भारत को स्वयं बनाओ -आदित्य चौधरी
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'हम' क्या कर सकते हैं ?
बहुत हो चुका-
'मैं' क्या कर सकता हूँ !
इस पर आओ
बिना रीढ़ के लोगों से
क्या कहना
सपनों के भारत को
स्वयं बनाओ
संभावित रस्ते
अब हुए पुराने
नई राह पर
नई रौशनी लाओ
मूक-बधिर क्या बोलें
और सुनेंगे
तुम उद्घोष कर्म का
करते जाओ
इनके भ्रष्ट आचरण
को क्या रोना
पौध नई तुम
बगिया में महकाओ
आँखें नहीं है झुकती
झुकी है गर्दन
ऐसे बेशर्मों से
देश बचाओ
औरों से फिर
कहना सुनना होगा
पहले ख़ुद ही
सही ठिकाना पाओ
राष्ट्र प्रेम है
नहीं सिर्फ़ बातों से
सचमुच ही
कुछ करके दिखला जाओ
देकर योगदान
तुम पहले अपना
भारतकोश 'बढ़ाने' में
जुट जाओ
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