"सूचना का अधिकार अधिनियम 2005": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replacement - "जरूर" to "ज़रूर")
No edit summary
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{पुनरीक्षण}}
'''सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Right to Information Act, 2005'' or ''RTI'') [[भारत]] की [[संसद]] द्वारा पारित एक क़ानून है, जो [[12 अक्टूबर]], [[2005]] को लागू हुआ।<ref>[[15 जून]], [[2005]] को इसके क़ानून बनने के 120 वें दिन</ref> इस क़ानून के द्वारा सभी इकाइयों/विभागों, जो [[संविधान]] या अन्य क़ानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है। सरकार से भी कोई भी सूचना मांग सकते हैं। इस क़ानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक सूचना अधिकारी के पद का प्रावधान है। लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें।
==सूचना का अधिकार अधिनियम 2005==
==क्या है सूचना का अधिकार (आरटीआई)==
===क्या है सूचना का अधिकार (RTI)===
[[चित्र:rtigateway_logo.jpg|thumb|300px|सूचना का अधिकार अधिनियम का प्रतीक चिह्न<br />Logo of Right to Information Act (RTI)]]
[[चित्र:rtigateway_logo.jpg|thumb|300px|सूचना का अधिकार अधिनियम का प्रतीक चिह्न<br />Logo of Right to Information Act (RTI)]]
सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act/RTI) भारत की संसद द्वारा पारित एक क़ानून है, जो 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ (15 जून, 2005 को इसके क़ानून बनने के 120 वें दिन)। भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी क़दम बताया जाता है। यह क़ानून भारत के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉडर्‌‌स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है। सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है। यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ ख़रीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है। इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है. यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है।
[[भारत]] में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी क़दम बताया जाता है। यह क़ानून [[भारत]] के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉर्ड्स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। [[जम्मू एवं कश्मीर]] को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है। सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है। यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ ख़रीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है। इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है। यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है।
 
==किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं==
===किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं===
सभी इकाइयों/विभागों, जो [[संविधान]] या अन्य क़ानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है। सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं। सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं। सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं।
सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य क़ानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है। सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं। सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं। सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं।
==किससे मिलेगी सूचना==
 
इस क़ानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग (केन्द्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हर कार्यालय) में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पद का प्रावधान है। लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें। आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है। आवेदन पत्र जमा करने की पावती अवश्य लेनी चाहिए। इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है। यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं। विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी।
===किससे मिलेगी सूचना===
==आरटीआई आवेदन कहाँ जमा करें==
इस क़ानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग (केन्द्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हर कार्यालय) में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ - PIO) के पद का प्रावधान है। लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें। आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है। आवेदन पत्र जमा करने की पावती जरुर लें। इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है।
आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) या एपीआईओ के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं। वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी। यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे। आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो। एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है।  
 
==आवेदन शुल्क==
यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं। विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी।
आवेदन पत्र के साथ निर्धारित फीस देना ज़रूरी है। प्रतिलिपि/नमूना इत्यादि के रूप में सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क देना ज़रूरी है। आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है। हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं। कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये। सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं। यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है। कहीं सूचना पाने के लिए शुल्क 2 रुपये है तो कहीं 5 रुपये। आवेदन शुल्क नकद, बैंक डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है। कुछ राज्यों में कोर्ट फीस टिकटें ख़रीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं। ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा। आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता हैं।
 
====प्रारूप====
===आरटीआई आवेदन कहां जमा करें===
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है। एक सादे [[काग़ज़]] पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं। (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)।
आप अपना आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) या एपीआईओ के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं। वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी। यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे।
 
आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो। और हां एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है।  
 
===कितना आवेदन शुल्क===
आवेदन पत्र के साथ निर्धारित फीस देना ज़रूरी है। प्रतिलिपि/नमूना इत्यादि के रुप मे सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क देना ज़रूरी है। आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है। हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं। कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये। सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं। यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है। कहीं सूचना पाने के लिए शुल्क 2 रुपये है तो कहीं 5 रुपये। आवेदन शुल्क नकद, बैंक डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है। कुछ राज्यों में आप कोर्ट फीस टिकटें ख़रीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं। ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा। आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता हैं।
 
===आवेदन का प्रारूप क्या हो===
केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है। आप एक सादे काग़ज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं। (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)।


