"भारतेन्दु युग" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को "भारतेन्दु युग" क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
 +
|चित्र=Bhartendu-Harishchandra-3.jpg
 +
|चित्र का नाम=भारतेन्दु हरिश्चंद्र
 +
|विवरण='भारतेन्दु युग' आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रथम चरण को कहा गया है। इस काल में [[निबंध]], नाटक, [[उपन्यास]] तथा [[कहानी|कहानियों]] की रचना हुई।
 +
|शीर्षक 1=अन्य नाम
 +
|पाठ 1=नवजागरण काल
 +
|शीर्षक 2=समय
 +
|पाठ 2=[[1869]] से [[1900]]
 +
|शीर्षक 3=प्रमुख कवि व लेखक
 +
|पाठ 3=[[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]], [[प्रताप नारायण मिश्र]], [[राधाकृष्णदास]], [[अंबिकादत्त व्यास]], [[ठाकुर जगमोहन सिंह]], [[बालकृष्ण भट्ट]], [[देवकीनन्दन खत्री]] और किशोरी लाल गोस्वामी आदि।
 +
|शीर्षक 4=
 +
|पाठ 4=
 +
|शीर्षक 5=
 +
|पाठ 5=
 +
|शीर्षक 6=
 +
|पाठ 6=
 +
|शीर्षक 7=
 +
|पाठ 7=
 +
|शीर्षक 8=
 +
|पाठ 8=
 +
|शीर्षक 9=
 +
|पाठ 9=
 +
|शीर्षक 10=विशेष
 +
|पाठ 10=भारतेन्दु युग के कवियों की सबसे बड़ी साहित्यिक देन केवल यही मानी जा सकती है कि उन्होंने [[कविता]] को [[रीतिकाल|रीतिकालीन]] परिवेश से मुक्त करके समसामयिक जीवन से जोड़ दिया।
 +
|संबंधित लेख=
 +
|अन्य जानकारी=भारतेन्दु युग में परंपरागत धार्मिकता और भक्ति भावना को अपेक्षत: गौण स्थान प्राप्त हुआ। [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र|भारतेन्दु]] ने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से संपन्न किया और रीति की बँधी-बँधायी परिपाटी से कविता-सुन्दरी को मुक्त करके ताजी हवा में साँस लेने का सुअवसर प्रदान किया।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 
आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को "भारतेन्दु युग" की संज्ञा प्रदान की गई है। [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] को [[हिन्दी साहित्य]] के [[आधुनिक काल|आधुनिक युग]] का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने 'कविवचन सुधा', '[[हरिश्चन्द्र मैगजीन|हरिश्चन्द्र मैगज़ीन]]' और 'हरिश्चंद्र पत्रिका' भी निकाली। इसके साथ ही अनेक नाटकों आदि की रचना भी की। भारतेन्दु युग में [[निबंध]], [[नाटक]], [[उपन्यास]] तथा [[कहानी|कहानियों]] की रचना हुई।
 
आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को "भारतेन्दु युग" की संज्ञा प्रदान की गई है। [[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] को [[हिन्दी साहित्य]] के [[आधुनिक काल|आधुनिक युग]] का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने 'कविवचन सुधा', '[[हरिश्चन्द्र मैगजीन|हरिश्चन्द्र मैगज़ीन]]' और 'हरिश्चंद्र पत्रिका' भी निकाली। इसके साथ ही अनेक नाटकों आदि की रचना भी की। भारतेन्दु युग में [[निबंध]], [[नाटक]], [[उपन्यास]] तथा [[कहानी|कहानियों]] की रचना हुई।
 
==नवजागरण काल==
 
==नवजागरण काल==
 
भारतेंदु काल को 'नवजागरण काल' भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में [[काव्य]] रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे [[साहित्य]] पर प्रभाव पड़ने लगा था। प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से [[1869]]) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन [[1868]] के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] को है। इसलिए इस युग को "भारतेन्दु युग" भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले [[ब्रजभाषा]] में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे। भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया।<ref>{{cite web |url=http://aanchalik.blogspot.in/2011/07/1869-1900.html |title=भारतेन्दु काल या नवजागरण काल (1869 से 1900) |accessmonthday= 09 जनवरी|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आँचलिक |language= हिन्दी}}</ref>
 
