"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/2": अवतरणों में अंतर
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|क्तिन् (ति) || कृति: || तृच् || कर्त् | |क्तिन् (ति) || कृति: || तृच् || कर्त् | ||
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|क्त्वा (त्वा) || पठित्वा || तुमुन् (तुम्) || | |क्त्वा (त्वा) || पठित्वा || तुमुन् (तुम्) || कर्तुम् | ||
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|कु (नु) || गृघ्नु || नङ् || | |कु (नु) || गृघ्नु || नङ् || प्रश्न | ||
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|क्यच् || पुत्रीयति || यत् || | |क्यच् || पुत्रीयति || यत् || गेय, देय | ||
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|क्यप् (य) || कृत्य || र || | |क्यप् (य) || कृत्य || र || हिस्र | ||
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|क्रु (रु) || भीरु|| ल्यप् (य) || | |क्रु (रु) || भीरु|| ल्यप् (य) || आदाय | ||
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|क्वरप् (वर) || नश्वर || लयुट् (अन) || | |क्वरप् (वर) || नश्वर || लयुट् (अन) ||पठनं, करणम | ||
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|क्विप् || स्पृक्, वाक् || वनिप् || | |क्विप् || स्पृक्, वाक् || वनिप् || यज्वन् | ||
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|खच् (अ) || स्तनंधय: || वरच् || | |खच् (अ) || स्तनंधय: || वरच् || ईश्वर | ||
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|घञ् (अ) || त्याग:, पाक: || वुञ् (अक) || | |घञ् (अ) || त्याग:, पाक: || वुञ् (अक) || निन्दक | ||
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|थिनुण् (इन्) || योगिन्, त्यागिन् || वुन् (अक) || | |थिनुण् (इन्) || योगिन्, त्यागिन् || वुन् (अक) || निन्दक | ||
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|घुरच् (उर) || भङ्गुर || श (अ) || | |घुरच् (उर) || भङ्गुर || श (अ) || क्रिया | ||
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|ड (अ) || दूरग: || शतृ (अत्) || | |ड (अ) || दूरग: || शतृ (अत्) ||पचत् | ||
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|डु (उ) || प्रभु: || शानच् (आन या मान) || | |डु (उ) || प्रभु: || शानच् (आन या मान) || शयान, वर्तमान | ||
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|ण (अ) || ग्राह: || ष्ट्रन् (त्र) || | |ण (अ) || ग्राह: || ष्ट्रन् (त्र) || शस्त्रम्, अस्त्रम् | ||
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|णिनि (इन्) || स्थायिन् || | |णिनि (इन्) || स्थायिन् || - || - | ||
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|णमुल (अम्) || स्मारं स्मारं || | |णमुल (अम्) || स्मारं स्मारं || - || - | ||
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|ण्यत् (य) || कार्य || | |ण्यत् (य) || कार्य || - || - | ||
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|असुन् (अस्) || सरस्, तपस् || | |असुन् (अस्) || सरस्, तपस् || - || - | ||
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07:49, 1 अगस्त 2023 का अवतरण
विशेष वक्तव्य
छात्रों की आवश्यकता का विशेष ध्यान रखकर इस कोश को और भी अधिक उपादेय बनाने के लिए प्रायः सभी मूल शब्दों के साथ उनकी संक्षिप्त व्युत्पत्ति दे दी गई है। शब्दों की रचना में उपसर्ग और प्रत्ययों का बड़ा महत्त्व है। इनकी पूरी जानकारी तो व्याकरण के पढ़ने से ही होगी। फिर भी इनका यहाँ दिग्दर्शन अत्यंत लाभदायक होगा।
उपसर्ग - “उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते । प्रहाराहार संहारविहारपरिहारवत् ।”
उपसर्ग धातुओं के पूर्व लगकर उनके अर्थों में विभिन्नता ला देते हैं-
उपसर्ग | उदाहरण | उपसर्ग | उदाहरण |
---|---|---|---|
अति | अत्यधिकम् | दुस् | दुस्तरणम् |
अधि | अधिष्ठानम् | दुर् | दुर्भाग्यम् |
अनु | अनुगमनम् | नि | निदेश: |
अप | अपयश: | निस् | निस्तारणम् |
अपि | पिंघानम् | निर् | निर्धन |
अभि | अभिभाषणम् | परा | पराजय: |
अव | अवतरणम् | परि | परिव्राजक: |
आ | आगमनम् | प्र | प्रबल |
उत् | उत्थाय, उद्गमनम् | प्रति | प्रतिक्रिया |
उप | उपगमनम् | वि | विज्ञानम् |
सु | सुकर |
प्रत्यय - धातुओं के पश्चात् लगने वाले प्रत्यय कृत् प्रत्यय कहलाते हैं। शब्दों के पश्चात् लगने वाले प्रत्यय तद्धित कहलाते हैं।
कृत्प्रत्यय | उदाहरण | कृत्प्रत्यय | उदाहरण |
---|---|---|---|
अ, अङ | पिपठिषा | इत्नु | स्तनयित्नु |
- | छिदा | इष्णुच् | रोचिष्ण |
अच्, अप् | पचः, सरः | उ | जिगमिषुः |
- | कर: | उण् | कारू: |
अण् | कुम्भकार: | ऊक | जागरूक |
अथुच् | वेपथु: | क (अ) | ज्ञ:, द: |
अनीयर् | करणीय, दर्शनीय | कि (इ) | चक्रि |
आलुच् | स्पृहयालु | कुरच् | विदुर |
इक् | पचिः | क्त (त, न) | हत, छिन्न |
क्तवत् (तवत्) | उक्तवत् | ण्वुल् (अक) | पाठक |
क्तिन् (ति) | कृति: | तृच् | कर्त् |
क्त्वा (त्वा) | पठित्वा | तुमुन् (तुम्) | कर्तुम् |
कु (नु) | गृघ्नु | नङ् | प्रश्न |
क्यच् | पुत्रीयति | यत् | गेय, देय |
क्यप् (य) | कृत्य | र | हिस्र |
क्रु (रु) | भीरु | ल्यप् (य) | आदाय |
क्वरप् (वर) | नश्वर | लयुट् (अन) | पठनं, करणम |
क्विप् | स्पृक्, वाक् | वनिप् | यज्वन् |
खच् (अ) | स्तनंधय: | वरच् | ईश्वर |
घञ् (अ) | त्याग:, पाक: | वुञ् (अक) | निन्दक |
थिनुण् (इन्) | योगिन्, त्यागिन् | वुन् (अक) | निन्दक |
घुरच् (उर) | भङ्गुर | श (अ) | क्रिया |
ड (अ) | दूरग: | शतृ (अत्) | पचत् |
डु (उ) | प्रभु: | शानच् (आन या मान) | शयान, वर्तमान |
ण (अ) | ग्राह: | ष्ट्रन् (त्र) | शस्त्रम्, अस्त्रम् |
णिनि (इन्) | स्थायिन् | - | - |
णमुल (अम्) | स्मारं स्मारं | - | - |
ण्यत् (य) | कार्य | - | - |
असुन् (अस्) | सरस्, तपस् | - | - |