दूध
दूध एक अपारदर्शी सफ़ेद पेय पदार्थ है जो मादाओं के दुग्ध ग्रन्थियों द्वारा बनता है। नवजात शिशु तब तक दूध पर निर्भर रहता है जब तक वह अन्य पदार्थों का सेवन करने में अक्षम होता है।
- दूध एक विजातीय पदार्थ है जिसमें वसा, प्रोटीन, दुग्धम, खनिज पदार्थ तथा अन्य अवयव या तो घोल या निलम्बन या पायस के रूप में सदैव द्रव अवस्था में पाए जाते हैं।
- साधारणतया दूध में 85 प्रतिशत जल होता है और शेष भाग में ठोस तत्त्व यानी खनिज व वसा होता है। गाय-भैंस के अलावा बाज़ार में विभिन्न कंपनियों का पैक्ड दूध भी उपलब्ध होता है।
- दूध प्रोटीन, कैल्शियम और राइबोफ्लेविन (विटामिन बी -2) युक्त होता है, इनके अलावा इसमें विटामिन ए, डी, के और ई सहित फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, आयोडिन व कई खनिज और वसा तथा ऊर्जा भी होती है। इसके अलावा इसमें कई एंजाइम भी होते हैं। आहार विशेषज्ञों की मानें तो ये सब पोषक तत्व हमारी मांसपेशियों और हड्डियों के गठन में अहम भूमिका निभाते हैं। प्रोटीन एंटीबॉडीज के रूप में काम करता है और हमें इन्फेक्शन से बचाता है।
- दूध में न्यूनतम वसा 3.5 प्रतिशत और वसा रहित ठोस 8.5 प्रतिशत होनी चाहिये। दूध का PH मान 6.6 तथा क्वथनांक 100 से 115 से.ग्रे. होता है।
मुख्य अवयव और भौतिक गुण
दूध के विभिन्न विश्लेषणों से पता चलता है कि इसमें वसा, प्रोटीन, खनिज लवण, दुग्धम आदि मुख्य अवयव हैं। इन अवयवों की मात्रा विभिन्न पशुओं तथा एक ही पशु में विभिन्न समयों पर भिन्न-भिन्न होता है।
गुण | दूध | खीस |
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स्वाद | मीठा | तीखा |
सुगन्ध | सामान्य | सामान्य |
अम्लता | 0.12 से 0.14 % | 0.2 से 0.4 % |
हिमांक | -0.52 °C से -0.56 °C | -0.605 °C |
क्लोराइडस | 0.14 % | 0.149 से 0.156 % |
वर्तनांक | 1.344 - 1.348 | दूध की अपेक्षा अधिक |
आपेक्षिक घनत्व | 1.028 से 1.032 | 1.04 से 1.08 |
विद्युत संचालकता | 0.005 म्हो | दूध की अपेक्षा अधिक |
गाढ़ापन | 1.5 से 2.0 सेंटी पाइस | दूध की अपेक्षा अधिक |
- घी अथवा दूध का पीला रंग कैरोटिन के कारण होता है।
- शुद्ध देशी घी में एक विशेष प्रकार की सुगन्ध डाइएसीटिल के कारण होती है।
- दूध में केसीन, एलब्यूमिन तथा ग्लोबिन, तीन प्रमुख प्रकार के प्रोटीन पाये जाते हैं। इसमें केसीन की मात्रा सबसे अधिक होती है।
- केसीन प्रोटीन से 'लेनीटाल' या लेक्टोफिल तथा एरालोक नाम के धागे बनाये जाते हैं।
- दुग्धम दूध में पाया जाने वाला मुख्य कार्बोहाइड्रेट है।
खीस
खीस एक प्रकार का क्षरण है जो बच्चा पैदा होने के तुरंत बाद प्राप्त होता है। यह क्षरण नवजात शिशु के लिए अति आवश्यक होता है, क्योंकि यह शिशु की बहुत सी बीमारियों से रक्षा करता है। इसका संघटन सामान्य दूध से अलग तरह का होता है जो कुछ दिन के अन्दर सामान्य दूध में परिवर्तित हो जाता है। खीस का दूध की तुलना में अधिक पीला होने के कारण उसमें कैरोटीन की अधिकता तथा गुलाबी रंग का कारण उसमें रक्त का मिला होना है। खीस में प्रोटीन की मात्रा 11.34% दुग्ध की मात्रा 2.19%, राख की मात्रा 1% तथा जल की मात्रा 74.19% होती है।
