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− | श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। | + | '''चालीसा''' |
− | निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।। | + | <blockquote><span style="color: maroon"><poem>श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।। |
− | ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।। | + | निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।। |
− | दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।। | + | ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।। |
− | तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।। | + | दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।। |
− | तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई ।। | + | तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।। |
− | ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।। | + | तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई ।। |
− | चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।। | + | ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।। |
− | गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ।। | + | चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।। |
− | नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ।। | + | गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ।। |
− | राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।। | + | नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ।। |
− | गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।। | + | राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।। |
− | शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ।। | + | गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।। |
− | फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।। | + | शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ।। |
− | भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो ।। | + | फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।। |
− | नाम अक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।। | + | भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो ।। |
− | लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ।। | + | नाम अक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।। |
− | ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।। | + | लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ।। |
− | महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ।। | + | ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।। |
− | सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।। | + | महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ।। |
− | + | सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।। | |
− | घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ।। | + | घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ।। |
− | सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत ।। | + | सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत ।। |
− | सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ।। | + | सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ।। |
− | औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ।। | + | औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ।। |
− | इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ।। | + | इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ।। |
− | जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।। | + | जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।। |
− | जय जय जय प्रभु ज्योति | + | जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ।। |
− | सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ।। | + | सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ।। |
− | सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ।। | + | सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ।। |
− | सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।। | + | सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।। |
− | सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।। | + | सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।। |
− | तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।। | + | तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।। |
− | जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।। | + | जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।। |
− | राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।। | + | राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।। |
− | ज्ञान हृदय दो ज्ञान | + | ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ।। |
− | धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ।। | + | धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ।। |
− | सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।। | + | सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।। |
− | सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ।। | + | सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ।। |
− | याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।। | + | याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।। |
− | आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा ।। | + | आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा ।। |
− | और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।। | + | और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।। |
− | तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।। | + | तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।। |
− | साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै ।। | + | साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै ।। |
− | अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।। | + | अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।। |
− | श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।< | + | श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।</poem></span></blockquote> |
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+ | '''दोहा''' | ||
+ | <blockquote><span style="color: blue"><poem>सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय । | ||
+ | हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ।। | ||
+ | राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय । | ||
+ | जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ।।</poem></span></blockquote> | ||
+ | {{seealso|राम|राम स्तुति|रामचंद्र जी की आरती|}} | ||
+ | ==संबंधित लेख== | ||
+ | {{आरती स्तुति स्तोत्र}} | ||
+ | [[Category:आरती स्तुति स्तोत्र]] | ||
+ | [[Category:हिन्दू धर्म]] [[Category:हिन्दू धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]] | ||
+ | [[Category:राम]] | ||
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11:34, 29 जुलाई 2014 के समय का अवतरण
चालीसा
श्री रघुवीर भक्त हितकारी । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ।।
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रहृ इन्द्र पार नहिं पाहीं ।।
दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना ।।
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ।।
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई । दीनन के हो सदा सहाई ।।
ब्रहादिक तव पारन पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ।।
चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखीं ।।
गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ।।
नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ।।
राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ।।
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो ।।
शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ।।
फूल समान रहत सो भारा । पाव न कोऊ तुम्हरो पारा ।।
भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुं न रण में हारो ।।
नाम अक्षुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ।।
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ।।
ताते रण जीते नहिं कोई । युद्घ जुरे यमहूं किन होई ।।
महालक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ।।
सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ।।
घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ।।
सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्घि चरणन में लोटत ।।
सिद्घि अठारह मंगलकारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ।।
औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ।।
इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ।।
जो तुम्हे चरणन चित लावै । ताकी मुक्ति अवसि हो जावै ।।
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा । नर्गुण ब्रहृ अखण्ड अनूपा ।।
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ।।
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ।।
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं ।।
सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे ।।
तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ।।
जो कुछ हो सो तुम ही राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ।।
राम आत्मा पोषण हारे । जय जय दशरथ राज दुलारे ।।
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जगपति भूपा ।।
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ।।
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ।।
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुम ही हो हमरे तन मन धन ।।
याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ।।
आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिर मेरा ।।
और आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावे सोई ।।
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ।।
साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्घता पावै ।।
अन्त समय रघुबरपुर जाई । जहां जन्म हरि भक्त कहाई ।।
श्री हरिदास कहै अरु गावै । सो बैकुण्ठ धाम को पावै ।।
दोहा
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय ।।
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय ।।
इन्हें भी देखें: राम, राम स्तुति एवं रामचंद्र जी की आरती