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'''अना क़ासमी''' मौजूदा ज़माने के उन चंद शायरों में से एक हैं जिन्होंने परम्परागत शायरी की विधा को क़ायम रखते हुए अपने मौजूदा दौर के तमाम नशैबो-फ़राज़ को अपनी ग़ज़लों में इस खूबसूरती से संजोया है कि इस ज़माने की हर दुखती हुई रग उनकी नोके-क़लम के नीचे आ गयी है यही वजह है कि लोग अपनी बातों में इसके शेर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, चाहे वो नेताओं की ज़बान से हो या पत्रकारों की ज़बान से ।  
 
'''अना क़ासमी''' मौजूदा ज़माने के उन चंद शायरों में से एक हैं जिन्होंने परम्परागत शायरी की विधा को क़ायम रखते हुए अपने मौजूदा दौर के तमाम नशैबो-फ़राज़ को अपनी ग़ज़लों में इस खूबसूरती से संजोया है कि इस ज़माने की हर दुखती हुई रग उनकी नोके-क़लम के नीचे आ गयी है यही वजह है कि लोग अपनी बातों में इसके शेर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, चाहे वो नेताओं की ज़बान से हो या पत्रकारों की ज़बान से ।  
 
==परिचय==
 
==परिचय==
अना क़ासमी का जन्म मध्यप्रदेश में बुन्देलखण्ड के ज़िला-छतरपुर में 28 फरवरी-1966 में हुआ । छतरपुर [[महाराजा छत्रसाल]] की वो नगरी है जहाँ साहित्यकारों के सम्मान की परम्परा बहुत पुरानी है । मशहूर है कि यहाँ के महाराजा छत्रसाल ने कवि ‘भूषण’ की पालकी को अपने कांधे पर उठाया था ।  
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अना क़ासमी [ana qasmi] का जन्म मध्यप्रदेश में बुन्देलखण्ड के ज़िला-छतरपुर में 28 फरवरी-1966 में हुआ । छतरपुर [[महाराजा छत्रसाल]] की वो नगरी है जहाँ साहित्यकारों के सम्मान की परम्परा बहुत पुरानी है । मशहूर है कि यहाँ के महाराजा छत्रसाल ने कवि ‘भूषण’ की पालकी को अपने कांधे पर उठाया था ।  
 
बचपन में जब अना क़ासमी 10 साल के थे और कक्षा 5 वीं के छात्र थे तभी से वे नगर की साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ गये और शेर कहने लगे । इसके बाद उनका तालीमी सिलसिला धार्मिक शिक्षा की तरफ़ मुड़ गया । वो कानपुर के मदरसे  
 
बचपन में जब अना क़ासमी 10 साल के थे और कक्षा 5 वीं के छात्र थे तभी से वे नगर की साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ गये और शेर कहने लगे । इसके बाद उनका तालीमी सिलसिला धार्मिक शिक्षा की तरफ़ मुड़ गया । वो कानपुर के मदरसे  
 
अहसनुल मदारिस में दो साल रहे फिर इलाहाबाद के मदरसे ग़रीब नवाज़ फिर कारी सिद्दीक़ साहब के मदरसे हथौरा बांदा में और फिर मशहूर मदरसे दारूल उलूम नदवतुल उल्मा लखनऊ से आलिम की सनद ली और [[दारूल उलूम देवबंद]] से दौरा-ए-हदीस किया । इन सभी जगहों के साहित्यिक कार्यक्रमों में अना क़ासमी  
 
अहसनुल मदारिस में दो साल रहे फिर इलाहाबाद के मदरसे ग़रीब नवाज़ फिर कारी सिद्दीक़ साहब के मदरसे हथौरा बांदा में और फिर मशहूर मदरसे दारूल उलूम नदवतुल उल्मा लखनऊ से आलिम की सनद ली और [[दारूल उलूम देवबंद]] से दौरा-ए-हदीस किया । इन सभी जगहों के साहित्यिक कार्यक्रमों में अना क़ासमी  

13:17, 12 अगस्त 2013 का अवतरण

अना क़ासमी
अना क़ासमी
पूरा नाम मौलाना हारुन अना क़ासमी
जन्म 28 फरवरी, 1966
कर्म-क्षेत्र शायर एवं मौलवी
मुख्य रचनाएँ हवाओं के साज़ पर (ग़ज़ल संग्रह), मीठी सी चुभन (ग़ज़ल संग्रह),
भाषा उर्दू
विद्यालय दारुल उलूम देवबंद
शिक्षा फ़ाज़िल (दारुल उलूम देवबंद) आलिम (नदवतुल-उलमा) लखनऊ
पुरस्कार-उपाधि विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित
प्रसिद्धि प्रसिद्ध समकालीन उर्दू
नागरिकता भारतीय
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इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
अना क़ासमी की रचनाएँ

अना क़ासमी मौजूदा ज़माने के उन चंद शायरों में से एक हैं जिन्होंने परम्परागत शायरी की विधा को क़ायम रखते हुए अपने मौजूदा दौर के तमाम नशैबो-फ़राज़ को अपनी ग़ज़लों में इस खूबसूरती से संजोया है कि इस ज़माने की हर दुखती हुई रग उनकी नोके-क़लम के नीचे आ गयी है यही वजह है कि लोग अपनी बातों में इसके शेर बहुत ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं, चाहे वो नेताओं की ज़बान से हो या पत्रकारों की ज़बान से ।

परिचय

अना क़ासमी [ana qasmi] का जन्म मध्यप्रदेश में बुन्देलखण्ड के ज़िला-छतरपुर में 28 फरवरी-1966 में हुआ । छतरपुर महाराजा छत्रसाल की वो नगरी है जहाँ साहित्यकारों के सम्मान की परम्परा बहुत पुरानी है । मशहूर है कि यहाँ के महाराजा छत्रसाल ने कवि ‘भूषण’ की पालकी को अपने कांधे पर उठाया था । बचपन में जब अना क़ासमी 10 साल के थे और कक्षा 5 वीं के छात्र थे तभी से वे नगर की साहित्यिक गतिविधियों से जुड़ गये और शेर कहने लगे । इसके बाद उनका तालीमी सिलसिला धार्मिक शिक्षा की तरफ़ मुड़ गया । वो कानपुर के मदरसे अहसनुल मदारिस में दो साल रहे फिर इलाहाबाद के मदरसे ग़रीब नवाज़ फिर कारी सिद्दीक़ साहब के मदरसे हथौरा बांदा में और फिर मशहूर मदरसे दारूल उलूम नदवतुल उल्मा लखनऊ से आलिम की सनद ली और दारूल उलूम देवबंद से दौरा-ए-हदीस किया । इन सभी जगहों के साहित्यिक कार्यक्रमों में अना क़ासमी एक परिचित नाम रहा । तालीम के बाद जब छतरपुर लौटे तो नगर पालिका छतरपुर ने साहित्य सेवा के लिए उनका नागरिक सम्मान किया । अना क़ासमी की रचनाएं विभिन्न साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं । आकाशवाणी एवं मुशायरों के ज़रिये भी अना क़ासमी की रचनाएं लोगों को जगाने का काम कर रही हैं ।

कार्यक्षेत्र

जीवन यापन के लिए अना क़ासमी ने कम्प्यूटर हार्डवेयर की दुकान छतरपुर में खोल रखी है । उम्र भर धार्मिकता की शिक्षा ली उसे भी गंवाया नहीं और उनका दर्से-कुरान एवं दर्से हदीस का सिलसिला निरन्तर जारी रहता है जिससे लोगों को इस्लाम की सही जानकारी सहजता से प्राप्त होती है । इसके साथ ही ये कहना सही होगा कि अना क़ासमी मूलतः शायर ही हैं । उनकी ग़ज़लों में आम इंसान की पीड़ा और उसका दुख सुख इतना मुखर होता है कि यूं लगता है जैसे उनके सीने में सारा हिन्दुस्तान बसता हो । ग़ज़लों के साथ ही साथ मानवीय रिश्तों को मज़बूत करने वाली नज़्में भी काफी संख्या में अना साहब ने कही हैं जिन्हें उर्दू की बड़ी पत्रिकाओं ने अपने खास पन्नों में जगह दी है । अना साहब की अब तक दो ग़ज़ल संग्रह अयन प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित हो चुके हैं और उनका अभी ज़ोरे-क़लम रवां दवां है ।

प्रकाशित किताबें

  • हवाओं के साज़ पर (ग़ज़ल संग्रह) 1999
  • मीठी सी चुभन (ग़ज़ल संग्रह) 2012
पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख