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मोती व्यर्थ बहाने वालों!
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कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।
  
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माला बिखर गयी तो क्या है
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चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।
 
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लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
 
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शिकन न आई पनघट पर,
 
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लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
 
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चहल-पहल वो ही है तट पर,
 
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कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है !
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07:54, 5 मार्च 2012 के समय का अवतरण

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों -गोपालदास नीरज
गोपालदास नीरज
कवि गोपालदास नीरज
जन्म 4 जनवरी, 1925
मुख्य रचनाएँ दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरी, गीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी, बादलों से सलाम लेता हूँ, कुछ दोहे नीरज के
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
गोपालदास नीरज की रचनाएँ

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों!
मोती व्यर्थ बहाने वालों!
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है।


सपना क्या है, नयन सेज पर,
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों,
जागे कच्ची नींद जवानी,

गीली उमर बनाने वालों!
डूबे बिना नहाने वालों!
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है।


माला बिखर गयी तो क्या है?
खुद ही हल हो गयी समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो,
समझो पूरी हुई तपस्या,

रूठे दिवस मनाने वालों!
फटी कमीज़ सिलाने वालों!
कुछ दीपों के बुझ जाने से, आँगन नहीं मरा करता है।


खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर,
केवल जिल्द बदलती पोथी,
जैसे रात उतार चांदनी,
पहने सुबह धूप की धोती,

वस्त्र बदलकर आने वालों!
चाल बदलकर जाने वालों!
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।


लाखों बार गगरियाँ फूटीं,
शिकन न आई पनघट पर,
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं,
चहल-पहल वो ही है तट पर,

तम की उमर बढ़ाने वालों!
लौ की आयु घटाने वालों!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।


लूट लिया माली ने उपवन,
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर,
खिड़की बन्द न हुई धूल की,

नफरत गले लगाने वालों!
सब पर धूल उड़ाने वालों!
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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