सहारनपुर रियासत

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वर्तमान समय में गुर्जर प्रतिहारों की केवल तीन ही रियासतें बचीं हुई है- लंधौरा रियासत, समथर रियासत और झबरेड़ा रियासत। लंधौरा रियासत के वर्तमान महाराजा कुँवर प्रणव सिंह परमार हैं (पँवार वंश), समथर रियासत के वर्तमान महाराजा रणजीत सिंह जूदेव (खटाणा) और झबरेड़ा रियासत के यशवीर व कुलवीर सिंह। इन तीनों गुर्जर प्रतिहार रियासतों के महल और किले बहुत ही खूबसूरत हैं, जो आज भी शान से खड़े हैं।

राजा हरिसिंह गुर्जर गुर्जरगढ़़ (सहारनपुर) रियासत के आखिरी राजा थे। 19वीं सदी तक सहारनपुर का नाम गुर्जरगढ़़ था। 1857 के गुर्जर विद्रोह में राजा हरिसिंह का राजपाठ अंग्रेज़ों द्वारा समाप्त कर दिया गया। जिसमें गद्दार रजवाड़ों कि मदद से 1858 ई. तक सब देशप्रेमी गुर्जरों और उनके राजाओं को खत्म कर दिया गया। सहारनपुर, परिक्षितगढ़, दादरी इत्यादि गुर्जर रियासत थीं, जहाँ आज सिर्फ किले के कुछ कोने ही बचे हुए हैं।[1]

सहारनपुर के किले को 1858 ई. में तोड़ डाला गया। 1857 की क्रान्ति की शुरुआत कोतवाल धनसिंह गुर्जर द्वारा हो चुकी थी, जिसकी चिंगारी आसपास के सभी गुर्जर बहुल क्षेत्रों में पहुंच गई और वीरों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया, जिसमें सैकड़ों-हजारों वीर गुर्जर शहीद हो गए और यह आग पूरे उत्तर प्रदेश मे फैल गई। बाकी राज्य के क्रान्ति में हिस्सा ना लेने के कारण इनका मनोबल टूट गया और कार्य असफल हो गया। 1857 के गुर्जर विद्रोह का बदला लेने के लिए अंग्रेज़ों ने गुर्जरों के गाँवों को उजाड़ना शुरू कर दिया। राजपूताना के रजवाड़ों की सैना की मदद से सहारनपुर की गुर्जर रियासत जप्त कर ली गई और राजा हरिसिंह गुर्जर को तोप के मुहँ से बांधकर मार डाला गया। अंग्रेज़ों ने हर सोलह वर्ष और अधिक उम्र के गुर्जर लड़के को भून डाला। हर पेड़ पर 10-15 लाशें लटकी रहीं। इतनी क्रूरता थी कि उनका अंतिम संस्कार भी नहीं करने दिया गया।

राजा हरिसिंह के बेटे चौधरी आशाराम को गुर्जर ग्रामीणों ने बचा भगाया और वंश को समाप्त होने से बचाया। बड़े होकर चौधरी आशाराम को राय साहेब की पड़ाती और औनरी मजिस्ट्रेट का खिताब दिया गया और सहारनपुर ज़िले के पहले मजिस्ट्रेट बने और उनके बेटे गुर्जर संगत सिंह पंवार गुर्जर समाज के पहले आई.पी.एस बने। वे अपने समय के बड़े ही शूरवीर माने जाते थे। सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें कश्मीर का राज्यपाल बनने का प्रस्ताव भी मिला। संगत सिंह जी की पत्नी पीरनगर रियासत से थीं और उनका नाम पीतमकौर प्रधान था (मावी गुर्जर)। उनकी बुआ लढौरारा रियासत की राजगद्दी पर बैठने वाली आखिरी रानी थीं। समथर रियासत भी एक गुर्जर रियासत थी, जो इनके ही सबंध में आती थी।

समथर रियासत झांसी के पास पड़ती है, जो गुर्जरों की सबसे बड़ी रियासत है। रनजीत सिंह खटाणा समथर के राजा थे। भारतीय इतिहास लेखन में बहुत से राजवंशों और समुदायों को अपेक्षित स्थान नहीं मिल पाया है। ऐसे राजवंशों का उल्लेख यदाकदा इतिहास के संदर्भ ग्रन्थों में मिल जाता है, परन्तु इनके संगठित एवं क्रमबद्ध इतिहास का प्राय: अभाव है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सहारनपुर रियासत का इतिहास (हिंदी) ugtabharat.com। अभिगमन तिथि: 29 अगस्त, 2018।

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