आवेदन का प्रारूप - लोक सूचना अधिकारी, विभाग का नाम एवं पता। आवेदक का नाम एवं पता। चाही गई जानकारी का विषय। चाही गई जानकारी की अवधि। चाही गई जानकारी का सम्पू्र्ण विवरण। जानकारी कैसे प्राप्त करना चाहेंगे- प्रतिलिपि/नमूना/लिखित/निरिक्षण। गरीबी रेखा के नीचे आने वाले आवेदक सबूत लगाएं। आवेदन शुल्क का व्यौरा-नकद, बैंक ड्राफ्ट, बैंकर्स चैक या पोस्टल ऑडर। आवेदक के हस्ताक्षर, दिनांक।
आवेदन का प्रारूप - लोक सूचना अधिकारी, विभाग का नाम एवं पता। आवेदक का नाम एवं पता। चाही गई जानकारी का विषय। चाही गई जानकारी की अवधि। चाही गई जानकारी का सम्पू्र्ण विवरण। जानकारी कैसे प्राप्त करना चाहेंगे- प्रतिलिपि/नमूना/लिखित/निरिक्षण। गरीबी रेखा के नीचे आने वाले आवेदक सबूत लगाएं। आवेदन शुल्क का व्यौरा-नकद, बैंक ड्राफ्ट, बैंकर्स चैक या पोस्टल ऑडर। आवेदक के हस्ताक्षर, दिनांक।
 
==सूचना हेतु कारण बताना ज़रूरी नही==
===सूचना के लिए कारण बताना ज़रूरी नही===
कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है। सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा।
कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है। सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा।
 
==कौन-सी सूचनाएँ नहीं मिलेंगी==
===कौन सी सूचनाऍ नहीं मिलेंगी===
जो [[भारत]] की प्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों व विदेशी संबंधों के लिए घातक हो। जिससे आपराधिक जाँच पड़ताल, अपराधियों की गिरफ्तारी या उन पर मुकदमा चलाने में रुकावट पैदा हो। जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड। जिससे किसी व्यक्ति के निजी ज़िन्दगी में दख़ल-अंदाजी हो और उसका जनहीत से कोई लेना देना ना हो।
जो भारत की प्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों व विदेशी संबंधों के लिए घातक हो। जिससे आपराधिक जाँच पड़ताल, अपराधियों की गिरफ्तारी या उन पर मुकदमा चलाने में रुकावट पैदा हो। जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड। जिससे किसी व्यक्ति के निजी ज़िन्दगी में दख़ल-अंदाजी हो और उसका जनहीत से कोई लेना देना ना हो।
==स्वयं प्रकाशित की जाने वाली सूचनाएँ कौन-सी हैं==
 
===स्वयं प्रकाशित की जाने वाली सूचनाऍ कौन सी है===
हर सरकारी कार्यालय की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपने विभाग के विषय में निम्नलिखित सूचनाऍ जनता को स्वयं दें। अपने विभाग के कार्यो और कर्तव्यों का विवरण। अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम, शक्तियाँ एवं वेतन। विभाग के दस्तावेजों की सूची। विभाग का बजट एवं खर्च की व्यौरा। लाभार्थियों की सूची, रियायतें और परमिट लेने वालों का व्यौरा। लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता।
हर सरकारी कार्यालय की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपने विभाग के विषय में निम्नलिखित सूचनाऍ जनता को स्वयं दें। अपने विभाग के कार्यो और कर्तव्यों का विवरण। अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम, शक्तियाँ एवं वेतन। विभाग के दस्तावेजों की सूची। विभाग का बजट एवं खर्च की व्यौरा। लाभार्थियों की सूची, रियायतें और परमिट लेने वालों का व्यौरा। लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता।
 
==सूचना प्राप्ति की समय सीमा==
===सूचना प्राप्ति की समय सीमा===
पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए। सूचनाऍ निर्धारित समय में प्राप्त होंगी - साधारण समस्या से संबंधित आवेदन 30 दिन। जीवन/स्वतंत्रता से संबंधित आवेदन 48 घंटे। तृतीय पक्ष 40 दिन। मानव अधिकार के हनन संबंधित आवेदन 45 दिन।  
पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए।  
==सूचना न मिलने पर प्रथम अपील करें==
 
सूचनाऍ निर्धारित समय में प्राप्त होंगी - साधारण समस्या से संबंधित आवेदन 30 दिन। जीवन/स्वतंत्रता से संबंधित आवेदन 48 घंटे। तृतीय पक्ष 40 दिन। मानव अधिकार के हनन संबंधित आवेदन 45 दिन।  
 
===सूचना न मिलने पर प्रथम अपील करे===
आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया। यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि। ऐसे मामलों में आप सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है। जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें। यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं। दूसरी अपील के लिए 90 दिनों के अन्दर आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा। प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है। प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है। आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है। प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं। प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें। इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं। इस क़ानून में यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रावधान है। भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो।
आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया। यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि। ऐसे मामलों में आप सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है। जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें। यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं। दूसरी अपील के लिए 90 दिनों के अन्दर आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा। प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है। प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है। आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है। प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं। प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें। इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं। इस क़ानून में यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रावधान है। भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो।
 
====द्वितीय अपील क्या है====
===द्वितीय अपील क्या है===
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है। द्वितीय अपील 'सूचना आयोग' के पास दायर की जा सकती है। केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग। प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है। अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं। यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं।
द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है। द्वितीय अपील 'सूचना आयोग' के पास दायर की जा सकती है। केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग। प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है। अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं। यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं।
 
==पीआईओ द्वारा आवेदन न लेने और सूचना ना देने पर सज़ा==
===पीआईओ द्वारा आवेदन न लेने और सूचना ना देने पर सजा===
यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करें, ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं। इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें। पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता। भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो। उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी। यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6 (3) के तहत भेज सकता है। लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से इंकार करता है, सूचना देने से मना करता है या जानबुझकर ग़लत सूचना देता है तो उस पर प्रतिदिन रु. 250 के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है व कुल रु. 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है। पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को नहीं दी जाती है, जुर्माने की राशि सरकारी ख़ज़ाने में जमा हो जाती है। हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है।
यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करें ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं। इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें। पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता। भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो। उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी। यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6 (3) के तहत भेज सकता है।
==लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अपील कैसे करें==
 
लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से इंकार करता है, सूचना देने से मना करता है या जानबुझकर ग़लत सूचना देता है तो उस पर प्रतिदिन रु. 250 के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है व कुल रु. 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है। पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को नहीं दी जाती है, जुर्माने की राशि सरकारी ख़ज़ाने में जमा हो जाती है। हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है।
 
===लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कैसे करे===
अपीलीय अधिकारी, विभाग का नाम एव पता। लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं उसका नाम व पता। आदेश का विवरण जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं। अपील का विषय एवं विवरण। अपीलीय अधिकारी से किस तरह की मदद चाहते हैं। किस आधार पर मदद चाहते हैं। अपीलार्थी का नाम, हस्ताक्षर एवं पता। आदेश, फीस, आवेदन से संबंधित सारे कागजात की प्रतिलिपि।  
अपीलीय अधिकारी, विभाग का नाम एव पता। लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं उसका नाम व पता। आदेश का विवरण जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं। अपील का विषय एवं विवरण। अपीलीय अधिकारी से किस तरह की मदद चाहते हैं। किस आधार पर मदद चाहते हैं। अपीलार्थी का नाम, हस्ताक्षर एवं पता। आदेश, फीस, आवेदन से संबंधित सारे कागजात की प्रतिलिपि।  
==कैसे करें सूचना के लिए आवदेन==
यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है, इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं-


==कैसे करे सूचना के लिए आवदेन एक उदाहरण से समझे==
एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया। उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था। लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया। आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया। आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे-
यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।


एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया। उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था। लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया। आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया। आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे:-
#मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए [[10 नवंबर]], [[2009]] को अर्जी दी थी। कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
#नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था। अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है। कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं, जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
#इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
#अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?


# मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर 2009 को अर्जी दी थी। कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
# नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था। अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है। कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
# इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
# अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?


आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे। लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है। ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा।
आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे। लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है। ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा।
पंक्ति 68: पंक्ति 46:
पहला प्रश्न है :- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं।
पहला प्रश्न है :- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं।


कोई उन्नति हुई ही नहीं है। लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है। वरन् यह काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा।
कोई उन्नति हुई ही नहीं है। लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है। वरन् यह [[काग़ज़]] पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा।


अगला प्रश्न है :- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया।
अगला प्रश्न है :- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया।


यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है। एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति का़फी सतर्क होता है। इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है।
यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है। एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति का़फी सतर्क होता है। इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है।
 
