लिबराहन आयोग
लिबराहन आयोग (अंग्रेज़ी: Liberhan Commission) भारत सरकार द्वारा 1992 में अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस की जांच पड़ताल के लिए गठित एक जांच आयोग था, जिसका कार्यकाल लगभग 17 वर्ष लंबा था। भारतीय गृह मंत्रालय के एक आदेश से 16 दिसंबर 1992 को इस आयोग का गठन हुया था। इसका अध्यक्ष भारतीय सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश मनमोहन सिंह लिबराहन को बनाया गया था, जिन्हें 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में ढहाये गये बाबरी मस्जिद के ढांचे और उसके बाद फैले दंगों की जांच का काम सौंपा गया था।
- अयोध्या में 1992 को कारसेवकों द्वारा ढांचा गिराये जाने की घटना की न्यायिक जांच के लिये पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एम. एस. लिबरन की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग गठित किया था।
अआहालांकि, न्यायमूर्ति लिब्रहान ने अवकाश ग्रहण करने के बाद इस आयोग को पूरा वक्त दिया और 17 साल बाद जून, 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। इस दौरान 48 बार जांच आयोग का कार्यकाल बढाया गया।
लिब्रहान जांच आयोग के समक्ष पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव और विश्वनाथ प्रताप सिंह, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, डॉ मुरली मनोहर जोशी, कल्याण सिंह और राम जन्मभूमि आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले अन्य नेताओं की गवाही हुयी।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में छह दिसंबर, 1992 की घटना के लिये भाजपा और संघ परिवार (आरएसएस, विहिप और बजरंग दल) के प्रमुख नेतृत्व को जिम्मेदार पाया था।
उप्र के तत्कालीन मुख्य मंत्री कल्याण सिंह ने शीर्ष अदालत को हलफनामे पर आश्वासन दिया था कि कार सेवकों को विवादित ढांचे को किसी भी तरह की क्षति पहुंचाने की इजाजत नहीं दी जायेगी।
आयोग ने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा कि इस मामले के तथ्यों से यही सबूत सामने आता है कि सत्ता और धन की संभावना से प्रलोभित भाजपा, आरएसएस, विहिप, शिव सेना और बजरंग दल आदि के भीतर ही ऐसे नेता उभर आये थे, जो न तो किसी विचारधारा से निर्देशित थे और न ही उनमें किसी प्रकार का नैतिक संयम था।
न्यायमूर्ति लिब्रहान ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि छह दिसंबर, 1992 को देखा कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून का शासन बनाये रखने की इच्छुक नहीं थी और यह उदासीनता मुख्यमंत्री (कल्याण सिंह) के कार्यालय से लेकर निचले स्तर तक थी।