खंड काव्य

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हिंदी साहित्य में काव्य के तीन मुख्य भेद प्रचलित हैं -

  1. महाकाव्य,
  2. खण्ड-काव्य
  3. मुक्तक काव्य ।
  • खण्ड काव्य में मुख्य चरित्र की किसी एक प्रमुख विशेषता का चित्रण होने के कारण अधिक विविधता और विस्तार नहीं होता ।
  • मुक्तक काव्य में कथा-सूत्र आवश्यक नहीं है । इसलिए उसमें घटना और चरित्र के अनिवार्य प्रसंग में भाव-योजना नहीं होती । वह किसी भाव-विशेष को आधार बना कर की गई स्वतंत्र रचना है ।
  • हिंदी साहित्य में खंडकाव्य प्रबंध काव्य का एक रूप है।
  • संस्कृत साहित्य में इसकी जो एकमात्र परिभाषा साहित्य दर्पण में उपलब्ध है, वह इस प्रकार है-

भाषा विभाषा नियमात्‌ काव्यं सर्गसमुत्थितम्‌ ।
एकार्थप्रवणै: पद्यै: संधि-साग्रयवर्जितम्‌ ।
खंड काव्यं भवेत्‌ काव्यस्यैक देशानुसारि च।

  • इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है।
  • वह महाकाव्य के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार हिंदी के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो।
  • वस्तुत: खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो, कथा में एकांगिता [1] हो तथा कथा विन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। *लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंध काव्य को खंडकाव्य माना जाता है।[2]

खण्ड-काव्य के लक्षण

  • काव्य-शास्त्र में खण्ड-काव्य के लक्षण गिना दिए गए हैं। जो निम्नानुसार हैं :
  • खण्ड काव्य के विषय में कहा गया है कि वह एक देशानुसारी होता है। यहाँ देश का अर्थ भाग या अंश है। खण्डकाव्य में भी सर्ग होते हैं। हर सर्ग में छंद का बंधन इसमें भी होता है, लेकिन छंद परिवर्तन जरूरी नहीं है। प्रकृति वर्णन आदि हो सकता है लेकिन वह भी आवश्यक नहीं है।

हिंदी साहित्य के खण्ड काव्य

आदिकाल में रचित खण्ड-काव्य
  1. अब्दुर्रहमान कृत संदेशरासक
  2. नरपतिनाल्ह कृत बीसलदेव रासो
  3. जिनधर्मसुरि कृत थूलिभद्दफाग
भक्तिकाल में रचित खण्ड काव्य
  1. नरोत्तमदास कृत सुदामाचरित
  2. नंददास कृत भंवरगीत, रुक्मिणी मंगल
  3. तुलसीदास कृत पार्वती मंगल, जानकी मंगल
रीतिकाल में रचित खण्ड-काव्य
  1. पद्माकर विरचित हिम्मत बहादुर विरुदावली
आधुनिक काल के खण्ड काव्य
भारतेंदु युग में रचित खण्ड-काव्य
  1. श्रीधर पाठक का एकांतवासी योगी
  2. जगन्नाथ दास रत्नाकर का हरिश्चंद्र
द्विवेदी युग में रचित खण्ड-काव्य
  1. मैथिलीशरण गुप्त : रंग में भंग, जयद्रथ वध, नलदमयंती, शकुंतला, किसान, अनाथ
  2. सियारामशरण गुप्त : मौर्य विजय
  3. रामनरेश त्रिपाठी : मिलन, पथिक
  4. द्वारिका प्रसाद गुप्त : आत्मार्पण
छायावाद युग में रचित खण्ड-काव्य
  1. सुमित्रानंदन पंत : ग्रंथि
  2. रामनरेश त्रिपाठी : स्वप्न
  3. मैथिलीशरण गुप्त :पंचवटी, अनध, वनवैभव, वक-संहार
  4. अनूप शर्मा : सुनाल
  5. सियारामशरण गुप्त : आत्मोत्सर्ग
  6. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : तुलसीदास
  7. शिवदास गुप्त : कीचक वध
  8. श्याम लाल पाठक : कंसवध
  9. रामचंद्रशुक्ल "सरस" : अभिमन्यु वध
  10. गोकुल चंद्र शर्मा : प्रणवीर प्रताप
  11. नाथूराम शंकर शर्मा : गर्भरण्डा रहस्य, वायस विजय
छायावादोत्तर युग में विरचित खण्ड-काव्य
  1. मैथिलीशरण गुप्त : नहुष, कर्बला, नकुल, हिडिम्बा
  2. बालकृष्ण शर्मा "नवीन" : प्राणार्पण
  3. सोहनलाल द्विवेदी : कुणाल
  4. रामधारी सिंह दिनकर : कुरुक्षेत्र
  5. श्याम नारायण पांडे : जय हनुमान
  6. उदयशंकर भट्ट : कौन्तेय-कथा
  7. आनंद मिश्र : चंदेरी का जौहर
  8. गिरिजादत्त शुक्ल "गिरीश" : प्रयाण
  9. गोपालप्रसाद व्यास : क़दम-क़दम बढ़ाए जा
  10. डॉ रुसाल : भोजराज
  11. नरेश मेहता : संशय की एक रात



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता
  2. गुप्त, परमेश्वरीलाल हिन्दी विश्वकोश, 1973 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी।

बाहरी कड़ियाँ

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