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#यह मिसाइल दागे जाने पर अपनी पूर्ण ऊंचाई के बाद धरती पर लौटते समय अधिक गुरत्वाकषर्षण बल के कारण अधिक तेजी से आती है। इंटरनल नेविगेशन सिस्टम और इसमें लगे कम्प्यूटर की मदद से यह अपने निर्धारित रास्ते का पालन करते हुए लक्ष्य भेदती है।
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08:25, 10 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण

अग्नि-5 मिसाइल
अग्नि-5 मिसाइल
विवरण 'अग्नि-5' भारत की अन्तरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है। अत्याधुनिक तकनीक से निर्मित यह मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है और इसकी मारक क्षमता भी कफ़ी अधिक है।
देश भारत
निर्माता रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन
वज़न करीब 50 टन
लम्बाई 17.5 मीटर
व्यास 2 मीटर
वारहैड नाभिकीय
इंजन तीन चरण ठोस ईधन
संबंधित लेख अग्नि, अग्नि-2, पृथ्वी-2, ब्रह्मोस, शौर्य
अन्य जानकारी अग्नि-5 दागे जाने पर अपनी पूर्ण ऊंचाई के बाद धरती पर लौटते समय अधिक गुरत्वाकषर्षण बल के कारण अधिक तेज़ीसे आती है। इंटरनल नेविगेशन सिस्टम और इसमें लगे कम्प्यूटर की मदद से यह अपने निर्धारित रास्ते का पालन करते हुए लक्ष्य भेदती है।

अग्नि-5 मिसाइल (अंग्रेज़ी: Agni-V) भारत द्वारा विकसित अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है। यह मिसाइल ज़मीन से ज़मीन पर मार करने में सक्षम है। यह 5000 किलोमीटर से अधिक दूरी तक मारक क्षमता से पूर्ण है। अग्नि-5 मिसाइल 17.5 मीटर लम्बी, दो मीटर चौड़ी है और इसका वज़न करीब 50 टन है। इसे 'रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन' ने विकसित किया है। यह मिसाइल अत्याधुनिक तकनीक से बनी और परमाणु हथियारों से लैस होकर एक टन पेलोड ले जाने में सक्षम है। पाँच हज़ार किलोमीटर तक के दायरे में इस्तेमाल की जाने वाली इस मिसाइल में तीन चरणों का प्रोपल्शन सिस्टम लगाया गया है। इसे हैदराबाद की 'प्रगत प्रणाली प्रयोगशाला'[1] ने तैयार किया है।

विकास

ये करीब 10 साल का फासला है, जब भारत की ताकत अग्नि-1 मिसाइल से अब अग्नि-5 मिसाइल तक पहुंची है। 2002 में सफल परीक्षण की रेखा पार करने वाली अग्नि-1 मिसाइल, मध्यम रेंज की बैलिस्टिक मिसाइल थी। इसकी मारक क्षमता 700 किलोमीटर थी और इससे 1000 किलो तक के परमाणु हथियार ढोए जा सकते थे। फिर आई अग्नि-2, अग्नि-3 और अग्नि-4 मिसाइलें। ये तीनों इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइलें हैं। इनकी मारक क्षमता 2000 से 3500 किलोमीटर है और अब भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन यानी डीआरडीओ ने अग्नि-5 मिसाइल का सफल परीक्षण कर लिया है।

19 अप्रैल, 2012 को अग्नि-5 का पहला; 15 सितंबर, 2013 को दूसरा और 31 जनवरी, 2015 को तीसरा परीक्षण किया गया था। अग्नि श्रृंखला की यह सबसे आधुनिक मिसाइल है, जिसमें नेविगेशन, गाइडेंस, वॉरहेड और इंजन से जुड़ी नई तकनीकों को शामिल किया गया है। देश में विकसित कई तकनीकों का इस मिसाइल में सफल परीक्षण किया गया है। मिसाइल में रिंग लेसर गायरो बेस्ड इनरशियल नेविगेशन सिस्टम और अत्याधुनिक आर सटीक माइक्रो नेविगेशन सिस्टम तकनीकों का इस्तेमाल किया गया है। इससे मिसाइल को लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाने में मदद मिलती है।

विशेषताएँ

  1. अग्नि-5 मिसाइल एम.आई.आर.वी. तकनीक से लैस है, अर्थात् 'एकाधिक स्वतंत्र रूप से लक्षित करने योग्य पुनः प्रवेश वाहन'। इस तकनीक की मदद से इस मिसाइल से एक साथ कई जगहों पर वार किया जा सकता है। एक साथ कई जगहों पर गोले दागे जा सकते हैं। यहाँ तक कि अलग-अलग देशों के ठिकानों पर एक साथ हमले किए जा सकते हैं।
  2. अग्नि-5 का इस्तेमाल बेहद आसान है। इसे रेल, सड़क या हवा, कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। देश के किसी भी कोने में इसे तैनात कर सकते हैं; जबकि किसी भी प्लेटफॉर्म से युद्ध के दौरान इसकी मदद ली जा सकती हैं।
  3. अग्नि-5 के लॉन्चिंग सिस्टम में कैनिस्टर तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इस वजह से इसको कहीं भी बड़ी आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है, जिससे हम अपने दुश्मन के करीब पहुंच सकते हैं।
  4. इस मिसाइल की कामयाबी से भारतीय सेना की ताकत कई गुना बढ़ जाएगी, क्योंकि न सिर्फ इसकी मारक क्षमता 5 हज़ार किलोमीटर है, बल्कि ये परमाणु हथियारों को भी ले जाने में सक्षम है।
  5. अग्नि-5 भारत की पहली अंतर महाद्वीपीय यानी इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल है। यानी अब भारत की गिनती उन 5 देशों में होगी, जिनके पास इंटरकॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल है। भारत से पहले अमेरिका, रूस, फ़्राँस और चीन ने इंटर-कॉन्टिनेंटल बालिस्टिक मिसाइल की ताकत हासिल की है।
  6. अग्नि-5 एक टन का पे-लोड ले जाने में सक्षम है। खुद अग्नि-5 मिसाइल का वजन करीब 50 टन है।
  7. इस मिसाइल की लंबाई 17 मीटर और चौड़ाई 2 मीटर है। यह सॉलिड फ्यूल की 3 चरणों वाली मिसाइल है।
  8. अग्नि-5 में आर.एल.जी. तकनीक[2] का इस्तेमाल किया गया है। भारत में ही बनी इस तकनीक की खासियत ये है कि ये निशाना बेहद सटीक लगाती है।
  9. यह मिसाइल दागे जाने पर अपनी पूर्ण ऊंचाई के बाद धरती पर लौटते समय अधिक गुरत्वाकषर्षण बल के कारण अधिक तेज़ीसे आती है। इंटरनल नेविगेशन सिस्टम और इसमें लगे कम्प्यूटर की मदद से यह अपने निर्धारित रास्ते का पालन करते हुए लक्ष्य भेदती है।
  10. धरती पर लौटते समय घर्षण की वजह से मिसाइल का तापमान 4000 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है। हालांकि स्वदेशी कार्बन परत आंतरिक तापमान 50 डिग्री बनाए रखती है।
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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. Advanced Systems Laboratory
  2. RING LASER GYROSCOPE

संबंधित लेख