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इसके बाद हेमकरन ने राजपुरोहित गजाधर से परामर्श लिया। उन्होंने हेमकरन को [[विन्धयवासिनी]] देवी की पूजा के लिए कहा। [[मिर्ज़ापुर]] में विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा में चार नरबलियाँ दी गई थी, नरबलियों के बाद देवी प्रसन्न हुई और हेमकरन को वरदान दिया था लेकिन हेमकरन के भाईयों का अत्याचार उसके लिए अब भी कम नही हुआ था। उसने फिर कालांतर में  एक और नरबलि देकर देवी को प्रसन्न किया। देवी नें पाँचों नरबलियों के कारण उसे पंचम की संज्ञा दी। इसके बाद वह विन्ध्यवासिनी देवी का परम भक्त बन गया था। जनसमाज में वह [[पंचम विन्ध्येला]] कहलाया। देवी द्वारा दिये गए वरदानों को [[ओरछा राज्य]] के इतिहास में विशेष महत्व दिया गया है।
 
इसके बाद हेमकरन ने राजपुरोहित गजाधर से परामर्श लिया। उन्होंने हेमकरन को [[विन्धयवासिनी]] देवी की पूजा के लिए कहा। [[मिर्ज़ापुर]] में विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा में चार नरबलियाँ दी गई थी, नरबलियों के बाद देवी प्रसन्न हुई और हेमकरन को वरदान दिया था लेकिन हेमकरन के भाईयों का अत्याचार उसके लिए अब भी कम नही हुआ था। उसने फिर कालांतर में  एक और नरबलि देकर देवी को प्रसन्न किया। देवी नें पाँचों नरबलियों के कारण उसे पंचम की संज्ञा दी। इसके बाद वह विन्ध्यवासिनी देवी का परम भक्त बन गया था। जनसमाज में वह [[पंचम विन्ध्येला]] कहलाया। देवी द्वारा दिये गए वरदानों को [[ओरछा राज्य]] के इतिहास में विशेष महत्व दिया गया है।
  
एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि हेमकरन ने देवी के समक्ष अपनी गर्दन पर जब तलवार रखी और स्वयं की बलि देनी चाही तो देवी ने उसे रोक दिया परंतु तलवार की धार से हेमकरन के रक्त की पांच बूंदें गिर गई थीं इन्हीं के कारण हेमकरन का नाम पंचम बुंदेला पड़ा था। ओरथा दरबार के पत्र में अभी भी पूर्ववर्ती विरुद्ध के प्रमाण मिलते हैं जैसे - श्री सूर्यकुलावतन्स काशीश्वरपंचम ग्रहनिवार विन्ध्यलखण्डमण्लाहीश्वर श्री महाराजाधिराज ओरछा नरेश। विन्ध्यवासिनी देवी का वरदान  हेमकरन को रविवार के दिन मिला था, [[ओरछा]] में आज भी इस दिन नगाड़े बजाये जाते हैं। हेमकरन के बाद गहरवारपुरा के नाम से मिर्जापुर स्थित गौरा भी प्रसिद्ध है। इसके बाद का चक्र बड़ी तेजी से घूमा और वीरभद्र ने गदौरिया राजपूतों मे अँटेर छीनकर  महोनी को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद बुंदेलों की राजधानी [[गढ़कुण्डार]] बनी। वीरभद्र के पाँच विवाह  हुए थे और इनके पाँच पुत्र प्रसिद्ध हैं - इनमें रणधीर द्वितीय रानी से, कर्णपाल तृतीय रानी से, हीराशी, हंसराज और कल्याणसिंह पंचम रानी से थे। वीरभद्र के बाद कर्णपाल (1087 ई० से 1112 ई०) गद्दी पर बैठा था। कर्णपाल की चार पत्नियाँ थीं। प्रथम के कन्नारशाह, उदयशाह और जामशाह पैदा हुए। द्वितीय पत्नी से शौनक देव तथा नन्नुकदेव तथा चतुर्थ पत्नी से वीरसिंहदेव का जन्म हुआ था।
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एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि हेमकरन ने देवी के समक्ष अपनी गर्दन पर जब तलवार रखी और स्वयं की बलि देनी चाही तो देवी ने उसे रोक दिया परंतु तलवार की धार से हेमकरन के रक्त की पांच बूंदें गिर गई थीं इन्हीं के कारण हेमकरन का नाम पंचम बुंदेला पड़ा था। ओरथा दरबार के पत्र में अभी भी पूर्ववर्ती विरुद्ध के प्रमाण मिलते हैं जैसे - श्री सूर्यकुलावतन्स काशीश्वरपंचम ग्रहनिवार विन्ध्यलखण्डमण्लाहीश्वर श्री महाराजाधिराज ओरछा नरेश। विन्ध्यवासिनी देवी का वरदान  हेमकरन को रविवार के दिन मिला था, [[ओरछा]] में आज भी इस दिन नगाड़े बजाये जाते हैं। हेमकरन के बाद गहरवारपुरा के नाम से मिर्जापुर स्थित गौरा भी प्रसिद्ध है। इसके बाद का चक्र बड़ी तेजी से घूमा और वीरभद्र ने गदौरिया राजपूतों मे अँटेर छीनकर  महोनी को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद बुंदेलों की राजधानी [[गढ़कुण्डार]] बनी। वीरभद्र के पाँच विवाह  हुए थे और इनके पाँच पुत्र प्रसिद्ध हैं - इनमें रणधीर द्वितीय रानी से, कर्णपाल तृतीय रानी से, हीराशी, हंसराज और कल्याणसिंह पंचम रानी से थे। वीरभद्र के बाद कर्णपाल (1087 ई0 से 1112 ई0) गद्दी पर बैठा था। कर्णपाल की चार पत्नियाँ थीं। प्रथम के कन्नारशाह, उदयशाह और जामशाह पैदा हुए। द्वितीय पत्नी से शौनक देव तथा नन्नुकदेव तथा चतुर्थ पत्नी से वीरसिंहदेव का जन्म हुआ था।
  
