"वीणा -सुमित्रानन्दन पंत" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=वीणा|लेख का नाम=वीणा (बहुविकल्पी)}}
 
{{बहुविकल्प|बहुविकल्पी शब्द=वीणा|लेख का नाम=वीणा (बहुविकल्पी)}}
'''वीणा [[सुमित्रानन्दन पंत]]''' की 1927 ई. में प्रकाशित रचना है। सुमित्रानन्दन पंत का काल क्रमानुसार''' तीसरा प्रकाशित ग्रंथ''' और '''पहला काव्य-संकलन''' है। संकलन में 36 स्फुट प्रगीत हैं। विज्ञापन के अनुसार इस संग्रह में दो-एक को छोड़कर अधिकांश रचनाएँ सन् 1917-1919 ई. की लिखी हुई हैं। ग्रंथ के लिए लिखी हुई भूमिका उसके साथ प्रकाशित नहीं हो सकी और अब 'गद्य पथ' में देखी जा सकती है। उससे कवि के दृष्टिकोण को समझने में पर्याप्त सहायता मिलती है।
+
{{सूचना बक्सा पुस्तक
;किशोर-क्षमता के अनुरूप
+
|चित्र=Blank-image-book.jpg
 +
|चित्र का नाम=
 +
|लेखक=
 +
|कवि= [[सुमित्रानन्दन पंत]]
 +
|मूल_शीर्षक = वीणा
 +
|मुख्य पात्र =
 +
|कथानक =
 +
|अनुवादक =
 +
|संपादक =
 +
|प्रकाशक =
 +
|प्रकाशन_तिथि = [[1927]] ई.
 +
|भाषा = [[हिन्दी]]
 +
|देश = [[भारत]]
 +
|विषय =
 +
|शैली =
 +
|मुखपृष्ठ_रचना =
 +
|विधा =
 +
|प्रकार =काव्य संकलन
 +
|पृष्ठ =
 +
|ISBN =
 +
|भाग =
 +
|विशेष =उन्होंने इन रचनाओं पर [[सरोजिनी नायडू]], [[कवीन्द्र रवीन्द्र]], [[कालिदास]] और [[अंग्रेज़ी]] के रोमांटिक कवियों के प्रभाव की चर्चा की है परंतु उनका आग्रह है कि इनमें सन्देह नहीं कि इन प्रगीत-रचनाओं में काव्य सृजन के नैसर्गिक संस्कार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
 +
|टिप्पणियाँ =
 +
}}
 +
'''वीणा''' [[सुमित्रानन्दन पंत]] की [[1927]] ई. में प्रकाशित रचना है। सुमित्रानन्दन पंत का काल क्रमानुसार तीसरा प्रकाशित ग्रंथ और पहला काव्य-संकलन है। संकलन में 36 स्फुट प्रगीत हैं। विज्ञापन के अनुसार इस संग्रह में दो-एक को छोड़कर अधिकांश रचनाएँ सन् 1917-1919 ई. की लिखी हुई हैं। ग्रंथ के लिए लिखी हुई भूमिका उसके साथ प्रकाशित नहीं हो सकी और अब 'गद्य पथ' में देखी जा सकती है। उससे कवि के दृष्टिकोण को समझने में पर्याप्त सहायता मिलती है।
 +
==किशोर-क्षमता के अनुरूप==
 
'साठ वर्ष-एक रेखांकन' में पंत ने लिखा है कि उन्होंने वीणा के प्रगीत हाई स्कूल की परीक्षा समाप्त होने पर छुट्टियों में [[कौसानी]] में लिखे और इनकी शैली तथा भावभूमि में [[बनारस]] में संचित अपने काव्य-संस्कारों को अपनी किशोर-क्षमता के अनुरूप वाणी देने की चेष्टा की। उन्होंने इन रचनाओं पर [[सरोजिनी नायडू]], [[कवीन्द्र रवीन्द्र]], [[कालिदास]] और [[अंग्रेजी]] के रोमाण्टिक कवियों के प्रभाव की चर्चा की है परंतु उनका आग्रह है कि इनमें सन्देह नहीं कि इन प्रगीत-रचनाओं में काव्य सृजन के नैसर्गिक संस्कार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
 
'साठ वर्ष-एक रेखांकन' में पंत ने लिखा है कि उन्होंने वीणा के प्रगीत हाई स्कूल की परीक्षा समाप्त होने पर छुट्टियों में [[कौसानी]] में लिखे और इनकी शैली तथा भावभूमि में [[बनारस]] में संचित अपने काव्य-संस्कारों को अपनी किशोर-क्षमता के अनुरूप वाणी देने की चेष्टा की। उन्होंने इन रचनाओं पर [[सरोजिनी नायडू]], [[कवीन्द्र रवीन्द्र]], [[कालिदास]] और [[अंग्रेजी]] के रोमाण्टिक कवियों के प्रभाव की चर्चा की है परंतु उनका आग्रह है कि इनमें सन्देह नहीं कि इन प्रगीत-रचनाओं में काव्य सृजन के नैसर्गिक संस्कार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।
 
