सत्यकाम (फ़िल्म)
सत्यकाम (फ़िल्म)
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निर्देशक | ऋषिकेश मुखर्जी |
निर्माता | धर्मेन्द्र |
लेखक | नारायण सान्याल |
कहानी | नारायण सान्याल |
पटकथा | बिमल दत्ता |
संवाद | राजेन्द्र सिंह बेदी |
कलाकार | धर्मेन्द्र, शर्मिला टैगोर, अशोक कुमार, संजीव कुमार, रोबी घोष, डेविड, तरूण बोस, राजन हक्सर, मनमोहन, बाल कलाकार- सारिका |
प्रसिद्ध चरित्र | सत्यप्रिय आचार्य |
संगीत | लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल |
गीतकार | कैफ़ी आज़मी |
गायक | लता मंगेशकर, मुहम्मद रफ़ी |
प्रसिद्ध गीत | "दो दिन की ज़िन्दगी. कैसी है ज़िन्दगी", "अभी क्या सुनोगे सुना तो हंसोगे कि है गीत अधूरा तराना अधूरा" |
प्रदर्शन तिथि | 1969 |
भाषा | हिन्दी |
देश | भारत |
अद्यतन | 14:37, 29 सितम्बर 2011 (IST)
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सत्यकाम, ऋषिकेश मुखर्जी की सबसे अच्छी फ़िल्मों में से है। उन्होंने बहुत ही अच्छे विषय को लेकर एक बहुत ही प्रभावशाली फ़िल्म बनायी है। इस विषय पर इतनी अच्छी और रोचक फ़िल्म हिन्दी सिनेमा में बहुत ही कम हैं और निस्संदेह सत्यकाम इस श्रेणी की फ़िल्मों में सर्वोच्च स्थान रखती है। यह फ़िल्म अपने आप में जीवन मूल्यों का एक ऐसा अनूठा और आदर्श दर्शन है जिसकी मिसाल आज भी संजीदा फ़िल्मकार और कलाकार देते हैं।
प्रदर्शन का समय
सत्यकाम का प्रदर्शन काल 1969 का है। प्रख्यात फ़िल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी ने इस फ़िल्म का निर्देशन किया था। भारतीय सिनेमा के सदाबहार सुपर सितारे धर्मेन्द्र इस फ़िल्म के नायक थे। नायिका की भूमिका निभाई थी प्रसिद्ध अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने। धर्मेन्द्र वस्तुत: ऋषिकेश मुखर्जी के प्रिय नायक थे। वह उनसे उस दिन से प्रभावित थे, जब धर्मेन्द्र को उन्होंने बिमल राय की फ़िल्म बन्दिनी में डॉक्टर की भूमिका में देखा था। ऋषिकेश मुखर्जी के साथ सत्यकाम को याद करते हुए धर्मेन्द्र भावुक हो जाते हैं। वह बताते है कि हृषि दा अपने आपमें एक इन्स्टीटयूट थे। उनके साथ काम करना अपने पिता अपने अभिभावक के साथ काम करने की तरह था। यह मेरी खुशकिस्मती ही कही जाएगी कि उनके साथ मुझे अनुपमा, मझली दीदी, गुड्डी, सत्यकाम, चुपके-चुपके और चैताली में काम करने का अवसर मिला। वे मेरे कैरियर की उत्कृष्ट फ़िल्में हैं। ऋषिकेश मुखर्जी ने फ़िल्म सत्यकाम को जिस गुणवत्ता और संजीदगी से बनाया था वह अपने आप में मिसाल है। उल्लेखनीय है कि ऋषिकेश मुखर्जी महान् फ़िल्मकार बिमल राय के साथ उनकी फ़िल्मों का सम्पादन करते थे। उन्हीं बिमल राय का यह जन्मशताब्दी वर्ष भी है। बिमल राय ने ही ऋषिकेश मुखर्जी को सम्पादन के साथ-साथ सहायक निर्देशक, मुख्य सहायक निर्देशक और एसोसिएट डायरेक्टर तक की ज़िम्मेदारी सौंपी। ऋषिकेश मुखर्जी ने अपने कैरियर की पहली फ़िल्म मुसाफिर 1957 में निर्देशित की थी। सत्यकाम तक आते-आते वह अनाड़ी, अनुराधा, छाया, मेम दीदी, अनुपमा, मझली दीदी और आशीर्वाद जैसे कई श्रेष्ठ फ़िल्में बना चुके थे।
कथानक
सत्यकाम फ़िल्म को देखने किसी भी संवेदनशील और गम्भीर दर्शक के लिए अत्यन्त कठिन होता है। यह एक ऐसी फ़िल्म है जो दिल को छू जाती है। इस फ़िल्म का नायक सत्यप्रिय आचार्य अपने संस्कारों और पूर्वजों के पुण्यों को जीवन में आदर्श की तरह स्थापित करना चाहता है। वह आज़ाद हिन्दुस्तान के स्वर्णिम भविष्य का स्वप्न देखता है और एक ईमानदार, नैतिक और प्रतिबद्ध मानवीय मूल्यों को जीते हुए, उन मूल्यों की वकालत करता है। वह अपने निश्चयों में दृढ है और इंजीनियर जैसे पेशे में रहकर अपने आसपास की उन तमाम बुराइयों, भ्रष्टाचार, कामचोरी, बेईमानी सबके विरुद्ध सीना तान कर खड़ा होता है। वह बलात्कार की शिकार गर्भवती नायिका से विवाह करके उसे तथा उसके होने वाले बच्चे की सामाजिक प्रतिष्ठा की भी रक्षा करता है।
लेकिन यही सत्यप्रिय आचार्य नैतिकता और मूल्यों की लड़ाई लम्बी नहीं लड़ पाता और कैंसर जैसी भयानक बीमारी का शिकार हो जाता है। जीवन के अंतिम क्षण में उसकी पत्नी भी उसके सामने कुछ प्रश्नों के साथ होती है। आखिरी सांस के बीच वह दबाव में भुगतान के फर्जी दस्तावेज पर पत्नी और उसके बच्चे के भविष्य के लिए वो दस्तखत करता है लेकिन उसकी पत्नी का बोध जाग्रत होता है और वह उस काग़ज़ के टुकडे-टुकडे करके सत्यप्रिय आचार्य के सिद्धान्तों और जीवन मूल्यों को प्रतिष्ठापित करने का काम करती है।
कलाकार
इस फ़िल्म में अशोक कुमार, संजीव कुमार, रोबी घोष, डेविड, तरूण बोस, राजन हक्सर और मनमोहन के साथ बाल कलाकार के रूप में सारिका ने भी अहम भूमिका निभायी थी। नारायण सान्याल की यह कहानी थी जिसकी पटकथा बिमल दत्ता ने लिखी थी और संवाद राजेन्द्र सिंह बेदी ने लिखे थे। दो दिन की ज़िन्दगी, कैसी है ज़िन्दगी; अभी क्या सुनोगे सुना तो हंसोगे, कि है गीत अधूरा तराना अधूरा जैसे गहरे और मर्मस्पशी गीतों की रचना कैफी आजमी ने की थी। संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल थे।
आज भी यह फ़िल्म अपनी सार्थकता विषय के साथ अपने असाधारण निर्वाह ओर गहरे मर्मभेदी प्रभाव के साथ उल्लेखनीय है। देश और समाज में भ्रष्टाचार चोरी, बेईमानी और तमाम बुराइयों की स्थितियों में सत्यकाम की प्रासंगिता बल्कि बेहद ज़्यादा है। यह समय देखा जाये तो अपने समय की इस आदर्श फ़िल्म के राष्ट्रव्यापी पुनरवलोकन का समय है।
कलाकार परिचय
क्रमांक | कलाकार | पात्र का नाम |
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1. | अशोक कुमार | सत्यशरण आचर्य, दादा जी |
2. | धर्मेंद्र | सत्यप्रिय आचर्य, सत्य |
3. | शर्मिला टैगोर | रंजना |
4. | रोबी घोष | अनंथो चैटर्जी |
5. | संजीव कुमार | नरेंद्र शर्मा, नरेन |
6. | डेविड अब्राहम | रुस्तम, डेविड |
7. | डी.के.सप्रू | दीवान बजरीधर |
8. | तरूण बोस | श्रीमान लाडिया |
9. | राजन हक्सर | श्याम सुंदर |
10. | मनमोहन | कुँवर विक्रम सिंह |
11. | बेबी सारिका | काबुल एस. आचर्य |
12. | दीना पाठक | हरभजन की माँ |
13. | उमा दत्त | चीफ इंजीनियर |
14. | असरानी | पीटर |
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