भारतेंदु काल को 'नवजागरण काल' भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में [[काव्य]] रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे [[साहित्य]] पर प्रभाव पड़ने लगा था। प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से [[1869]]) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन [[1868]] के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] को है। इसलिए इस युग को "भारतेन्दु युग" भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले [[ब्रजभाषा]] में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे। भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया।<ref>{{cite web |url=http://aanchalik.blogspot.in/2011/07/1869-1900.html |title=भारतेन्दु काल या नवजागरण काल (1869 से 1900) |accessmonthday= 09 जनवरी|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आँचलिक |language= हिन्दी}}</ref>
 
==प्रमुख कवि==
 
==प्रमुख कवि==
[[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]], बाबा सुमेर सिंह, बदरी नारायण प्रेमघन (1855-1923), [[प्रताप नारायण मिश्र]] (1856-1894), [[राधाकृष्णदास|राधाकृष्ण दास]] (1865-1907), [[अंबिकादत्त व्यास|अंबिका दत्त व्यास]] (1858-1900) और [[ठाकुर जगमोहन सिंह]] (1857-1899) इस युग के प्रमुख [[कवि]] थे। अन्य कवियों में रामकृष्ण वर्मा, श्री निवासदास, लाला सीताराम, राय देवी प्रसाद, बालमुकुंद गुप्त, नवनीत चौबे आदि हैं।
+
[[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]], बाबा सुमेर सिंह, बदरी नारायण प्रेमघन (1855-1923), [[प्रताप नारायण मिश्र]] (1856-1894), [[राधाकृष्णदास|राधाकृष्ण दास]] (1865-1907), [[अंबिकादत्त व्यास|अंबिका दत्त व्यास]] (1858-1900) और [[ठाकुर जगमोहन सिंह]] (1857-1899) इस युग के प्रमुख [[कवि]] थे। अन्य कवियों में रामकृष्ण वर्मा, श्री निवासदास, लाला सीताराम, राय देवी प्रसाद, बालमुकुंद गुप्त, नवनीत चौबे आदि हैं। इस काल के लेखकों में [[बालकृष्ण भट्ट]], राधा चरण गोस्वामी, उपाध्याय बदरीनाथ चौधरी 'प्रेमघन', लाला श्रीनिवास दास, [[देवकीनन्दन खत्री]] और किशोरी लाल गोस्वामी आदि उल्लेखनीय हैं। इनमें से अधिकांश लेखक होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे।
 
==भारतेन्दु हरिश्चंद्र का योगदान==
 
==भारतेन्दु हरिश्चंद्र का योगदान==
 
भारतेन्दु युग के पूर्व [[कविता]] में [[रीति काल|रीतिकालीन]] प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं। अतिशय श्रृंगारिकता, [[अलंकार]] मोह, रीति निरुपण एवं चमत्कारप्रियता के कारण कविता जन-जीवन से कट गई थी। देशी रियासतों के संरक्षण में रहने वाले कविगण रीतीकाल के व्यामोह से न तो उबरना चाहते थे और न ही उबरने का प्रयास कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में भारतेन्दु जी का काव्य-क्षेत्र में पदार्पण वस्तुतः आधुनिक हिन्दी काव्य के लिये वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से संपन्न किया और रीति की बँधी-बँधायी परिपाटी से कविता-सुन्दरी को मुक्त करके ताजी हवा में साँस लेने का सुअवसर प्रदान किया। भारतेन्दु युग में परंपरागत धार्मिकता और भक्ति भावना को अपेक्षत: गौण स्थान प्राप्त हुआ, फिर भी इस काल के भक्ति काव्य को तीन वर्गौं में विभाजित किया जा सकता हैं-<ref>{{cite web |url= http://naiksiri.blogspot.in/2012/02/blog-post_3485.html|title=भारतेंदु युग के साहित्यिक महत्त्व |accessmonthday= 09 जनवरी|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= नायकश्री|language= हिन्दी}}</ref>
 
