देश को आज़ाद करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वे कर्मयोगी थे। वे अन्त: प्रेरणा के पुरुष थे। उन्होंने अनेक यूरोपीय यात्राएँ करके सर्वोदय के सिद्धान्त को सम्पूर्ण विश्व में प्रसारित किया। उन्होंने संस्कृत के निम्न श्लोक से सम्पूर्ण विश्व को प्रेरणा लेने को कहा है–

सर्वे भवन्तु सुखिन:
सर्वेसन्तु निरामया
सर्वे भद्राणी पश्यन्तु
मां कश्चिद दुखभागवेत्।।

==आदर्श पुरुष==  बाबू जयप्रकाश नारायण सभी से उन्नति की बात करते थे। वे ऊँच-नीच की भेद भावना से परे थे। उनका विचार अच्छी बातों से युक्त था। वे सच्चे अर्थों में आदर्श पुरुष थे। उनके व्यक्तित्व में अदभुत ओज और तेज़ था। जय प्रकाश ने बिहार आंदोलन में भी भाग लिया है। जय प्रकाश की धर्म पत्नी श्रीमती प्रभा के 13 अगस्त सन् 1973 में मृत हो जाने के पश्चात उनको गहरा झटका लगा। किन्तु इसके बावजूद भी वे देश की सेवा में लगे रहे और एक बहादुर सिपाही की तरह कार्य करते रहे। किन्तु 8 अक्टूबर सन 1979 को भारत का यह अमर सपूत चिर निन्द्रा में सो गया।

  • दिनकर ने लोकनायक के विषय में लिखा है–

है जय प्रकाश वह नाम
जिसे इतिहास आदर देता है।
बढ़कर जिसके पद चिन्हों की
उन पर अंकित कर देता है।
कहते हैं जो यह प्रकाश को,
नहीं मरण से जो डरता है।
ज्वाला को बुझते देख
कुंड में कूद स्वयं जो पड़ता है।।



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