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'''सतह से उठता आदमी''' [[भारत]] के प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] और [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] द्वारा लिखी गई पुस्तक है। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। [[भारतीय ज्ञानपीठ]] द्वारा प्रकाशित ‘[[चाँद का मुँह टेढ़ा है -गजानन माधव मुक्तिबोध|चाँद का मुँह टेढ़ा है]]’, ‘[[एक साहित्यिक की डायरी -गजानन माधव मुक्तिबोध|एक साहित्यिक की डायरी]]’, ‘[[काठ का सपना -गजानन माधव मुक्तिबोध|काठ का सपना]]’ तथा ‘[[विपात्र -गजानन माधव मुक्तिबोध|विपात्र]]’ के बाद गजानन माधव मुक्तिबोध की यह एक और विशिष्ट कृति है ‘सतह से उठता आदमी’। इस संग्रह में मुक्तिबोध की नौ कहानियाँ संकलित हैं।  
 
'''सतह से उठता आदमी''' [[भारत]] के प्रसिद्धि प्रगतिशील [[कवि]] और [[हिन्दी साहित्य]] की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व [[गजानन माधव 'मुक्तिबोध']] द्वारा लिखी गई पुस्तक है। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। [[भारतीय ज्ञानपीठ]] द्वारा प्रकाशित ‘[[चाँद का मुँह टेढ़ा है -गजानन माधव मुक्तिबोध|चाँद का मुँह टेढ़ा है]]’, ‘[[एक साहित्यिक की डायरी -गजानन माधव मुक्तिबोध|एक साहित्यिक की डायरी]]’, ‘[[काठ का सपना -गजानन माधव मुक्तिबोध|काठ का सपना]]’ तथा ‘[[विपात्र -गजानन माधव मुक्तिबोध|विपात्र]]’ के बाद गजानन माधव मुक्तिबोध की यह एक और विशिष्ट कृति है ‘सतह से उठता आदमी’। इस संग्रह में मुक्तिबोध की नौ कहानियाँ संकलित हैं।  
 
==साहित्यिक दृष्टिकोण==
 
==साहित्यिक दृष्टिकोण==
<blockquote>मुक्तिबोध के साहित्य में हमारे संस्कारों को सँवारने और उन्हें ऊँचा उठाने की बड़ी शक्ति है। वह हम मध्यवर्गीय पाठकों की दृष्टि साफ करता है, समझ बढ़ाता है। इन कहानियों में भी हमें अपने जीवन के विविध पक्षों का अति निकट का परिचय एवं विश्लेषण मिलता है, और मिलती है सामाजिक सम्बन्धों की पैनी परख। एक के बाद एक परदे हटते जाते हैं और यथार्थ उघड़कर सामने आता जाता है।</blockquote> -[[शमशेर बहादुर सिंह]]  
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<blockquote>मुक्तिबोध के साहित्य में हमारे संस्कारों को सँवारने और उन्हें ऊँचा उठाने की बड़ी शक्ति है। वह हम मध्यवर्गीय पाठकों की दृष्टि साफ करता है, समझ बढ़ाता है। इन कहानियों में भी हमें अपने जीवन के विविध पक्षों का अति निकट का परिचय एवं विश्लेषण मिलता है, और मिलती है सामाजिक सम्बन्धों की पैनी परख। एक के बाद एक परदे हटते जाते हैं और यथार्थ उघड़कर सामने आता जाता है। -[[शमशेर बहादुर सिंह]] </blockquote>
 
इन कहानियों में एक और विशेषता यह है कि ये सहज ही हर स्थिति के अतिसामान्य में असामान्य और अद्भुत का भरम पैदा कर देती हैं। इसे हम तटस्थ-सी काव्यकर्मी कल्पना-शक्ति का कमाल कह सकते हैं। और इसी वातावरण में हर कहानी एक ऐसे घाव को, एक ऐसी पीड़ा को हमारे सामने उघाड़कर रखती है जिसे हम देखकर अनदेखा और सुनकर अनसुना कर जाते रहे हैं। एक बार इन कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक के लिए ऐसा करना असम्भव हो जाता है। लगता है, जैसे इन कहानियों में आयामी अर्थ छिपे हों। इन्हें पढ़ने पर हर बार ऐसा कुछ शेष रह जाता है जो इन्हें फिर-फिर पढ़ने को आमन्त्रित करता है। बात यह है कि ये कहानियाँ जीवन के ठहरे नैतिक मूल्यों पर सोचने के लिए पाठक को विवश करती है। मुक्तिबोध-साहित्य में इस कहानी-संग्रह का इज़ाफ़ा करने के लिए स्तरीय साहित्य का हिन्दी पाठक कृतज्ञता का अनुभव करेगा। इसका प्रकाशन किसी भी प्रकाशक के लिए गौरव की बात है।
 
