कौशल महाजनपद
कौशल / कोसल / कोशल महाजनपद
उत्तरी भारत का प्रसिद्ध जनपद जिसकी राजधानी विश्वविश्रुत नगरी अयोध्या थी। उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िला, गोंडा और बहराइच के क्षेत्र शामिल थे। वाल्मीकि रामायण [1]में इसका उल्लेख है:
कोसलो नाम मुदित: स्फीतो जनपदो महान।
निविष्ट: सरयूतीरे प्रभूत धनधान्यवान् ॥
ऋग्वेद में वर्णन
यह जनपद सरयू (गंगा नदी की सहायक नदी) के तटवर्ती प्रदेश में बसा हुआ था। सरयू के किनारे बसी हुई बस्ती का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में [2] हो सकता है यही बस्ती आगे चलकर अयोध्या के रूप में विकसित हो गयी। इस उद्धरण में चित्ररथ को इस बस्ती का प्रमुख बताया गया है। शायद इसी व्यक्ति का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी है[3]।
रामायण काल
रामायण-काल में कोसल राज्य की दक्षिणी सीमा पर वेदश्रुति नदी बहती थी। श्री रामचंद्रजी ने अयोध्या से वन के लिए जाते समय गोमती नदी को पार करने के पहले ही कोसल की सीमा को पार कर लिया था[4]। वेदश्रुति तथा गोमती पार करने का उल्लेख अयोध्याकाण्ड [5]में है और तत्पश्चात् स्यंदिका या सई नदी को पार करने के पश्चात[6] श्री राम ने पीछे छूटे हुए अनेक जनपदों वाले तथा मनु द्वारा इक्ष्वाकु को दिए गए समृद्धिशाली (कोसल) राज्य की भूमि सीता को दिखाई। जान पड़ता है कि रामायण-काल में ही यह देश दो जनपदों में विभक्त था-
- उत्तर कोसल और
- दक्षिण कोसल
राजा दशरथ की रानी कौशल्या संभवत: दक्षिण कोसल (रायपुर-बिलासपुर के ज़िले, मध्य प्रदेश) की राजकन्या थी। कालिदास ने रघुवंश[7]में अयोध्या को उत्तर कोसल की राजधानी कहा है[8]। रामायण-काल में अयोध्या बहुत ही समृद्धिशाली नगरी थी।
दिग्विजय-यात्रा
महाभारत [9]में भीमसेन की दिग्विजय-यात्रा में कोसल-नरेश बृहद्बल की पराजय का उल्लेख है[10]। अंगुत्तरनिकाय के अनुसार बुद्धकाल से पहले कोसल की गणना उत्तर भारत के सोलह जनपदों में थी। इस समय विदेह और कोसल की सीमा पर सदानीरा (गंडकी) नदी बहती थी। बुद्ध के समय कोसल का राजा प्रसेनजित था, जिसने अपनी पुत्री कोसला का विवाह मगध-नरेश बिंबिसार के साथ किया था। काशी का राज्य जो इस समय कोसल के अंतर्गत था, राजकुमारी को दहेज में उसकी प्रसाधन सामग्री के व्यय के लिए दिया गया था। इस समय कोसल की राजधानी श्रावस्ती में थी। अयोध्या का निकटवर्ती उपनगर साकेत बौद्धकाल का प्रसिद्ध नगर था।
मगध-साम्राज्य में विलीन
जातकों में कोसल के एक अन्य नगर सेतव्या का भी उल्लेख है। छठी और पाँचवी शती ई. पू. में कोसल मगध के समान ही शक्तिशाली राज्य था किन्तु धीरे-धीरे मगध का महत्त्व बढ़ता गया और मौर्य-साम्राज्य की स्थापना के साथ कोसल मगध-साम्राज्य ही का एक भाग बन गया। इसके पश्चात् इतिहास में कोसल की जनपद के रूप में अधिक महत्ता नहीं दिखाई देती यद्यपि इसका नाम गुप्तकाल तक साहित्य में प्रचलित था।
विष्णु पुराण [11]के इस उद्धरण में सम्भवत: गुप्तकाल के पूर्ववर्ती काल में कोसल का अन्य जनपदों के साथ ही देवरक्षित नामक राजा द्वारा शासित होने का वर्णन है। यह दक्षिण कोसल भी हो सकता है। गुप्तसम्राट समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में ‘कोसलक महेंद्र’ या कोसल (दक्षिण कोसल) के महेन्द्र का उल्लेख है जिस पर समुद्रगुप्त ने विजय प्राप्त की थी। कुछ विदेशी विद्वानों (सिलवेन लेवी, जीन प्रेज्रीलुस्की) के मत में कोसल आस्ट्रिक भाषा का शब्द है। आस्ट्रिक लोग भारत में द्रविड़ों से भी पूर्व आकर बसे थे [12]।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ वाल्मीकि रामायण (1.4.5
- ↑ ’उतत्या सद्य आर्या सरयोरिन्द्रपारत: अर्णाचित्ररथा वधी:’, ऋग्वेद 4,30,18
- ↑ ‘सूतश्चित्रथश्चार्य: सचिव: सुचिरोषित: तोषयैनं महार्हैश्च रत्नैर्वस्त्रैर्धनैस्तथा’, अयोध्याकाण्ड 32,17
- ↑ ’एतावाचो मनुष्याणां ग्रामसंवासवस्तिनाम्, श्रृण्वन्नतिययौवीर: कोसलान्कोसलेश्वर:’, अयोध्याकाण्ड 49,8
- ↑ अयोध्याकाण्ड 49,9 और 49,10
- ↑ ’स महीं मनुना राजा दत्तामिक्ष्वाकवे पुरा, स्फीतां राष्ट्रवतां रामो वैदेहीमन्वदर्शयत्’, अयोध्याकाण्ड 49,12
- ↑ रघुवंश 13,62
- ↑ ’सामान्य धात्रीमिव मानसं मे संभावयत्युत्तरकोसलानाम्’, दे. उत्तर कोसल
- ↑ महाभारत सभापर्व 30,1
- ↑ तत: कुमारविषये श्रेणिमन्तमथाजयत् कोसलाधिपतिं चैव बृहद्बलमरिंदम:
- ↑ ‘कोसलांध्रपुंड्रताम्रलिप्तसमुद्रतटपुरीं च देवरक्षितो रक्षिता’, विष्णु पुराण 4,24,64
- ↑ दे. अयोध्या, साकेत, श्रावस्ती, सरयू