धूल पर धूल डालना
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- धूल पर धूल डालना एक शिक्षाप्रद कहानी है।
- राँका-बाँका पति-पत्नी थे। बड़े प्रभु भक्त और विश्वासी थे। सर्वदा नि:स्पृह थे, भगवान ने एक दिन उनकी परीक्षा करने की ठानी।
- एक दिन राँका-बाँका लकड़ी लाने जंगल को जा रहे थे। पति आगे-आगे चल रहे थे। पत्नी पीछे आ रही थी।
- राह में किसी चीज की राँका जी को ठोकर लगी। उन्होंने देखा, सोने की मोहरों से भरी थैली खुली पड़ी है। वे उसे देखकर जल्दी-जल्दी धूल डालकर उसे ढकने लगे। इतने में बाँका जी आ पहुँची। उन्होंने पति से पूछा- 'क्या कर रहे हो ? राँका जी ने पहले तो नहीं बताया, पर विशेष आग्रह करने पर कहा- सोने की मोहरें थीं ।
- मैंने समझा इन पर कहीं तुम्हारा मन न चल जाय। इसलिये इन्हें धूल डालकर ढक रहा था।
- बाँका ने हँसकर कहा-' वाह धूल पर धूल डालने से क्या लाभ है ? सोने में और धूल में भेद ही क्या है, जो आप इन्हें ढक रहे हैं ।'
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