भारतेन्दु युग के पूर्व [[कविता]] में [[रीति काल|रीतिकालीन]] प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं। अतिशय श्रृंगारिकता, [[अलंकार]] मोह, रीति निरुपण एवं चमत्कारप्रियता के कारण कविता जन-जीवन से कट गई थी। देशी रियासतों के संरक्षण में रहने वाले कविगण रीतीकाल के व्यामोह से न तो उबरना चाहते थे और न ही उबरने का प्रयास कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में भारतेन्दु जी का काव्य-क्षेत्र में पदार्पण वस्तुतः आधुनिक हिन्दी काव्य के लिये वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से संपन्न किया और रीति की बँधी-बँधायी परिपाटी से कविता-सुन्दरी को मुक्त करके ताजी हवा में साँस लेने का सुअवसर प्रदान किया। भारतेन्दु युग में परंपरागत धार्मिकता और भक्ति भावना को अपेक्षत: गौण स्थान प्राप्त हुआ, फिर भी इस काल के भक्ति काव्य को तीन वर्गौं में विभाजित किया जा सकता हैं-<ref>{{cite web |url= http://naiksiri.blogspot.in/2012/02/blog-post_3485.html|title=भारतेंदु युग के साहित्यिक महत्त्व |accessmonthday= 09 जनवरी|accessyear= 2016|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= नायकश्री|language= हिन्दी}}</ref>

13:08, 9 जनवरी 2016 का अवतरण

भारतेन्दु युग
भारतेन्दु हरिश्चंद्र
विवरण 'भारतेन्दु युग' आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रथम चरण को कहा गया है। इस काल में निबंध, नाटक, उपन्यास तथा कहानियों की रचना हुई।
अन्य नाम नवजागरण काल
समय 1869 से 1900
प्रमुख कवि व लेखक भारतेन्दु हरिश्चंद्र, प्रताप नारायण मिश्र, राधाकृष्णदास, अंबिकादत्त व्यास, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालकृष्ण भट्ट, देवकीनन्दन खत्री और किशोरी लाल गोस्वामी आदि।
विशेष भारतेन्दु युग के कवियों की सबसे बड़ी साहित्यिक देन केवल यही मानी जा सकती है कि उन्होंने कविता को रीतिकालीन परिवेश से मुक्त करके समसामयिक जीवन से जोड़ दिया।
अन्य जानकारी भारतेन्दु युग में परंपरागत धार्मिकता और भक्ति भावना को अपेक्षत: गौण स्थान प्राप्त हुआ। भारतेन्दु ने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से संपन्न किया और रीति की बँधी-बँधायी परिपाटी से कविता-सुन्दरी को मुक्त करके ताजी हवा में साँस लेने का सुअवसर प्रदान किया।

आधुनिक हिंदी काव्य के प्रथम चरण को "भारतेन्दु युग" की संज्ञा प्रदान की गई है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग का प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने 'कविवचन सुधा', 'हरिश्चन्द्र मैगज़ीन' और 'हरिश्चंद्र पत्रिका' भी निकाली। इसके साथ ही अनेक नाटकों आदि की रचना भी की। भारतेन्दु युग में निबंध, नाटक, उपन्यास तथा कहानियों की रचना हुई।

नवजागरण काल

भारतेंदु काल को 'नवजागरण काल' भी कहा गया है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल के संक्राति काल के दो पक्ष हैं। इस समय के दरम्यान एक और प्राचीन परिपाटी में काव्य रचना होती रही और दूसरी ओर सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में जो सक्रियता बढ़ रही थी और परिस्थितियों के बदलाव के कारण जिन नये विचारों का प्रसार हो रहा था, उनका भी धीरे-धीरे साहित्य पर प्रभाव पड़ने लगा था। प्रारंभ के 25 वर्षों (1843 से 1869) तक साहित्य पर यह प्रभाव बहुत कम पड़ा, किन्तु सन 1868 के बाद नवजागरण के लक्षण अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे थे। विचारों में इस परिवर्तन का श्रेय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र को है। इसलिए इस युग को "भारतेन्दु युग" भी कहते हैं। भारतेन्दु के पहले ब्रजभाषा में भक्ति और श्रृंगार परक रचनाएँ होती थीं और लक्षण ग्रंथ भी लिखे जाते थे। भारतेन्दु के समय से काव्य के विषय चयन में व्यापकता और विविधता आई। श्रृंगारिकता, रीतिबद्धता में कमी आई। राष्ट्र-प्रेम, भाषा-प्रेम और स्वदेशी वस्तुओं के प्रति प्रेम कवियों के मन में भी पैदा होने लगा। उनका ध्यान सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान की ओर भी गया। इस प्रकार उन्होंने सामाजिक राजनीतिक क्षेत्रों में गतिशील नवजागरण को अपनी रचनाओं के द्वारा प्रोत्साहित किया।[1]