खीस रेचक तथा रोग प्रतिकारक के रूप में महत्त्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त खीस में विटामिन ए, विटामिन बी, ट्रिप्टोफेन तथा लोहा एवं ग्लोब्यलीन (प्रोलीन) की मात्रा अधिक होती है जो बच्चों को संक्रामक रोगों से बचाता है।
पौष्टिक आहार
दूध प्रकृति का सबसे पौष्टिक आहार है। इसलिए इसे धरती का अमृत भी कहते हैं। मनुष्य के लिए दूध सर्वोत्तम और संपूर्ण खाद्य पदार्थ है। दूध मनुष्य की अधिकांश पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। दूध वह आहार है जो स्तनपायी प्राणियों को जन्म लेते ही सबसे पहले उपलब्ध होता है। मानव शिशु तो प्रारंभिक 5-6 माह तक एवं बाद में कुछ माह तक आंशिक रूप से माता के दूध पर ही निर्भर रहता है। यह निश्चित है कि स्वस्थ माँ का दूध पीने वाला बालक जितना स्वस्थ, सुडौल और हष्ट-पुष्ट रहता है, उतना खाना (भोजन) शुरू करने के बाद नहीं रह पाता। दूध एक ऐसा पेय पदार्थ जो आसानी से पच जाता है। दूध में शारीरिक वृद्धि करने वाले, शरीर को शक्ति देने वाले सभी तत्त्व विद्यामान रहते हैं। दूध शक्ति, वृद्धि, कान्ति, बल, वीर्य बढ़ाने वाला होता है। यह शरीर को ठंडक देते हुए मल को प्रवृत्त करता है व पाचन को ठीक बनाए रखने में सहायक होता है। दूध आयु बढ़ाकर यौवन को अधिक काल तक बनाए रखता है। दूध में शरीर को शक्ति देने वाले सभी तत्व काफ़ी मात्रा में पा जाते हैं। शाकाहारियों के लिए दूध से बढ़कर कोई पौष्टिक वस्तु नहीं है। यदि मांसाहारी एक कप दूध पिए तो दोनों की शक्ति समान होती है। दूध में कैल्शियम एवं फास्फोरस काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इससे हड्डियां, दांत, मांसपेशियां मज़बूत होती हैं। मनुष्य सिर्फ़ दूध पीकर जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक आनंदपूर्वक जीवन निर्वाह कर सकता है। इसके सेवन से किसी प्रकार के रोग होने की संभावना नहीं रहती है। दूध में मनुष्य शरीर के पोषक तत्व उचित मात्रा में विद्यामान रहते हैं। दूध की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक पूर्ण पुष्टिकारक आहार होते हुए भी बहुत जल्दी हजम हो जाता है। दूध किसी भी हालत में नुकसान नहीं करता। हर हालत में गुणकारी होता है।[1]
गाय का दूध
गाय के दूध में प्रति ग्राम 3.14 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी गाय के ताजा दूध को ही उत्तम मानते हैं। अनेकानेक चिकत्सकों का भी मानना है कि गाय का दूध भैंस की तुलना में दिमाग के लिए अच्छा है, पर इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. एच. एस. छाबड़ा के अनुसार कुछ स्टडी बताती हैं कि गाय के दूध से बेहतर है भैंस का दूध। उसमें कम कोलेस्ट्रॉल होता है और मिनरल ज़्यादा होते हैं। गाय के दूध में कार्बोहाइड्रेट लेक्टेज की मात्रा 4% तथा वसा की मात्रा 4.5% होती है।
भैंस का दूध
भैंस के दूध में प्रति ग्राम 0.65 मिली ग्राम कोलेस्ट्रॉल होता है। भैंस के दूध में गाय के दूध की तुलना में 92 फीसदी कैल्शियम, 37 फीसदी आयरन और 118 फीसदी फॉस्फोरस ज़्यादा होता है। भैंस के दूध में कार्बोहाइड्रेट लेक्टेज की मात्रा 4.9% तथा वसा की मात्रा 7% होती है।[2]
विशिष्ट दूध
टोंड दुग्ध
भैंस के दूध में पानी मिलाकर वसा तथा वसा रहित ठोस पदार्थों की मात्रा कम कर दिया जाता है तथा इसमें पुनः सप्रेटा दूध मिलाकर वसा रहित ठोस पदार्थों को शुद्ध दूध के बराबर कर दिया जाता है। इस प्रकार बने दूध को टोंड मिल्क कहते हैं।
डबल टोंड दुग्ध
यह भी एक प्रकार का टोंड मिल्क ही है लेकिन इसमें वसा की मात्रा 1.5% तथा वसा रहित ठोस पदार्थ की मात्रा 10% होती है। इसमें सप्रेटा दूध की जगह सप्रेटा दूध चूर्ण का प्रयोग किया जाता है।
फ्लेवर्ड दुग्ध
इसमें पाश्चुरीकृत दूध में थोड़ा मीठा एवं सुगन्ध फ्लेवर्ड दूध का निर्माण किया जाता है, तत्पश्चात् इसे बोतलों में भरकर इसे बाज़ार में बेचा जाता है। इसका पोषक मान पाश्चुरीकृत दूध से ज़्यादा होता है क्योंकि इसमें चीनी एवं सुगन्ध दोनों अलग से मिलाया जाता है।
प्रबलीकृत या विटामिन युक्त दुग्ध
दुग्ध एवं दुग्ध पदार्थों में विटामिन-डी की मात्रा मिलाकर इसकी पोषण महत्ता अधिक की जाती है। कुछ देशों में शुद्ध दूध की जगह सप्रेटा दूध ही बच्चों को पीने को मिलता है। ऐसी दशा में बच्चों के शरीर में विटामिन ए की भारी कमी हो जाती है। सप्रेटा दूध में विटामिन ए एवं विटामिन डी मिलाकर इसकी गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार विटामिनयुक्त दूध को प्रबलीकृत दूध कहते हैं।
सोयाबीन दूध
सोयाबीन से बने दूध को सोयाबीन दूध कहते हैं। सोयाबीन प्रोटीन का अच्छा एवं सस्ता स्रोत है। फलतः सोयाबीन के दूध में भी प्रोटीन की मात्रा काफ़ी होती है। यह दूध पौष्टिकता से परिपूर्ण होता है।
संघनित दूध
संघनित अथवा वाष्पित वह दूध है जिससे जल का कुछ भाग वाष्पीकरण के द्वारा अलग कर दिया जाता है। जब इसमें चीनी मिला दी जाती है तब इसे संघनित दूध कहते हैं। यदि चीनी न मिलाई जाय तो उसे वाष्पित दूध या सादा संघनित दूध कहते हैं।
दूध का उपयोग
दूध का सबसे अच्छा उपयोग पीना है। दूध हमेशा ताजा पीना चाहिए। दूध को 15-20 मिनट अच्छी तरह उबाल कर तथा ठंडा करके पीना चाहिए। दूध उबालने से उसके सभी हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। दूध पीने का सबसे अच्छा समय रात को सोते समय रहता है। भोजन करने के 2-3 घंटे बाद रात को सोते समय दूध पीना चाहिए, जो व्यक्ति शारीरिक रूप से कमज़ोर हो, उन्हें दूध ठंडा करके शहद डालकर पीना चाहिए। जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत रहती हों, उन्हें दूध में मुनक्का डालकर कुछ देर उबालकर पीना चाहिए, इससे कब्ज से छुटकारा मिलता है। जाड़े के दिनों में एक गिलास दूध में एक-दो अंजीर डालकर उबालकर पीने से दूध की पौष्टिकता में वृद्धि हो जाती है। [1]
दुग्ध संसाधन
पास्तुरीकरण
यह वह प्रक्रिया है जिसमें दूध को निश्चित तापक्रम पर एक निश्चित निश्चित समय तक रखकर इसमें उपस्थित प्रायः सभी जीवाणुओं को नष्ट कर दिया जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि दूध की पोषण महत्ता तथा क्रीम लेयर पर कोई प्रभाव न पड़े। इस प्रक्रिया में सामान्य तौर पर दूध को 600°C पर 20 मिनट तक रखा जाय तो उसके सभी व्याधिजन जीवाणु नष्ट हो जाते हैं। यह विधि इसके खोजकर्ता लुई पाश्चर के नाम पर जानी जाती है।
निर्जीवीकरण
निर्जीवीकरण का तात्पर्य दूध को गर्म करके जीवाणु रहित करना है। इसके लिए दूध को 30 मिनट तक 93.3°C - 94.40°C तापक्रम पर रखते हैं। यद्यपि इसमें दूध पूर्णतया निर्जवीकृत तो नहीं हो पाता फिर भी जीवाणुओं की मात्रा कम हो जाती है। इससे दूध को लम्बे समय तक संग्रहित कर रखा जा सकता है।
समांगीकरण
इस विधि में दूध की वसा गोलिकाओं को छोटे-छोटे कणों में खण्डित कर दिया जाता है। ताकि दूध को संग्रह करते समय उसके ऊपर क्रीम लेयर के रूप में एकत्रित न हों सकें और सारे दूध में समान रूप से बिखरे रह सकें। इसके लिए पहले दूध को 37.70°C से 480°C ताप पर गर्म करने के बाद इसका तापक्रम 600°C से 650°C कर दिया जाता है और इस ताप पर इसको समांगीकरण यंत्र द्वारा 2000 से 2500 पौण्ड प्रति वर्ग इंच का दबाव डालते हैं। इस दूध को पुनः 1/10000 इंच के छिद्र से बाहर निकालते हैं फलतः वसा गोलिकाएँ छोटे-छोटे कणों में विभक्त हो जाती हैं।
दुग्ध उत्पाद
क्रीम
यह एक प्रकार का दूध होता है जिसमें वसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा पानी की मात्रा कम हो जाती है। क्रीम में वसा का कोई निर्धारित स्तर नहीं होता है फिर भी बाज़ार में बेचे जाने वाले क्रीम में वसा की मात्रा 45% से अधिक होती है। क्रीम का रंग अधिक पीला होता है। इसका कारण क्रीम में वसा की अधिकता होना है। वसा में विटामिन ए, जो कैरोटिन से प्राप्त होता है पूर्णतः घुलनशील होता है इसलिए कैरोटिन एवं जैंथोफिल के कारण क्रीम का रंग पीला होता है। क्रीम को सामान्य तौर पर गुरुत्वाकर्षण विधि अथवा अपकेन्द्री विधि से दूध से निकाला जाता है।
मक्खन
मक्खन भी एक प्रकार का दुग्ध उत्पाद है जो गाय- भैंस तथा अन्य स्तनधारी पशुओं के दूध या क्रीम को मथने से प्राप्त होता है। इसमें वसा 80% से कम और 20% से अधिक अन्य पदार्थ जैसे-पानी, नमक तथा अन्नानाटोरंजक नहीं होनी चाहिए। साथ ही पानी की मात्रा 16% से अधिक नहीं होनी चाहिए।
दही
दही एक प्रकार का दुग्ध उत्पाद है जो दूध के सामान्य किण्वन से प्राप्त होता है। सामान्य किण्वन में दूध को उबालकर 21 ताप तक ठण्डा करके उसमें उचित मात्रा में जामन मिलाकर प्राप्त किया जाता है। जामन का तात्पर्य दूध में दही जमाने के लिए जामन मिलाने से है। जामन एक प्रकार की दूध से बनी हुई वस्तु है जिसमें केवल वही जीवाणु होते हैं जिनको हम दही में पैदा करना चाहते हैं। दही में वही जीवाणु होने चाहिए जो दूध में दुग्धाम्ल उत्पन्न करते हैं। ये जीवाणु प्रायः स्ट्रेप्टोकोकस अथवा अम्लरागी होते हैं। दही में प्रायः वह सभी तत्त्व मिलते हैं जो कि साधारण दूध में होते हैं। केवल अंतर यह होता है कि दही में पानी एवं दुग्धम की मात्रा साधारण दूध की अपेक्षा कम होती है और साथ-साथ दही में दुग्धाम्ल की मात्रा काफ़ी बढ़ जाती है।
छेना
छेना एक प्रकार का दुग्ध उत्पाद है जो उबलते दूध को अम्ल द्वारा फाड़कर तैयार किया जाता है। दूध को फाड़ने के लिए दुग्धाम्ल या साइट्रिक अम्ल अथवा साइट्रिक फलों का रस प्रयोग में लाया जाता है। छेना तैयार होने के बाद इसे जल से अलग कर लिया जाता है।
आइसक्रीम
यह एक प्रकार का कशावत एवं हिमीकृत खाद्य उत्पाद है जिसको दुग्ध उत्पाद के मिश्रण से बनाया जाता है। इसमें दुग्ध, वसा, वसा रहित ठोस पदार्थ एवं चीनी की एक इच्छित प्रतिशत मात्रा होती है। इसके अतिरिक्त इसमें रंजक पदार्थ भी मिलाया जाता है।
पनीर
पनीर भी छेना की ही तरह दुग्ध उत्पाद है तथा इसे बनाने की विधि भी लगभग छेना की तरह है। इसे भी अम्ल द्वारा फाड़कर बनाया जाता है परंतु पनीर को पनीर जल से अलग करने के बाद लकड़ी के साँचे में भरकर 2 किग्रा. प्रति वर्ग सेमी. का दबाव डालकर शेष जल को पनीर से अलग किया जाता है। फिर इसे आवश्यकता अनुसार टुकड़ों में काटकर 2-3 घण्टे तक ठण्डे जल में डुबो कर रखा जाता है।
घी
घी भी एक प्रकार का दुग्ध उत्पाद ही है। यह मक्खन तथा क्रीम को एक निश्चित ताप पर गर्म करके प्राप्त किया जाता है। इसमें दुग्ध वसा की मात्रा 99% से अधिक होती है। शेष जल और छाछ का होता है। शुद्ध घी में डाइएसीटिल की उपस्थिति के कारण एक विशेष प्रकार की सुवास होती है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान तथा पंजाब घी उत्पादन के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।
खोवा
दूध को गर्म करके उसके पानी को आंशिक रूप से सुखाकर तैयार किया गया उत्पाद खोवा कहलाता है। यह विशुद्ध रूप से भारतीय दुग्ध उत्पाद है। यह मूल रूप से मिठाई आदि बनाने के काम आता है। इस प्रकार खोवा या मावा एक आंशिक शोषित दुग्ध पदार्थ है जो दूध को एक खुले बर्तन में गर्म करके तैयार किया जाता है।
दुग्ध चूर्ण
दूध को पूर्ण वाष्पित करके बनाया गया वह दुग्ध पदार्थ जिसमें नमीं अंश अधिकतम 3% हो, दुग्ध चूर्ण कहलाता है। जब यह संपूर्ण दूध और सप्रेटा दूध से बनाया जाता है तो इसे क्रमशः संपूर्ण दूग्ध चूर्ण और स्किम्ड दुग्ध चूर्ण कहते हैं।
दुग्ध उद्योग
वर्ष | दुग्ध उत्पादन (लाख टन में) | वार्षिक वृद्धि % में |
---|---|---|
1950-1951 | 170 | - |
1960-1961 | 200 | 17.65%*[3] |
1970-1971 | 212 | 0.6.00%* |
1980-1981 | 316 | 32.91%* |
1990-1991 | 539 | 70.56%* |
1991-1992 | 557 | 03.33%+[4] |
1992-1993 | 580 | 04.12%+ |
1993-1994 | 606 | 04.48%+ |
1994-1995 | 638 | 05.28%+ |
1995-1996 | 662 | 03.60%+ |
1996-1997 | 691 | 04.38% + |
1997-1998 | 721 | 04.34%+ |
1998-1999 | 754 | 04.57%+ |
1998-1999 | 754 | 04.57%+ |
1999-2000 | 783 | 03.84%+ |
2000-2001 | 808 | 03.19%+ |
2001-2002 | 844 | 04.45%+ |
2002-2003 | 867 | 02.75%+ |
2003-2004 | 881 | 01.61%+ |
2004-2005 | 92.5 | 04.99%+ |
2005-2006 | 971 | 04.97%+ |
2006-2007 | 1009 | 03.92%+ |
2007-2008 | 1020 | 01.09% |
डेयरी फार्मिंग या दुग्ध उद्योग के लिए पाला जाने वाला मुख्य पशु गाय है। विश्व में अधिकांश गाय पश्चिमी यूरोप में विशेष रूप से ब्रिटेन, नीदरलैण्ड और स्वीट्जरलैण्ड में पायी जाती है। गर्नसी और अलडर्नो गायों में गर्नसी छेटे द्वीप और अलडर्नो इंग्लिश चैनल में स्थित द्वीप समूहों व उत्तरी-पूर्वी फ्रांस के नदी तट पर पायी जाती है। जर्सी दुग्ध उत्पादन प्रजाति की सबसे छोटी गाय होती है। इसके दूध में अत्यधिक उच्च स्तर पर मक्खन पाया जाता है। फ्रीसियन प्रजाति की गाय दुग्ध उत्पादन की सबसे बड़ी गाय है। दुग्धोत्पादक पशुओं में यह सर्वाधिक दुग्ध देने वाली नस्ल है। इसे हॉल्सटीन भी कहा जाता है। गाय की एक अन्य प्रजाति स्विस ब्राउन है। इसके दूध का उपयोग स्विट्जरलैण्ड के प्रसिद्ध चॉकलेटों में किया जाता है। पश्चिमी यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिणी महादेश के शीतोष्ण भाग अत्यधिक दुग्ध उत्पादक क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त बाल्टिक राज्य, बेलारूस, रूस और कज़ाकिस्तान अन्य प्रमुख दुग्ध उत्पादन क्षेत्र है। सं.रा. अमेरिका दूध, मक्खन और पनीर उत्पादन का प्रमुख उत्पादन देश है। वर्तमान में भारत सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया है। नीदरलैण्ड कंडेस्ड और पाउडर दूध का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। न्यूजीलैण्ड मक्खन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
भारत में दुग्ध उद्योग
दूध तथा उससे सम्बन्धित उत्पादों के उद्योग के नाम से जाना जाता हैं तथा दुग्ध उद्योग के विकास के चल रहे कार्यों का अध्ययन दुग्ध विज्ञान के तहत करते हैं। डेरी उद्योग का महत्व सिर्फ़ दूध और इससे बनने वाले पदार्थों तक सीमित नहीं है। इससे लाखों छोटे/मझोले किसानों तथा खेतिहर मज़दूरों को पूरक रोज़गार तथा आय का नियमित स्रोत प्राप्त होता है। भारत में आज भी कृषि राष्ट्रीय आय का एक मुख्य स्रोत है। देश में बढ़ते औद्योगीकरण के कारण देश की राष्ट्रीय आय में कृषि आय नकारात्मक परिवर्तन रहा है। वर्ष 1982-1983, 1988-1989, 1989-1990- एवं 1990-1991 में कुल राष्ट्रीय आय में कृषि का हिस्सा क्रमशः 36.47, 31%, 30.4% एवं 31.6% था। वर्ष 2006-2007 में यह भागीदारी घटकर 18.57% रह गयी है। कृषि आय का एक मुख्य स्रोत डेरी उद्योग है। कुल राष्ट्रीय कृषि उत्पाद का भारी हिस्सा दुग्ध उद्योग से प्राप्त होता है।
विश्व में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में भारत वर्ष 2000 में पहले स्थान पर पहुँच गया। परंतु प्रति व्यक्ति दुग्ध उपलब्धता 246 ग्राम प्रति दिन (2007-08) अनुमानित है जो कि न्यूनतम अनिवार्यता 210 ग्राम से थोड़ा अधिक है। 2006-07 के दौरान कुल दुग्ध उत्पादन 1009 लाख टन हुआ जबकि 2007-08 के दौरान दूध का कुल उत्पादन 1020 लाख टन होने की प्रत्याशा है। भारत में सबसे अधिक दुग्ध उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। दूसरे, तीसरे और चौथे नम्बर पर क्रमशः पंजाब, राजस्थान तथा आन्ध्र प्रदेश व बिहार आते हैं।
वर्ष 2005 के बाद प्रति वर्ष दो करोड़ टन दूध की कमी की आशंका व्यक्त की गयी है। एक गैर-सरकारी संगठन इनिसिएटीव ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2005 के बाद भारत में प्रति वर्ष 2 करोड़ टन दूध की कमी रहेगी। मुंबई के इस संगठन की एक रिपोर्ट ह्वाइट रिएलिटी में कहा गया है कि पिछले वर्षों के अनुसार सरकार की नीति शहरी दूध उपभोक्ताओं पर केन्द्रित है, जहाँ दूध आसानी से उपलब्ध हैं। गाँवों में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता सिर्फ़ 121 ग्राम प्रति दिन है जो उसकी पोषाहार अनुपात का सिर्फ़ 50 प्रतिशत है। विश्व दुग्ध उत्पादन का कुल व्यापार दस हज़ार मिलियन डॉलर है, जिसमें भारत की हिस्सेदारी सिर्फ़ 10 मिलियन डॉलर है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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