 
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11:23, 11 जून 2010 का अवतरण

बुंदेल क्षत्रीय जाति के शासक थे तथा सुदूर अतीत में सूर्यवंशी राजा मनु से संबन्धित हैं। इक्ष्वाकु के बाद रामचन्द्र जी के पुत्र लव से उनके वंशजो की परंपरा आगे बढ़ाई गई है और गहरवार शाखा के कर्त्तृराज को इसी में काशी के साथ जोड़ा गया है। लव के अलावा कर्त्तृराज के उत्तराधिकारियों में गगनसेन, कनकसेन, प्रद्युम्न आदि के नाम ही महत्वपूर्ण हैं। बुंदेलखंड के इतिहास, बुंदेलखंड में बुंदेला का शासन प्रमुख है।

बनारस के राजाओं को अनेक समय तक सूर्यवंशी सूर्य-कुलावंतस काशीश्वर पुकारा जाता रहा है। इनकी परंपरा इस प्रकार है - कर्त्तृराज, महिराज, मूर्धराज, उदयराज, गरुड़सेन, समरसेन, आनंदसेन, करनसेन, कुमारसेन, मोहनसेन, राजसेन, काशीराज, श्यामदेव, प्रह्मलाददेव, हम्मीरदेव, आसकरन, अभयकरन, जैतकरन, सोहनपाल और करनपाल। इसमें करनपाल के तीन पुत्र थे - वीर, हेमकरण और अरिब्रह्म। हेमकरन को करनपाल ने अपने सामने ही गद्दी पर बैठाया था। और इसे करनपाल की मृत्यु के बाद शेष दो भाईयों ने पदच्युत कर देश निकाला दे दिया था।

हेमकरन द्वारा विन्ध्यवासिनी देवी की आराधना

इसके बाद हेमकरन ने राजपुरोहित गजाधर से परामर्श लिया। उन्होंने हेमकरन को विन्धयवासिनी देवी की पूजा के लिए कहा। मिर्ज़ापुर में विन्ध्यवासिनी देवी की पूजा में चार नरबलियाँ दी गई थी, नरबलियों के बाद देवी प्रसन्न हुई और हेमकरन को वरदान दिया था लेकिन हेमकरन के भाईयों का अत्याचार उसके लिए अब भी कम नही हुआ था। उसने फिर कालांतर में एक और नरबलि देकर देवी को प्रसन्न किया। देवी नें पाँचों नरबलियों के कारण उसे पंचम की संज्ञा दी। इसके बाद वह विन्ध्यवासिनी देवी का परम भक्त बन गया था। जनसमाज में वह पंचम विन्ध्येला कहलाया। देवी द्वारा दिये गए वरदानों को ओरछा राज्य के इतिहास में विशेष महत्व दिया गया है।

एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि हेमकरन ने देवी के समक्ष अपनी गर्दन पर जब तलवार रखी और स्वयं की बलि देनी चाही तो देवी ने उसे रोक दिया परंतु तलवार की धार से हेमकरन के रक्त की पांच बूंदें गिर गई थीं इन्हीं के कारण हेमकरन का नाम पंचम बुंदेला पड़ा था। ओरथा दरबार के पत्र में अभी भी पूर्ववर्ती विरुद्ध के प्रमाण मिलते हैं जैसे - श्री सूर्यकुलावतन्स काशीश्वरपंचम ग्रहनिवार विन्ध्यलखण्डमण्लाहीश्वर श्री महाराजाधिराज ओरछा नरेश। विन्ध्यवासिनी देवी का वरदान हेमकरन को रविवार के दिन मिला था, ओरछा में आज भी इस दिन नगाड़े बजाये जाते हैं। हेमकरन के बाद गहरवारपुरा के नाम से मिर्जापुर स्थित गौरा भी प्रसिद्ध है। इसके बाद का चक्र बड़ी तेजी से घूमा और वीरभद्र ने गदौरिया राजपूतों मे अँटेर छीनकर महोनी को अपनी राजधानी बनाया था। इसके बाद बुंदेलों की राजधानी गढ़कुण्डार बनी। वीरभद्र के पाँच विवाह हुए थे और इनके पाँच पुत्र प्रसिद्ध हैं - इनमें रणधीर द्वितीय रानी से, कर्णपाल तृतीय रानी से, हीराशी, हंसराज और कल्याणसिंह पंचम रानी से थे। वीरभद्र के बाद कर्णपाल (1087 ई0 से 1112 ई0) गद्दी पर बैठा था। कर्णपाल की चार पत्नियाँ थीं। प्रथम के कन्नारशाह, उदयशाह और जामशाह पैदा हुए। द्वितीय पत्नी से शौनक देव तथा नन्नुकदेव तथा चतुर्थ पत्नी से वीरसिंहदेव का जन्म हुआ था।