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कलचुरियों के शासन में लक्ष्मणदेव, गंगेयदेव, कर्ण, गयाकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि का शासन काल समृद्धिपूर्ण माना जाता है। इन्होंने 500 वर्ष तक शासन किया जिसे सन 1200 के आसपास [[देवगढ़]] के राजा ने समाप्त कर दिया और फिर यह शासन चन्देलों के अधीन आया। हर्षवर्धन के समय चन्देल राज्य एक छोटी सी ईकाई थी परन्तु उसके बाद यह विस्तार पाकर दसवीं शताब्दी तक एक शक्तिशाली राज्य बन गया था।
 
कलचुरियों के शासन में लक्ष्मणदेव, गंगेयदेव, कर्ण, गयाकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि का शासन काल समृद्धिपूर्ण माना जाता है। इन्होंने 500 वर्ष तक शासन किया जिसे सन 1200 के आसपास [[देवगढ़]] के राजा ने समाप्त कर दिया और फिर यह शासन चन्देलों के अधीन आया। हर्षवर्धन के समय चन्देल राज्य एक छोटी सी ईकाई थी परन्तु उसके बाद यह विस्तार पाकर दसवीं शताब्दी तक एक शक्तिशाली राज्य बन गया था।
  
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13:04, 10 जनवरी 2011 का अवतरण

कलचुरियों की दो शाखायें हैं -

त्रिपुरी के कलचुरियों का बुंदेलखंड में विशेष महत्व है। हैह्यवंशी कीर्तिवीर्य अर्जुन की परंपरा में इस वंश को पुराणों में माना जाता है। महाराज कोक्कल ने (जबलपुर के पास) त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया था और यह वंश त्रिपुरी के कलचुरियों के नाम से विख्यात है। कोक्कल बड़ी सूझबूझ एवं दूरदृष्टि वाला उत्साही व्यक्ति था। उसने चन्देल की कुमारी नट्टा देवी से विवाह किया था। यह विवाह उसने उत्तर के चंदेलों की बढ़ती हुई शक्ति से लाभ उठाने के लिए किया था।

प्रतापी कोक्कल देव के दो पुत्र थे। मुग्धतुंग और केयूरवर्ष इन दोनों ने बहुत उन्नति की थी। केयूरवर्ष ने गौड़, कर्णाटलाट आदि देशों की स्रियों से राजमहल को सुशोभित किया था। विद्शाल मंजिका नाटक में राजशेखर ने केयूरवर्ष के प्रताप का वर्णन किया है।

कलचुरियों के शासन में लक्ष्मणदेव, गंगेयदेव, कर्ण, गयाकर्ण, नरसिंह, जयसिंह आदि का शासन काल समृद्धिपूर्ण माना जाता है। इन्होंने 500 वर्ष तक शासन किया जिसे सन 1200 के आसपास देवगढ़ के राजा ने समाप्त कर दिया और फिर यह शासन चन्देलों के अधीन आया। हर्षवर्धन के समय चन्देल राज्य एक छोटी सी ईकाई थी परन्तु उसके बाद यह विस्तार पाकर दसवीं शताब्दी तक एक शक्तिशाली राज्य बन गया था।


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