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*कुछ गाँवों में 'उर' और 'सभा' साथ-साथ होती थी। बहुत बड़े ग्रामों में यदि ऐसा करना कार्य के लिए अधिक सुविधाजनक समझा जाता था तो दो 'उर' होती थी।
  
 
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'भारत का इतिहास' | लेखिका- रोमिला थापर | प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली | पृष्ठ संख्या- 182-183
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09:19, 30 अगस्त 2014 के समय का अवतरण

उर एक ग्राम सभा को कहा जाता है।

  • चोल राज्य प्रांतों ('मंडलम') में विभक्त होते थे। साधारणतया आठ या नौ प्रांत प्रत्येक राज्य में होते थे। प्रत्येक मंडलम 'वालानाडु' या ज़िलों में बँटा था। ये ज़िले ग्रामों के समूह में विभाजित होते थे जो भिन्न-भिन्न स्थानों पर 'कुर्रम', 'नाडु' अथवा 'कोट्टम' कहलाते थे।
  • कभी-कभी बहुत बड़े ग्राम का शासन एक इकाई के रूप में होता था और यह 'तनियूर' कहलाते थे। इन छोटे-छोटे समूहों के अतिरिक्त एक महासभा भी होती थी। इस महासभा में अधिकांश स्थानीय निवासी होते थे और इसकी तीन श्रेणियाँ होती थीं: 'उर' में एक साधारण ग्राम के करदाता सदस्य रहते थे: 'सभा' में केवल ग्राम के ब्राह्मण निवासी होते थे अथवा यह 'सभा' केवल उन ग्रामों में होती थी जो ब्राह्मणों को दान दिए गए होते थे; और अंत में 'नगरम' सामान्यत: व्यापारिक केंद्रों में होते थे क्योंकि ये पूर्णतया व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए होते थे।
  • कुछ गाँवों में 'उर' और 'सभा' साथ-साथ होती थी। बहुत बड़े ग्रामों में यदि ऐसा करना कार्य के लिए अधिक सुविधाजनक समझा जाता था तो दो 'उर' होती थी।

उदाहरण के लिए देखें:- उत्तिरमेरूर


टीका टिप्पणी और संदर्भ

'भारत का इतिहास' | लेखिका- रोमिला थापर | प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली | पृष्ठ संख्या- 182-183

बाहरी कड़ियाँ

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