इन कहानियों में एक और विशेषता यह है कि ये सहज ही हर स्थिति के अतिसामान्य में असामान्य और अद्भुत का भरम पैदा कर देती हैं। इसे हम तटस्थ-सी काव्यकर्मी कल्पना-शक्ति का कमाल कह सकते हैं। और इसी वातावरण में हर कहानी एक ऐसे घाव को, एक ऐसी पीड़ा को हमारे सामने उघाड़कर रखती है जिसे हम देखकर अनदेखा और सुनकर अनसुना कर जाते रहे हैं। एक बार इन कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक के लिए ऐसा करना असम्भव हो जाता है। लगता है, जैसे इन कहानियों में आयामी अर्थ छिपे हों। इन्हें पढ़ने पर हर बार ऐसा कुछ शेष रह जाता है जो इन्हें फिर-फिर पढ़ने को आमन्त्रित करता है। बात यह है कि ये कहानियाँ जीवन के ठहरे नैतिक मूल्यों पर सोचने के लिए पाठक को विवश करती है। मुक्तिबोध-साहित्य में इस कहानी-संग्रह का इज़ाफ़ा करने के लिए स्तरीय साहित्य का हिन्दी पाठक कृतज्ञता का अनुभव करेगा। इसका प्रकाशन किसी भी प्रकाशक के लिए गौरव की बात है।
  
<blockquote>जीवन-दृष्टि शिक्षा से नहीं, आत्मसंघर्ष से प्राप्त होती है। इन कहानियों के तमाम शिक्षित पात्रों के बिलकुल विपरीत ‘आखेट’ कहानी का नायक कान्सटेबिल मेहरबानसिंह एक अशिक्षित व्यक्ति है, जिसे केवल उत्पीड़न और जुल्म की ट्रेनिंग दी गयी है। मगर उसकी अन्तरात्मा उसे दी गयी शिक्षा से प्रबल है। एक अपाहिज स्त्री पर बलात्कार करता हुआ वह अपनी अन्तरात्मा पर भी बलात्कार करता है। अन्ततः वह पाता है, यह सम्भव नहीं। केवल प्रेम ही सम्भव है। सर्वहारा के साथ मुक्तिबोध की कोरी सहानुभूति नहीं थी। उसके पीछे केवल उनकी व्याख्यापरक बुद्धि और अनुभव से उत्पन्न विश्वास थे। उनका विश्वास था कि मध्यवर्ग पर थोपी गयी तथाकथित आधुनिकता मनुष्यता, करुणा, आदर्शवादिता और सत्य का संहार है। ‘सतह से उठता आदमी’ के पात्र इस संहार के खँडहर हैं—वे भारतीय इतिहास के सर्वनाश के जीवित प्रतीक हैं, जिन्हें परिभाषित करने की अनिवार्यता ने मुक्तिबोध को इन कहानियों की रचना के लिए विवश किया।</blockquote>-श्रीकान्त शर्मा<ref>{{cite web |url=pustak.org/home.php?bookid=396 |title=सतह से उठता आदमी |accessmonthday=22 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language= हिंदी}}</ref>
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<blockquote>जीवन-दृष्टि शिक्षा से नहीं, आत्मसंघर्ष से प्राप्त होती है। इन कहानियों के तमाम शिक्षित पात्रों के बिलकुल विपरीत ‘आखेट’ कहानी का नायक कान्सटेबिल मेहरबानसिंह एक अशिक्षित व्यक्ति है, जिसे केवल उत्पीड़न और जुल्म की ट्रेनिंग दी गयी है। मगर उसकी अन्तरात्मा उसे दी गयी शिक्षा से प्रबल है। एक अपाहिज स्त्री पर बलात्कार करता हुआ वह अपनी अन्तरात्मा पर भी बलात्कार करता है। अन्ततः वह पाता है, यह सम्भव नहीं। केवल प्रेम ही सम्भव है। सर्वहारा के साथ मुक्तिबोध की कोरी सहानुभूति नहीं थी। उसके पीछे केवल उनकी व्याख्यापरक बुद्धि और अनुभव से उत्पन्न विश्वास थे। उनका विश्वास था कि मध्यवर्ग पर थोपी गयी तथाकथित आधुनिकता मनुष्यता, करुणा, आदर्शवादिता और सत्य का संहार है। ‘सतह से उठता आदमी’ के पात्र इस संहार के खँडहर हैं—वे भारतीय इतिहास के सर्वनाश के जीवित प्रतीक हैं, जिन्हें परिभाषित करने की अनिवार्यता ने मुक्तिबोध को इन कहानियों की रचना के लिए विवश किया। -श्रीकान्त शर्मा<ref>{{cite web |url=http://pustak.org/home.php?bookid=396 |title=सतह से उठता आदमी |accessmonthday=22 दिसम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=भारतीय साहित्य संग्रह |language= हिंदी}}</ref></blockquote>
  
 
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09:26, 22 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