==ऑनलाइन अपील या शिकायत==
==ऑनलाइन करें अपील या शिकायत==
क्या लोक सूचना अधिकारी ने आपको जवाब नहीं दिया या दिया भी तो ग़लत और आधा-अधूरा? क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी आपकी बात नहीं सुनी? ज़ाहिर है, अब आप प्रथम अपील या शिकायत करने की सोच रहे होंगे। अगर मामला केंद्रीय विभाग से जुड़ा हो तो इसके लिए आपको केंद्रीय सूचना आयोग आना पड़ेगा। आप अगर बिहार, उत्तर प्रदेश या देश के अन्य किसी दूरदराज के इलाक़े के रहने वाले हैं तो बार-बार दिल्ली आना आपके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है। लेकिन अब आपको द्वितीय अपील या शिकायत दर्ज कराने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के दफ़्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब आप सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकते हैं। सीआईसी में शिकायत या द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए हीं HTTP:RTI.INDIA.GOV.IN में दिया गया फार्म भरकर जमा करना है। क्लिक करते ही आपकी शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है।
क्या लोक सूचना अधिकारी ने आपको जवाब नहीं दिया या दिया भी तो ग़लत और आधा-अधूरा? क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी आपकी बात नहीं सुनी? ज़ाहिर है, अब आप प्रथम अपील या शिकायत करने की सोच रहे होंगे। अगर मामला केंद्रीय विभाग से जुड़ा हो तो इसके लिए आपको केंद्रीय सूचना आयोग आना पड़ेगा। आप अगर बिहार, उत्तर प्रदेश या देश के अन्य किसी दूरदराज के इलाक़े के रहने वाले हैं तो बार-बार दिल्ली आना आपके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है। लेकिन अब आपको द्वितीय अपील या शिकायत दर्ज कराने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के दफ़्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब आप सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकते हैं। सीआईसी में शिकायत या द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए हीं HTTP:RTI.INDIA.GOV.IN में दिया गया फार्म भरकर जमा करना है। क्लिक करते ही आपकी शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है।


दरअसल यह व्यवस्था भारत सरकार की ई-गवर्नेंस योजना का एक हिस्सा है। अब वेबसाइट के माध्यम से केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है। इतना ही नहीं, आपकी अपील या शिकायत की वर्तमान स्थिति क्या है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, यह जानकारी भी आप घर बैठे ही पा सकते हैं। सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है। वेबसाइट पर जाकर आप सीआईसी के निर्णय, वाद सूची, अपनी अपील या शिकायत की स्थिति भी जांच सकते हैं। इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है। सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद से लगातार यह मांग की जा रही थी कि आरटीआई आवेदन एवं अपील ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जाए, जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज़्यादा द़िक्क़त न उठानी पड़े।
दरअसल यह व्यवस्था भारत सरकार की ई-गवर्नेंस योजना का एक हिस्सा है। अब वेबसाइट के माध्यम से केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है। इतना ही नहीं, आपकी अपील या शिकायत की वर्तमान स्थिति क्या है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, यह जानकारी भी आप घर बैठे ही पा सकते हैं। सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है। वेबसाइट पर जाकर आप सीआईसी के निर्णय, वाद सूची, अपनी अपील या शिकायत की स्थिति भी जांच सकते हैं। इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है। सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद से लगातार यह मांग की जा रही थी कि आरटीआई आवेदन एवं अपील ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जाए, जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज़्यादा द़िक्क़त न उठानी पड़े।
==नेशनल आरटीआई अवार्डः सूचना के सिपाहियों का सम्मान==
==नेशनल आरटीआई अवार्डः सूचना के सिपाहियों का सम्मान==
दिल्ली की एक संस्था पीसीआरएफ ने 2009 में एक अवार्ड की शुरुआत की। मक़सद था उन लोगों की हौसला अफजाई और सम्मान, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर भ्रष्टाचार के ख़िला़फ हल्ला बोला, जिन्होंने सूचना क़ानून का इस्तेमाल करके सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। सच और ईमानदारी से काम करने वाले कई आरटीआई कार्यकर्ता को इसकी क़ीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी। उन सभी देश भक्त लोगो को हम सब का सलाम !!!!!
[[दिल्ली]] की एक संस्था पीसीआरएफ ने [[2009]] में एक अवार्ड की शुरुआत की। मक़सद था उन लोगों की हौसला अफजाई और सम्मान, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर भ्रष्टाचार के ख़िला़फ हल्ला बोला, जिन्होंने सूचना क़ानून का इस्तेमाल करके सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। सच और ईमानदारी से काम करने वाले कई आरटीआई कार्यकर्ताओं को इसकी क़ीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी थी।


{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=आधार1|प्रारम्भिक= |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{संदर्भ ग्रंथ}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==


 
[[Category:भारत के अधिनियम]]
__INDEX__
__INDEX__
[[Category:भारत के अधिनियम]]
__NOTOC__

11:30, 6 जनवरी 2018 का अवतरण

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (अंग्रेज़ी: Right to Information Act, 2005 or RTI) भारत की संसद द्वारा पारित एक क़ानून है, जो 12 अक्टूबर, 2005 को लागू हुआ।[1] इस क़ानून के द्वारा सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य क़ानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है। सरकार से भी कोई भी सूचना मांग सकते हैं। इस क़ानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में जन/लोक सूचना अधिकारी के पद का प्रावधान है। लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें।

