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[[विवाह संस्कार|विवाह]] का शाब्दिक अर्थ है 'उठाकर ले जाना'। क्योंकि विवाह के अंतर्गत कन्या को उसके पिता के घर से पतिगृह को उठा ले जाते हैं, इसलिए इस क्रिया को 'उद्वाह' कहा जाता है।  
*एक स्त्री को पत्नी बनाकर स्वीकार करने को उद्वाह कहते है।
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#वर को बुलाकर शक्ति के अनुसार कन्या को अलंकृत करके जब दिया जाता है, उसे 'ब्राह्मा विवाह' कहते हैं।
 
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#जहाँ पर यज्ञ में स्थित ऋत्विक् वर को कन्या दी जाती है, उसे 'दैव विवाह' कहते हैं।
 
#जहाँ पर यज्ञ में स्थित ऋत्विक् वर को कन्या दी जाती है, उसे 'दैव विवाह' कहते हैं।
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12:42, 27 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

विवाह का शाब्दिक अर्थ है 'उठाकर ले जाना'। क्योंकि विवाह के अंतर्गत कन्या को उसके पिता के घर से पतिगृह को उठा ले जाते हैं, इसलिए इस क्रिया को 'उद्वाह' कहा जाता है।

  • एक स्त्री को पत्नी बनाकर स्वीकार करने को उद्वाह कहते हैं।
  • यह आठ प्रकार का होता है[1]
  1. वर को बुलाकर शक्ति के अनुसार कन्या को अलंकृत करके जब दिया जाता है, उसे 'ब्राह्मा विवाह' कहते हैं।
  2. जहाँ पर यज्ञ में स्थित ऋत्विक् वर को कन्या दी जाती है, उसे 'दैव विवाह' कहते हैं।
  3. जहाँ पर वर से दो बैल लेकर उसी के साथ कन्या का विवाह कर दिया जाता है, उसे 'आर्ष विवाह' कहते हैं।
  4. जहाँ 'इसके साथ धर्म का आचरण करे' ऐसा नियम करके कन्यादान किया जाता है, उसे 'प्राजापत्य' विवाह कहते हैं।
  5. जहाँ धन लेकर कन्यादान किया जाता है, वह 'आसुर विवाह' कहलाता है।
  6. जहाँ कन्या और वर का परस्पर प्रेम हो जाने के कारण 'तुम मेरी पत्नी हो', 'तुम मेरे पति हो', ऐसा निश्चय कर लिया जाता है, वह 'गान्धर्व विवाह' कहलाता है।
  7. जहाँ बलपूर्वक कन्या का अपहरण कर लिया जाता है, उसे 'राक्षस विवाह' कहते हैं।
  8. जहाँ सोयी हुई, मत्त अथवा प्रमत्त कन्या के साथ निर्जन में बलात्कार किया जाता है, वह 'पैशाच विवाह' कहलाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनु. 3.21

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