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मानव बस्ती

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मानव बस्ती किसी भी प्रकार और आकार के घरों का संकुल है जिनमें मनुष्य रहते हैं। एक स्थान जो साधारणतया स्थायी रूप से बसा हुआ हो उसे मानव बस्ती कहते हैं। मकानों का स्वरूप बदला जा सकता है, उनके कार्य बदल सकते हैं परंतु बस्तियाँ समय एवं स्थान के साथ निरंतर बसती रहेंगी। कुछ बस्तियाँ अस्थायी हो सकती हैं जिसमें निवास कुछ ही समय जैसे कि एक ऋतु के लिए होता है। मानव मकानों के समूह में रहते हैं। इसे ग्राम, नगर या एक शहर कह सकते हैं, यह सभी मानव बस्ती के उदाहरण हैं। मानव बस्ती का अध्ययन मानव भूगोल का मूल है क्योंकि किसी भी क्षेत्र में बस्तियों का रूप उस क्षेत्र के वातावरण से मानव का संबंध दर्शाता है।

बस्तियों का वर्गीकरण

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ग्रामीण नगरीय द्विभाजन

यह सभी स्वीकार करते हैं कि बस्तियों में भेद नगरीय व ग्रामीण आधार पर होता है, परंतु हम किस को ग्राम कहें एवं किसको नगर इस पर कोई मतैक्य नहीं है। यद्यपि जनसंख्या इसका एक मापदंड हो सकती है पर यह सर्वव्यापी मापदंड नहीं हो सकता क्योंकि भारत एवं चीन में जो घने बसे देश हैं उनमें कई ऐसे ग्राम हैं जिनकी जनसंख्या पश्चिमी यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के नगरों से अधिक है। एक समय था जब ग्राम के निवासियों का मुख्य उद्यम कृषि करना या प्राथमिक गतिविधियों में लगे रहना था। परंतु वर्तमान समय में विश्व के विकसित देशों की नगरीय जनसंख्या यद्यपि शहरों में कार्य करती हैं तथापि वे गाँवों में रहना पसंद करते हैं। अत: गाँवों एवं शहरों में आधारभूत अंतर यह होता है कि नगरों या शहरों के निवासियों का मुख्य व्यवसाय द्वितीयक एवं तृतीयक गतिविधियों से संबंधित है। इसके विपरीत ग्रामों में रहने वाले निवासियों का मुख्य व्यवसाय प्राथमिक गतिविधियाँ जैसे कृषि, मछली पकड़ना, लकड़ी काटना, खनन कार्य, पशुपालन इत्यादि से संबंधित होता है।


ग्रामीण एवं नगरीय जनसंख्या में उनके द्वारा संपन्न कार्यों के आधार पर विभेदीकरण अधिक अर्थपूर्ण है क्योंकि ग्रामीण एवं नगरीय बस्तियों द्वारा किए गए कार्यों के पदानुक्रम में समरूपता नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पैट्रोल पंप को पदानुक्रम में निम्न श्रेणी का कार्य समझा जाता है, जबकि भारत में यह नगरीय कार्य के अंतर्गत आता है। यहाँ तक कि एक देश के अंदर ही कार्यों का स्तर प्रादेशिक अर्थव्यवस्था के अनुसार अलग-अलग हो सकता है, जो सुविधाएँ विकसित देशों के ग्रामों में पाई जाती हैं, वैसी सुविधाएँ विकासशील एवं अल्प विकसित देशों के गाँवों में दुर्लभ होती हैं।

बस्तियों के प्रकार एवं प्रतिरूप

बस्तियों का वर्गीकरण उनकी आकृति एवं प्रतिरूपों के आधार पर किया जाता है। आकृति के आधार पर बस्तियों को मुख्यतया निम्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है :

संहत बस्ती

इस प्रकार की बस्तियाँ वे होती हैं जिनमें मकान एक दूसरे के समीप बनाए जाते हैं। इस तरह की बस्तयों का विकास नदी घाटियों के सहारे या उपजाऊ मैदानों में होता है। यहाँ रहने वाला समुदाय मिलकर रहता है एवं उनके व्यवसाय भी समान होते हैं।

