"प्रयोग:गोविन्द 5": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
| | | | ||
<poem>है भव्य [[भारत]] ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। | <poem>है भव्य [[भारत]] ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। | ||
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥ '''[[मैथिलीशरण गुप्त]]'''</poem> | हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी ॥ <br />'''[[मैथिलीशरण गुप्त]]'''</poem> | ||
|- | |- | ||
| जिस भाषा में [[तुलसीदास]] जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। '''[[महात्मा गाँधी]]''' | | जिस भाषा में [[तुलसीदास]] जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। <br />'''[[महात्मा गाँधी]]''' | ||
|- | |- | ||
| हिन्दी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के [[हृदय]] और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है। '''हजारीप्रसाद द्विवेदी''' | | हिन्दी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के [[हृदय]] और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है। <br />'''हजारीप्रसाद द्विवेदी''' | ||
|- | |- | ||
| हिन्दी को [[गंगा]] नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा। '''[[विनोबा भावे]]''' | | हिन्दी को [[गंगा]] नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा। <br />'''[[विनोबा भावे]]''' | ||
|- | |- | ||
| हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है। | | हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है। <br />'''सुभाष चन्द्र बसु''' | ||
|- | |- | ||
| हिन्दी को [[संस्कृत]] से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं। '''हजारीप्रसाद द्विवेदी''' | | हिन्दी को [[संस्कृत]] से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं। <br />'''हजारीप्रसाद द्विवेदी''' | ||
|} | |} |
13:24, 25 दिसम्बर 2010 का अवतरण
हिन्दी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती। चन्द्रबली पांडेय |
है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी भरी। |
जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती। महात्मा गाँधी |
हिन्दी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है। हजारीप्रसाद द्विवेदी |
हिन्दी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा। विनोबा भावे |
हिन्दी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है। सुभाष चन्द्र बसु |
हिन्दी को संस्कृत से विच्छिन्न करके देखने वाले उसकी अधिकांश महिमा से अपरिचित हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी |