"छिप-छिप अश्रु बहाने वालों -गोपालदास नीरज" के अवतरणों में अंतर
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− | <poem>छिप-छिप अश्रु बहाने वालों | + | <poem> |
+ | छिप-छिप अश्रु बहाने वालों! | ||
+ | मोती व्यर्थ बहाने वालों! | ||
+ | कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है। | ||
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+ | सपना क्या है, नयन सेज पर, | ||
+ | सोया हुआ आँख का पानी, | ||
+ | और टूटना है उसका ज्यों, | ||
+ | जागे कच्ची नींद जवानी, | ||
− | + | गीली उमर बनाने वालों! | |
+ | डूबे बिना नहाने वालों! | ||
+ | कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है। | ||
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− | + | माला बिखर गयी तो क्या है? | |
+ | खुद ही हल हो गयी समस्या, | ||
+ | आँसू गर नीलाम हुए तो, | ||
+ | समझो पूरी हुई तपस्या, | ||
− | + | रूठे दिवस मनाने वालों! | |
+ | फटी कमीज़ सिलाने वालों! | ||
+ | कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है। | ||
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− | + | खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर, | |
− | + | केवल जिल्द बदलती पोथी, | |
− | + | जैसे रात उतार चांदनी, | |
− | + | पहने सुबह धूप की धोती, | |
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− | खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर | ||
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− | केवल जिल्द बदलती पोथी | ||
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− | जैसे रात उतार चांदनी | ||
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− | पहने सुबह धूप की धोती | ||
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+ | वस्त्र बदलकर आने वालों! | ||
+ | चाल बदलकर जाने वालों! | ||
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। | चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। | ||
लाखों बार गगरियाँ फूटीं, | लाखों बार गगरियाँ फूटीं, | ||
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शिकन न आई पनघट पर, | शिकन न आई पनघट पर, | ||
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लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, | लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, | ||
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चहल-पहल वो ही है तट पर, | चहल-पहल वो ही है तट पर, | ||
− | तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों! | + | तम की उमर बढ़ाने वालों! |
− | + | लौ की आयु घटाने वालों! | |
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। | लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। | ||
लूट लिया माली ने उपवन, | लूट लिया माली ने उपवन, | ||
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लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, | लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, | ||
− | + | तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर, | |
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खिड़की बन्द न हुई धूल की, | खिड़की बन्द न हुई धूल की, | ||
− | नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों! | + | नफरत गले लगाने वालों! |
− | + | सब पर धूल उड़ाने वालों! | |
− | कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता | + | कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है। |
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07:54, 5 मार्च 2012 के समय का अवतरण
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छिप-छिप अश्रु बहाने वालों! |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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