"यह स्तुति अब तुम बंद करो -आदित्य चौधरी" के अवतरणों में अंतर
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आदित्य चौधरी (चर्चा | योगदान) |
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फिर एक दिवस ऐसा आया | फिर एक दिवस ऐसा आया | ||
मैं रचूँ सृष्टि, मुझको भाया | मैं रचूँ सृष्टि, मुझको भाया | ||
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मैंने ही सृष्टि रची अर्जुन ! | मैंने ही सृष्टि रची अर्जुन ! | ||
अब सुनो बुद्धि से श्रेष्ठ वचन | अब सुनो बुद्धि से श्रेष्ठ वचन | ||
पंक्ति 59: | पंक्ति 57: | ||
कोई और नहीं खोता कुछ भी | कोई और नहीं खोता कुछ भी | ||
मरता मैं हूँ कोई और नहीं | मरता मैं हूँ कोई और नहीं | ||
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+ | | | ||
+ | <poem> | ||
तुम मुझे सर्वव्यापी कहकर | तुम मुझे सर्वव्यापी कहकर | ||
कर रहे पाप सब रह रह कर | कर रहे पाप सब रह रह कर | ||
− | मैं ही हंता, | + | मैं ही हंता, स्रष्टा मैं ही ? |
कृष्ण, कंस दोनों मैं ही? | कृष्ण, कंस दोनों मैं ही? | ||
पंक्ति 74: | पंक्ति 74: | ||
अपराधी मुझको मान लिया | अपराधी मुझको मान लिया | ||
मैंने मुझको ही दंड दिया? | मैंने मुझको ही दंड दिया? | ||
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अर्जुन! कैसा है ये अनर्थ | अर्जुन! कैसा है ये अनर्थ | ||
मेरा, होना ही हुआ व्यर्थ | मेरा, होना ही हुआ व्यर्थ | ||
पंक्ति 86: | पंक्ति 84: | ||
आँखें मलता सब सुना किया | आँखें मलता सब सुना किया | ||
जैसे-तैसे मन शांत किया | जैसे-तैसे मन शांत किया | ||
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+ | सब उलझ गये इन बातों में | ||
+ | आश्चर्य भरा था आँखों में | ||
+ | अर्जुन भी सुनकर भ्रमित हुआ | ||
+ | प्रभु ने आगे फिर प्रश्न किया | ||
क्या हंता हो सकती माता | क्या हंता हो सकती माता |
14:44, 27 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
यह स्तुति अब तुम बंद करो -आदित्य चौधरी
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