क्या है सूचना का अधिकार (आरटीआई)

सूचना का अधिकार अधिनियम का प्रतीक चिह्न
Logo of Right to Information Act (RTI)

भारत में भ्रटाचार को रोकने और समाप्त करने के लिये इसे बहुत ही प्रभावी क़दम बताया जाता है। यह क़ानून भारत के सभी नागरिकों को सरकारी फाइलों/रिकॉर्ड्स में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार देता है। जम्मू एवं कश्मीर को छोड़ कर भारत के सभी भागों में यह अधिनियम लागू है। सरकार के संचालन और अधिकारियों/कर्मचारियों के वेतन के मद में खर्च होने वाली रकम का प्रबंध भी हमारे-आपके द्वारा दिए गए करों से ही किया जाता है। यहां तक कि एक रिक्शा चलाने वाला भी जब बाज़ार से कुछ ख़रीदता है तो वह बिक्री कर, उत्पाद शुल्क इत्यादि के रूप में टैक्स देता है। इसलिए हम सभी को यह जानने का अधिकार है कि उस धन को किस प्रकार खर्च किया जा रहा है। यह हमारे मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा है।

किससे और क्या सूचना मांग सकते हैं

सभी इकाइयों/विभागों, जो संविधान या अन्य क़ानूनों या किसी सरकारी अधिसूचना के अधीन बने हैं अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित या वित्तपोषित किए जाते हों, वहां से संबंधित सूचना मांगी जा सकती है। सरकार से कोई भी सूचना मांग सकते हैं। सरकारी निर्णय की प्रति ले सकते हैं। सरकारी दस्तावेजों का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य का निरीक्षण कर सकते हैं। सरकारी कार्य के पदार्थों के नमूने ले सकते हैं।

किससे मिलेगी सूचना

इस क़ानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग (केन्द्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के हर कार्यालय) में जन/लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) के पद का प्रावधान है। लोक सूचना अधिकारी की ज़िम्मेदारी है कि वह जनता को सूचना उपलब्ध कराएं एवं आवेदन लिखने में उसकी मदद करें। आरटीआई आवेदन इनके पास जमा करना होता है। आवेदन पत्र जमा करने की पावती अवश्य लेनी चाहिए। इसके अलावा कई अधिकारियों को सहायक जन सूचना अधिकारी के पद पर नियुक्त किया जाता है। उनका कार्य जनता से आरटीआई आवेदन लेना और पीआईओ के पास भेजना है। यदि पीआईओ या एपीआईओ का पता लगाने में कठिनाई होती है तो आप आवेदन विभागाध्यक्ष को भेज सकते हैं। विभागाध्यक्ष को वह अर्जी संबंधित पीआईओ के पास भेजनी होगी।

आरटीआई आवेदन कहाँ जमा करें

आरटीआई आवेदन (जिसमें आपकी समस्या से जुड़े सवाल होंगे) संबंधित सरकारी विभाग के लोक सूचना अधिकारी (पीआईओ) या एपीआईओ के पास स्वयं जा कर या डाक के द्वारा जमा करा सकते हैं। केंद्र सरकार के विभागों के मामलों में 629 डाकघरों को एपीआईओ बनाया गया है। मतलब यह कि आप इन डाकघरों में से किसी एक में जाकर आरटीआई काउंटर पर अपना आरटीआई आवेदन और शुल्क जमा करा सकते हैं। वहां आपको एक रसीद भी मिलेगी। यह उस डाकघर का उत्तरदायित्व है कि वह उसे संबंधित पीआईओ के पास भेजे। आरटीआई क़ानून के मुताबिक़ प्रत्येक सरकारी विभाग में एक लोक सूचना अधिकारी को नियुक्त करना आवश्यक है। यह ज़रूरी नहीं है कि आपको उस पीआईओ का नाम मालूम हो। एक बच्चा भी आरटीआई क़ानून के तहत आरटीआई आवेदन दाख़िल कर सकता है।

आवेदन शुल्क

आवेदन पत्र के साथ निर्धारित फीस देना ज़रूरी है। प्रतिलिपि/नमूना इत्यादि के रूप में सूचना पाने के लिए निर्धारित शुल्क देना ज़रूरी है। आवेदन के साथ केंद्र सरकार के विभागों के लिए 10 रुपये का आवेदन शुल्क देना पड़ता है। हालांकि विभिन्न राज्यों में अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं। कहीं आवेदन के लिए शुल्क 10 रुपये है तो कहीं 50 रुपये। सूचना पाने के लिए 2 रुपये प्रति सूचना पृष्ठ केंद्र सरकार के विभागों के लिए देने पड़ते हैं। यह शुल्क विभिन्न राज्यों के लिए अलग-अलग है। कहीं सूचना पाने के लिए शुल्क 2 रुपये है तो कहीं 5 रुपये। आवेदन शुल्क नकद, बैंक डीडी, बैंकर चेक या पोस्टल आर्डर के माध्यम से जमा किया जा सकता है। कुछ राज्यों में कोर्ट फीस टिकटें ख़रीद सकते हैं और अपनी अर्ज़ी पर चिपका सकते हैं। ऐसा करने पर आपका शुल्क जमा माना जाएगा। आप तब अपनी अर्ज़ी स्वयं या डाक से जमा करा सकते हैं। गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों को कोई शुल्क नहीं देना पड़ता हैं।

प्रारूप

केंद्र सरकार के विभागों के लिए कोई निर्धारित प्रारूप नहीं है। एक सादे काग़ज़ पर एक सामान्य अर्ज़ी की तरह ही आवेदन बना सकते हैं और इसे पीआईओ के पास स्वयं या डाक द्वारा जमा कर सकते हैं। (अपने आवेदन की एक प्रति अपने पास निजी संदर्भ के लिए अवश्य रखें)।

आवेदन का प्रारूप - लोक सूचना अधिकारी, विभाग का नाम एवं पता। आवेदक का नाम एवं पता। चाही गई जानकारी का विषय। चाही गई जानकारी की अवधि। चाही गई जानकारी का सम्पू्र्ण विवरण। जानकारी कैसे प्राप्त करना चाहेंगे- प्रतिलिपि/नमूना/लिखित/निरिक्षण। गरीबी रेखा के नीचे आने वाले आवेदक सबूत लगाएं। आवेदन शुल्क का व्यौरा-नकद, बैंक ड्राफ्ट, बैंकर्स चैक या पोस्टल ऑडर। आवेदक के हस्ताक्षर, दिनांक।

सूचना हेतु कारण बताना ज़रूरी नही

कोई कारण या अन्य सूचना केवल संपर्क विवरण (नाम, पता, फोन नंबर) के अतिरिक्त देने की ज़रूरत नहीं है। सूचना क़ानून स्पष्टतः कहता है कि प्रार्थी से संपर्क विवरण के अतिरिक्त कुछ नहीं पूछा जाएगा।

कौन-सी सूचनाएँ नहीं मिलेंगी

जो भारत की प्रभुता, अखण्डता, सुरक्षा, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों व विदेशी संबंधों के लिए घातक हो। जिससे आपराधिक जाँच पड़ताल, अपराधियों की गिरफ्तारी या उन पर मुकदमा चलाने में रुकावट पैदा हो। जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा खतरे में पड। जिससे किसी व्यक्ति के निजी ज़िन्दगी में दख़ल-अंदाजी हो और उसका जनहीत से कोई लेना देना ना हो।

स्वयं प्रकाशित की जाने वाली सूचनाएँ कौन-सी हैं

हर सरकारी कार्यालय की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपने विभाग के विषय में निम्नलिखित सूचनाऍ जनता को स्वयं दें। अपने विभाग के कार्यो और कर्तव्यों का विवरण। अधिकारी एवं कर्मचारियों के नाम, शक्तियाँ एवं वेतन। विभाग के दस्तावेजों की सूची। विभाग का बजट एवं खर्च की व्यौरा। लाभार्थियों की सूची, रियायतें और परमिट लेने वालों का व्यौरा। लोक सूचना अधिकारी का नाम व पता।

सूचना प्राप्ति की समय सीमा

पीआईओ को आवेदन देने के 30 दिनों के भीतर सूचना मिल जानी चाहिए। यदि आवेदन सहायक पीआईओ को दिया गया है तो सूचना 35 दिनों के भीतर मिल जानी चाहिए। सूचनाऍ निर्धारित समय में प्राप्त होंगी - साधारण समस्या से संबंधित आवेदन 30 दिन। जीवन/स्वतंत्रता से संबंधित आवेदन 48 घंटे। तृतीय पक्ष 40 दिन। मानव अधिकार के हनन संबंधित आवेदन 45 दिन।