सतह से उठता आदमी -गजानन माधव मुक्तिबोध
'सतह से उठता आदमी' का आवरण पृष्ठ
लेखक गजानन माधव 'मुक्तिबोध'
मूल शीर्षक 'सतह से उठता आदमी'
प्रकाशक भारतीय ज्ञानपीठ
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, सन 2000
ISBN 81-263-0360-3
देश भारत
भाषा हिन्दी
विधा कहानी संग्रह
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द
विशेष इस संग्रह में मुक्तिबोध की नौ कहानियाँ संकलित हैं।

सतह से उठता आदमी भारत के प्रसिद्धि प्रगतिशील कवि और हिन्दी साहित्य की स्वातंत्र्योत्तर प्रगतिशील काव्यधारा के शीर्ष व्यक्तित्व गजानन माधव 'मुक्तिबोध' द्वारा लिखी गई पुस्तक है। हिन्दी साहित्य में सर्वाधिक चर्चा के केन्द्र में रहने वाले मुक्तिबोध एक कहानीकार होने के साथ ही समीक्षक भी थे। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित ‘चाँद का मुँह टेढ़ा है’, ‘एक साहित्यिक की डायरी’, ‘काठ का सपना’ तथा ‘विपात्र’ के बाद गजानन माधव मुक्तिबोध की यह एक और विशिष्ट कृति है ‘सतह से उठता आदमी’। इस संग्रह में मुक्तिबोध की नौ कहानियाँ संकलित हैं।

साहित्यिक दृष्टिकोण

मुक्तिबोध के साहित्य में हमारे संस्कारों को सँवारने और उन्हें ऊँचा उठाने की बड़ी शक्ति है। वह हम मध्यवर्गीय पाठकों की दृष्टि साफ करता है, समझ बढ़ाता है। इन कहानियों में भी हमें अपने जीवन के विविध पक्षों का अति निकट का परिचय एवं विश्लेषण मिलता है, और मिलती है सामाजिक सम्बन्धों की पैनी परख। एक के बाद एक परदे हटते जाते हैं और यथार्थ उघड़कर सामने आता जाता है। -शमशेर बहादुर सिंह

इन कहानियों में एक और विशेषता यह है कि ये सहज ही हर स्थिति के अतिसामान्य में असामान्य और अद्भुत का भरम पैदा कर देती हैं। इसे हम तटस्थ-सी काव्यकर्मी कल्पना-शक्ति का कमाल कह सकते हैं। और इसी वातावरण में हर कहानी एक ऐसे घाव को, एक ऐसी पीड़ा को हमारे सामने उघाड़कर रखती है जिसे हम देखकर अनदेखा और सुनकर अनसुना कर जाते रहे हैं। एक बार इन कहानियों को पढ़ने के बाद पाठक के लिए ऐसा करना असम्भव हो जाता है। लगता है, जैसे इन कहानियों में आयामी अर्थ छिपे हों। इन्हें पढ़ने पर हर बार ऐसा कुछ शेष रह जाता है जो इन्हें फिर-फिर पढ़ने को आमन्त्रित करता है। बात यह है कि ये कहानियाँ जीवन के ठहरे नैतिक मूल्यों पर सोचने के लिए पाठक को विवश करती है। मुक्तिबोध-साहित्य में इस कहानी-संग्रह का इज़ाफ़ा करने के लिए स्तरीय साहित्य का हिन्दी पाठक कृतज्ञता का अनुभव करेगा। इसका प्रकाशन किसी भी प्रकाशक के लिए गौरव की बात है।

जीवन-दृष्टि शिक्षा से नहीं, आत्मसंघर्ष से प्राप्त होती है। इन कहानियों के तमाम शिक्षित पात्रों के बिलकुल विपरीत ‘आखेट’ कहानी का नायक कान्सटेबिल मेहरबानसिंह एक अशिक्षित व्यक्ति है, जिसे केवल उत्पीड़न और जुल्म की ट्रेनिंग दी गयी है। मगर उसकी अन्तरात्मा उसे दी गयी शिक्षा से प्रबल है। एक अपाहिज स्त्री पर बलात्कार करता हुआ वह अपनी अन्तरात्मा पर भी बलात्कार करता है। अन्ततः वह पाता है, यह सम्भव नहीं। केवल प्रेम ही सम्भव है। सर्वहारा के साथ मुक्तिबोध की कोरी सहानुभूति नहीं थी। उसके पीछे केवल उनकी व्याख्यापरक बुद्धि और अनुभव से उत्पन्न विश्वास थे। उनका विश्वास था कि मध्यवर्ग पर थोपी गयी तथाकथित आधुनिकता मनुष्यता, करुणा, आदर्शवादिता और सत्य का संहार है। ‘सतह से उठता आदमी’ के पात्र इस संहार के खँडहर हैं—वे भारतीय इतिहास के सर्वनाश के जीवित प्रतीक हैं, जिन्हें परिभाषित करने की अनिवार्यता ने मुक्तिबोध को इन कहानियों की रचना के लिए विवश किया। -श्रीकान्त शर्मा[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सतह से उठता आदमी (हिंदी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 22 दिसम्बर, 2014।

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