प्रमुख कवि

भारतेन्दु हरिश्चंद्र, बाबा सुमेर सिंह, बदरी नारायण प्रेमघन (1855-1923), प्रताप नारायण मिश्र (1856-1894), राधाकृष्ण दास (1865-1907), अंबिका दत्त व्यास (1858-1900) और ठाकुर जगमोहन सिंह (1857-1899) इस युग के प्रमुख कवि थे। अन्य कवियों में रामकृष्ण वर्मा, श्री निवासदास, लाला सीताराम, राय देवी प्रसाद, बालमुकुंद गुप्त, नवनीत चौबे आदि हैं। इस काल के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट, राधा चरण गोस्वामी, उपाध्याय बदरीनाथ चौधरी 'प्रेमघन', लाला श्रीनिवास दास, देवकीनन्दन खत्री और किशोरी लाल गोस्वामी आदि उल्लेखनीय हैं। इनमें से अधिकांश लेखक होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे।

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का योगदान

भारतेन्दु युग के पूर्व कविता में रीतिकालीन प्रवृत्तियाँ विद्यमान थीं। अतिशय श्रृंगारिकता, अलंकार मोह, रीति निरुपण एवं चमत्कारप्रियता के कारण कविता जन-जीवन से कट गई थी। देशी रियासतों के संरक्षण में रहने वाले कविगण रीतीकाल के व्यामोह से न तो उबरना चाहते थे और न ही उबरने का प्रयास कर रहे थे। ऐसी परिस्थितियों में भारतेन्दु जी का काव्य-क्षेत्र में पदार्पण वस्तुतः आधुनिक हिन्दी काव्य के लिये वरदान सिद्ध हुआ। उन्होंने काव्य क्षेत्र को आधुनिक विषयों से संपन्न किया और रीति की बँधी-बँधायी परिपाटी से कविता-सुन्दरी को मुक्त करके ताजी हवा में साँस लेने का सुअवसर प्रदान किया। भारतेन्दु युग में परंपरागत धार्मिकता और भक्ति भावना को अपेक्षत: गौण स्थान प्राप्त हुआ, फिर भी इस काल के भक्ति काव्य को तीन वर्गौं में विभाजित किया जा सकता हैं-[2]

  1. निर्गुण भक्ति
  2. वैष्णव भक्ति
  3. स्वदेशानुराग-समन्वित ईश्वर-भक्ति

इस युग में हास्य-व्यंग्यात्मक कविताओं की भी प्रचुर परिणाम में रचना हुई।

भारतेन्दु युग के कवियों की सबसे बड़ी साहित्यिक देन केवल यही मानी जा सकती है कि उन्होंने कविता को रीतिकालीन परिवेश से मुक्त करके समसामयिक जीवन से जोड़ दिया। भारतेन्दु आधुनिक काल के जनक थे और भारतेन्दु युग के अन्य कवि उनके प्रभामंडल में विचरण करने वाले ऐसे नक्षत्र थे, जिन्होंने अपनी खुली आँखों से जन-जीवन को देखकर उसे अपनी कविता का विषय बनाया। इस काल में कविता और जीवन के निकट का संबंध स्थापित हुआ और यही इस कविता का महत्व है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतेन्दु काल या नवजागरण काल (1869 से 1900) (हिन्दी) आँचलिक। अभिगमन तिथि: 09 जनवरी, 2016।
  2. भारतेंदु युग के साहित्यिक महत्त्व (हिन्दी) नायकश्री। अभिगमन तिथि: 09 जनवरी, 2016।

संबंधित लेख