प्रकीर्ण बस्ती

इन बस्तियों में मकान दूर-दूर होते हैं तथा प्राय: खेतों के द्वारा एक दूसरे से अलग होते हैं। एक सांस्कृतिक आकृति जैसे पूजा-स्थल अथवा बाज़ार, बस्तियों को एक साथ बाँधता है।

ग्रामीण बस्ती

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ग्रामीण बस्ती अधिक निकटता से तथा प्रत्यक्ष रूप से भूमि से नज़दीकी संबंध रखती हैं। यहाँ के निवासी अधिकतर प्राथमिक गतिविधियों में लगे होते हैं। जैसे- कृषि, पशुपालन एवं मछली पकड़ना आदि इनके प्रमुख व्यवसाय होते हैं। बस्तियों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है।

नगरीय बस्ती

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तीव्र नगरीय विकास एक नूतन परिघटना है। कुछ समय पूर्व तक बहुत ही कम बस्तियाँ कुछ हज़ार से अधिक निवासियों वाली थी। प्रथम नगरीय बस्ती लंदन नगर की जनसंख्या लगभग 1810 ई. तक 10 लाख हो गई थी। 1982 में विश्व में क़रीब 175 नगर 10 लाख से अधिक जनसंख्या वाले थे। 1800 में विश्व की केवल 3 प्रतिशत जनसंख्या नगरीय बस्तियों में निवास करती थी जबकि वर्तमान समय में 48 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में निवास करती है। ग्रामीण बस्तियों के विपरीत नगरीय बस्तियाँ सामान्यत: संहत और विशाल आकार की होती हैं। ये बस्तियाँ अनेक प्रकार के अकृषि, आर्थिक और प्रशासकीय प्रकार्यों में संलग्न होती हैं।

आकार और प्रकार में भिन्न

बस्तियाँ आकार और प्रकार में भिन्न होती हैं। उनका परिसर एक पल्ली से लेकर महानगर तक होता है। आकार के साथ बस्तियों के आर्थिक अभिलक्षण और सामाजिक संरचना बदल जाती हैं और साथ ही बदल जाते हैं पारिस्थितिकी और प्रौद्योगिकी। बस्तियाँ छोटी और विरल रूप से लेकर बड़ी और संकुलित अवस्थित हो सकती हैं। विरल रूप से अवस्थित छोटी बस्तियाँ, जो कृषि अथवा अन्य प्राथमिक क्रियाकलापों में विशिष्टता प्राप्त कर लेती हैं, गाँव कहलाती हैं। दूसरी ओर कम, किंतु बड़े अधिवास द्वितीयक और तृतीयक क्रियाकलापों में विशेषीकृत होते हैं जो इन्हें नगरीय बस्तियाँ कहा जाता है। ग्रामीण और नगरीय बस्तियों में आधारभूत अंतर निम्नलिखित हैं-

  • ग्रामीण बस्तियाँ अपने जीवन का पोषण अथवा आधारभूत आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति भूमि आधारित प्राथमिक आर्थिक क्रियाओं से करती हैं जबकि नगरीय बस्तियाँ एक ओर कच्चे माल के प्रक्रमण और तैयार माल के विनिर्माण तथा दूसरी

ओर विभिन्न प्रकार की सेवाओं पर निर्भर करती हैं।

  • नगर आर्थिक वृद्धि के नोड (दवकम) के रूप में कार्य करते हैं और न केवल नगर निवासियों को बल्कि अपने पश्च भूमि की ग्रामीण बस्तियों को भी भोजन और कच्चे माल के बदले वस्तुएँ और सेवाएँ उपलब्ध कराते हैं। नगरीय और ग्रामीण बस्तियों के बीच प्रकार्यात्मक संबंध परिवहन और संचार परिपथ के माध्यम से स्थापित होता है।
  • ग्रामीण और नगरीय बस्तियाँ सामाजिक संबंधों अभिवृत्ति और दृष्टिकोण की दृष्टि से भी भिन्न होती हैं। ग्रामीण लोग कम गतिशील होते हैं और इसलिए उनमें सामाजिक संबंध घनिष्ठ होते हैं। दूसरी ओर नगरीय क्षेत्रों में जीवन का ढंग जटिल और तीव्र होता है और सामाजिक संबंध औपचारिक होते हैं।


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