;पंत का बाल-कंठ
 
;पंत का बाल-कंठ
 
'वीणा' में हमें पंत का बाल-कंठ मिलता है, जो अत्यंत आकर्षक है। [[छन्द|छन्दों]] की नयी छटा के साथ नयी भाव-भंगिमा और नूतन काव्य-[[भाषा]] के भी हमें दर्शन होते हैं। बुद्बुद के रूप में ही सही, यहाँ हमें नवीन काव्य-धारा का स्वप्न-भंग स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ता है। 'वीणा' में कवि की बाल-सुलभ उत्सुकता, जिज्ञासा और भोलेपन का सजीव चित्र मिलता है। सबसे आकर्षक बात कवि की अपनी बालिका के रूप में कल्पना है। प्रकृति वाणी अथवा पराशवित को मातृ-रूप में संबोधित करते हुए कवि ने अपने स्फुट, तोतले बोलों में बाल चिंतन अथवा कोमल कल्पना का जो मधु भरा है, वह उसके प्रौढ़ काव्य में उपलब्ध नहीं है।
 
'वीणा' में हमें पंत का बाल-कंठ मिलता है, जो अत्यंत आकर्षक है। [[छन्द|छन्दों]] की नयी छटा के साथ नयी भाव-भंगिमा और नूतन काव्य-[[भाषा]] के भी हमें दर्शन होते हैं। बुद्बुद के रूप में ही सही, यहाँ हमें नवीन काव्य-धारा का स्वप्न-भंग स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ता है। 'वीणा' में कवि की बाल-सुलभ उत्सुकता, जिज्ञासा और भोलेपन का सजीव चित्र मिलता है। सबसे आकर्षक बात कवि की अपनी बालिका के रूप में कल्पना है। प्रकृति वाणी अथवा पराशवित को मातृ-रूप में संबोधित करते हुए कवि ने अपने स्फुट, तोतले बोलों में बाल चिंतन अथवा कोमल कल्पना का जो मधु भरा है, वह उसके प्रौढ़ काव्य में उपलब्ध नहीं है।
;विस्तृत विषय-भूमि
+
==विस्तृत विषय-भूमि==
 
'वीणा' की विषय-भूमि बड़ी विस्तृत है। उसमें विचारों तथा भावनाओं के अनेक स्फुलिंग हैं, जो अपने क्षण-जीवन में ही चमत्कारक हैं। 'वीणा' के प्रगीतों में बाल-कवि का आत्मसंस्कारी संकल्प अत्यंत मुखर है और यही स्वर उसके उत्तर काव्य को वीणा-पल्लव' काल की रचनाओं से अलग करता है। 'वीणा' में पंत की जीवनव्यापी प्रवृत्तियों और साधना-दिशाओं का स्पष्ट आभास मिलता है और उसे हम उनके काव्य का पूर्वरंग कह सकते हैं। वह नितांत आत्मिक है क्योंकि उसमें युगबोध भी व्यक्तिगत रसोद्रेक और आत्मसंस्कार की भूमिका पर ही गृहीत हुआ है।  
 
'वीणा' की विषय-भूमि बड़ी विस्तृत है। उसमें विचारों तथा भावनाओं के अनेक स्फुलिंग हैं, जो अपने क्षण-जीवन में ही चमत्कारक हैं। 'वीणा' के प्रगीतों में बाल-कवि का आत्मसंस्कारी संकल्प अत्यंत मुखर है और यही स्वर उसके उत्तर काव्य को वीणा-पल्लव' काल की रचनाओं से अलग करता है। 'वीणा' में पंत की जीवनव्यापी प्रवृत्तियों और साधना-दिशाओं का स्पष्ट आभास मिलता है और उसे हम उनके काव्य का पूर्वरंग कह सकते हैं। वह नितांत आत्मिक है क्योंकि उसमें युगबोध भी व्यक्तिगत रसोद्रेक और आत्मसंस्कार की भूमिका पर ही गृहीत हुआ है।  
  
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
 
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
<references/>
 
{{cite book | last =धीरेंद्र| first =वर्मा| title =हिंदी साहित्य कोश| edition =| publisher =| location =| language =हिंदी| pages =576| chapter =भाग- 2 पर आधारित}}
 
{{cite book | last =धीरेंद्र| first =वर्मा| title =हिंदी साहित्य कोश| edition =| publisher =| location =| language =हिंदी| pages =576| chapter =भाग- 2 पर आधारित}}
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{सुमित्रानन्दन पंत}}
 
{{सुमित्रानन्दन पंत}}

11:33, 13 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

Disamb2.jpg वीणा एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वीणा (बहुविकल्पी)
वीणा -सुमित्रानन्दन पंत
Blank-image-book.jpg
कवि सुमित्रानन्दन पंत
मूल शीर्षक वीणा
प्रकाशन तिथि 1927 ई.
देश भारत
भाषा हिन्दी
प्रकार काव्य संकलन
विशेष उन्होंने इन रचनाओं पर सरोजिनी नायडू, कवीन्द्र रवीन्द्र, कालिदास और अंग्रेज़ी के रोमांटिक कवियों के प्रभाव की चर्चा की है परंतु उनका आग्रह है कि इनमें सन्देह नहीं कि इन प्रगीत-रचनाओं में काव्य सृजन के नैसर्गिक संस्कार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

वीणा सुमित्रानन्दन पंत की 1927 ई. में प्रकाशित रचना है। सुमित्रानन्दन पंत का काल क्रमानुसार तीसरा प्रकाशित ग्रंथ और पहला काव्य-संकलन है। संकलन में 36 स्फुट प्रगीत हैं। विज्ञापन के अनुसार इस संग्रह में दो-एक को छोड़कर अधिकांश रचनाएँ सन् 1917-1919 ई. की लिखी हुई हैं। ग्रंथ के लिए लिखी हुई भूमिका उसके साथ प्रकाशित नहीं हो सकी और अब 'गद्य पथ' में देखी जा सकती है। उससे कवि के दृष्टिकोण को समझने में पर्याप्त सहायता मिलती है।

किशोर-क्षमता के अनुरूप

'साठ वर्ष-एक रेखांकन' में पंत ने लिखा है कि उन्होंने वीणा के प्रगीत हाई स्कूल की परीक्षा समाप्त होने पर छुट्टियों में कौसानी में लिखे और इनकी शैली तथा भावभूमि में बनारस में संचित अपने काव्य-संस्कारों को अपनी किशोर-क्षमता के अनुरूप वाणी देने की चेष्टा की। उन्होंने इन रचनाओं पर सरोजिनी नायडू, कवीन्द्र रवीन्द्र, कालिदास और अंग्रेजी के रोमाण्टिक कवियों के प्रभाव की चर्चा की है परंतु उनका आग्रह है कि इनमें सन्देह नहीं कि इन प्रगीत-रचनाओं में काव्य सृजन के नैसर्गिक संस्कार स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं।

पंत का बाल-कंठ

'वीणा' में हमें पंत का बाल-कंठ मिलता है, जो अत्यंत आकर्षक है। छन्दों की नयी छटा के साथ नयी भाव-भंगिमा और नूतन काव्य-भाषा के भी हमें दर्शन होते हैं। बुद्बुद के रूप में ही सही, यहाँ हमें नवीन काव्य-धारा का स्वप्न-भंग स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ता है। 'वीणा' में कवि की बाल-सुलभ उत्सुकता, जिज्ञासा और भोलेपन का सजीव चित्र मिलता है। सबसे आकर्षक बात कवि की अपनी बालिका के रूप में कल्पना है। प्रकृति वाणी अथवा पराशवित को मातृ-रूप में संबोधित करते हुए कवि ने अपने स्फुट, तोतले बोलों में बाल चिंतन अथवा कोमल कल्पना का जो मधु भरा है, वह उसके प्रौढ़ काव्य में उपलब्ध नहीं है।

विस्तृत विषय-भूमि

'वीणा' की विषय-भूमि बड़ी विस्तृत है। उसमें विचारों तथा भावनाओं के अनेक स्फुलिंग हैं, जो अपने क्षण-जीवन में ही चमत्कारक हैं। 'वीणा' के प्रगीतों में बाल-कवि का आत्मसंस्कारी संकल्प अत्यंत मुखर है और यही स्वर उसके उत्तर काव्य को वीणा-पल्लव' काल की रचनाओं से अलग करता है। 'वीणा' में पंत की जीवनव्यापी प्रवृत्तियों और साधना-दिशाओं का स्पष्ट आभास मिलता है और उसे हम उनके काव्य का पूर्वरंग कह सकते हैं। वह नितांत आत्मिक है क्योंकि उसमें युगबोध भी व्यक्तिगत रसोद्रेक और आत्मसंस्कार की भूमिका पर ही गृहीत हुआ है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


धीरेंद्र, वर्मा “भाग- 2 पर आधारित”, हिंदी साहित्य कोश (हिंदी), 576।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख