वार्ता:मन रोदन -दिनेश सिंह

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

यह पृष्ठ मन रोदन -दिनेश सिंह लेख के सुधार पर चर्चा करने के लिए वार्ता पन्ना है।

  • आपके बहुमूल्य सुझावों का हार्दिक स्वागत है। आपके द्वारा दिये जाने वाले सुझावों एवं जोड़े गए शब्दों की बूँदों से ही यह 'ज्ञान का हिन्दी महासागर' बन रहा है।
  • भारतकोश को आपकी प्रशंसा से अधिक आपके "भूल-सुधार सुझावों" और आपके द्वारा किए गये “सम्पादनों” की प्रतीक्षा रहती है।





सुझाव देने के लिए लॉग-इन अनिवार्य है। आपके सुझाव पर 24 घंटे में अमल किये जाने का प्रयास किया जाता है।
  • कृपया अपने संदेशों पर हस्ताक्षर करें, चार टिल्ड डालकर(~~~~)


खग गीत --------------दिनेश सिंह

उड़ रे पंछी पंख फैलाकर नील गगन में तू ही स्वतन्त्र एक इस जग में कभी इस तरु पर कभी उस तरु पर चाहे_डाल कही पर डेरा_या कर ले कहीं बसेरा नहीं किसी का भय तुझको_नहीं किसी के बंधन में

गूंजे ध्वनि-हो जग विपिन मनोरम बहे मरुत मधुरम मधुरम ले गीत गन्ध चहुर्दिक उत्तम गा पिक मधुर गान पञ्चम स्वर में

उड़ रे पंछी पंख फैलाकर नील गगन में

कर नृत्य मुग्ध हो नर्तकप्रिय बरस उठे बन जल बादल बहे ह्रदय का अन्धकार नव प्रभात हो फिर जग में

जागे जग फिर एक बार हो हरित नवल मसल का संचार हो स्वप्न सजल सुखोन्माद फिर हँसे दिशि_अखिल के कण्ठ से_उठे ध्वनि आनन्द में

उड़ रे पंछी पंख फैलाकर नील गगन में "