सूचना न मिलने पर प्रथम अपील करें

आपने सूचना पाने के लिए किसी सरकारी विभाग में आवेदन किया है, 30 दिन बीत जाने के बाद भी आपको सूचना नहीं मिली या मिली भी तो ग़लत और आधी-अधूरी अथवा भ्रामक या फिर सूचना का अधिकार क़ानून की धारा 8 के प्रावधानों को तोड़-मरोड़ कर आपको सूचना देने से मना कर दिया गया। यह कहा गया कि फलां सूचना दिए जाने से किसी के विशेषाधिकार का हनन होता है या फलां सूचना तीसरे पक्ष से जुड़ी है इत्यादि। ऐसे मामलों में आप सूचना का अधिकार अधिनियम के अनुच्छेद 19 (1) के तहत एक अपील दायर की जा सकती है। जब आप आवेदन जमा करते हैं तो उसके 30 दिनों बाद, लेकिन 60 दिनों के अंदर लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी, जो सूचना क़ानून के तहत प्रथम अपीलीय अधिकारी होता है, के यहां अपील करें। यदि आप द्वारा अपील करने के बाद भी कोई सूचना या संतोषजनक सूचना नहीं मिलती है या आपकी प्रथम अपील पर कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप दूसरी अपील कर सकते हैं। दूसरी अपील के लिए 90 दिनों के अन्दर आपको राज्य सूचना आयोग या केंद्रीय सूचना आयोग में जाना होगा। प्रथम अपील के लिए आमतौर पर कोई फीस निर्धारित नहीं है। हालांकि कुछ राज्य सरकारों ने अपने यहां प्रथम अपील के लिए भी शुल्क निर्धारित कर रखा है। प्रथम अपील के लिए कोई निश्चित प्रारूप (फॉर्म) नहीं होता है। आप चाहें तो एक सादे काग़ज़ पर भी लिखकर प्रथम अपील तैयार कर सकते हैं। हालांकि इस मामले में भी कुछ राज्य सरकारों ने प्रथम अपील के लिए एक ख़ास प्रारूप तैयार कर रखा है। प्रथम अपील आप डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से संबंधित कार्यालय में जाकर जमा करा सकते हैं। प्रथम अपील के साथ आरटीआई आवेदन, लोक सूचना अधिकारी द्वारा उपलब्ध कराई गई सूचना (यदि उपलब्ध कराई गई है तो) एवं आरटीआई आवेदन के साथ दिए गए शुल्क की रसीद आदि की फोटोकॉपी लगाना न भूलें। इस क़ानून के प्रावधानों के अनुसार, यदि लोक सूचना अधिकारी आपके द्वारा मांगी गई सूचना 30 दिनों के भीतर उपलब्ध नहीं कराता है तो आप प्रथम अपील में सारी सूचनाएं नि:शुल्क उपलब्ध कराने के लिए भी कह सकते हैं। इस क़ानून में यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रावधान है। भले ही सूचना हज़ार पन्नों की क्यों न हो।

द्वितीय अपील क्या है

द्वितीय अपील आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने का अंतिम विकल्प है। द्वितीय अपील 'सूचना आयोग' के पास दायर की जा सकती है। केंद्र सरकार के विभागों के विरुद्ध केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) है और राज्य सरकार के विभागों के विरुद्ध राज्य सूचना आयोग। प्रथम अपील के निष्पादन के 90 दिनों के भीतर या उस तारीख के 90 दिनों के भीतर कि जब तक प्रथम अपील निष्पादित होनी थी, द्वितीय अपील दायर की जा सकती है। अगर राज्य सूचना आयोग में जाने पर भी सूचना नहीं मिले तो एक और स्मरणपत्र राज्य सूचना आयोग में भेज सकते हैं। यदि फिर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है तो आप इस मामले को लेकर हाईकोर्ट जा सकते हैं।

पीआईओ द्वारा आवेदन न लेने और सूचना ना देने पर सज़ा

यदि पीआईओ या संबंधित विभाग आरटीआई आवेदन स्वीकार न करें, ऐसी स्थिति में आप अपना आवेदन डाक द्वारा भेज सकते हैं। इसकी औपचारिक शिक़ायत संबंधित सूचना आयोग को भी अनुच्छेद 18 के तहत करें। पीआईओ आरटीआई आवेदन लेने से किसी भी परिस्थिति में मना नहीं कर सकता। भले ही वह सूचना उसके विभाग/कार्यक्षेत्र में न आती हो। उसे अर्जी स्वीकार करनी होगी। यदि आवेदन-अर्जी उस पीआईओ से संबंधित न हो तो वह उसे उपायुक्त पीआईओ के पास पांच दिनों के भीतर अनुच्छेद 6 (3) के तहत भेज सकता है। लोक सूचना अधिकारी आवेदन लेने से इंकार करता है, सूचना देने से मना करता है या जानबुझकर ग़लत सूचना देता है तो उस पर प्रतिदिन रु. 250 के हिसाब से सूचना आयुक्त द्वारा जुर्माना लगाया जा सकता है व कुल रु. 25,000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। यह जुर्माना उस अधिकारी के निजी वेतन से काटा जाता है। पीआईओ पर लगे जुर्माने की राशि आवेदक को नहीं दी जाती है, जुर्माने की राशि सरकारी ख़ज़ाने में जमा हो जाती है। हालांकि अनुच्छेद 19 के तहत, आवेदक मुआवज़ा मांग सकता है।

लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अपील कैसे करें

अपीलीय अधिकारी, विभाग का नाम एव पता। लोक सूचना अधिकारी जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं उसका नाम व पता। आदेश का विवरण जिसके विरुद्ध अपील कर रहे हैं। अपील का विषय एवं विवरण। अपीलीय अधिकारी से किस तरह की मदद चाहते हैं। किस आधार पर मदद चाहते हैं। अपीलार्थी का नाम, हस्ताक्षर एवं पता। आदेश, फीस, आवेदन से संबंधित सारे कागजात की प्रतिलिपि।

कैसे करें सूचना के लिए आवदेन

यह क़ानून कैसे मेरे कार्य पूरे होने में मेरी सहायता करता है? कोई अधिकारी क्यों अब तक आपके रुके काम को, जो वह पहले नहीं कर रहा था, करने के लिए मजबूर होता है और कैसे यह क़ानून आपके काम को आसानी से पूरा करवाता है, इसे समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं-

एक आवेदक ने राशन कार्ड बनवाने के लिए आवेदन किया। उसे राशन कार्ड नहीं दिया जा रहा था। लेकिन जब उसने आरटीआई के तहत आवेदन दिया। आवेदन डालते ही, उसे एक सप्ताह के भीतर राशन कार्ड दे दिया गया। आवेदक ने निम्न सवाल पूछे थे-

  1. मैंने एक डुप्लीकेट राशन कार्ड के लिए 10 नवंबर, 2009 को अर्जी दी थी। कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक प्रगति रिपोर्ट बताएं अर्थात मेरी अर्जी किस अधिकारी के पास कब पहुंची, उस अधिकारी के पास यह कितने समय रही और उसने उतने समय तक मेरी अर्जी पर क्या कार्रवाई की?
  2. नियमों के अनुसार, मेरा कार्ड कितने दिनों के भीतर बन जाना चाहिए था। अब तीन माह से अधिक का समय हो गया है। कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं, जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया?
  3. इन अधिकारियों के विरुद्ध अपना कार्य न करने व जनता के शोषण के लिए क्या कार्रवाई की जाएगी? वह कार्रवाई कब तक की जाएगी?
  4. अब मुझे कब तक अपना कार्ड मिल जाएगा?


आमतौर पर पहले ऐसे आवेदन कूड़ेदान में फेंक दिए जाते थे। लेकिन सूचना क़ानून के तहत दिए गए आवेदन के संबंध में यह क़ानून कहता है कि सरकार को 30 दिनों में जवाब देना होगा। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, उनके वेतन में कटौती की जा सकती है। ज़ाहिर है, ऐसे प्रश्नों का उत्तर देना अधिकारियों के लिए आसान नहीं होगा।

पहला प्रश्न है :- कृपया मुझे मेरी अर्जी पर हुई दैनिक उन्नति बताएं।

कोई उन्नति हुई ही नहीं है। लेकिन सरकारी अधिकारी यह इन शब्दों में लिख ही नहीं सकते कि उन्होंने कई महीनों से कोई कार्रवाई नहीं की है। वरन् यह काग़ज़ पर ग़लती स्वीकारने जैसा होगा।

अगला प्रश्न है :- कृपया उन अधिकारियों के नाम व पद बताएं जिनसे आशा की जाती है कि वे मेरी अर्जी पर कार्रवाई करते व जिन्होंने ऐसा नहीं किया।

यदि सरकार उन अधिकारियों के नाम व पद बताती है, तो उनका उत्तरदायित्व निर्धारित हो जाता है। एक अधिकारी अपने विरुद्ध इस प्रकार कोई उत्तरदायित्व निर्धारित होने के प्रति का़फी सतर्क होता है। इस प्रकार, जब कोई इस तरह अपनी अर्जी देता है, उसका रुका कार्य संपन्न हो जाता है।

ऑनलाइन अपील या शिकायत

क्या लोक सूचना अधिकारी ने आपको जवाब नहीं दिया या दिया भी तो ग़लत और आधा-अधूरा? क्या प्रथम अपीलीय अधिकारी ने भी आपकी बात नहीं सुनी? ज़ाहिर है, अब आप प्रथम अपील या शिकायत करने की सोच रहे होंगे। अगर मामला केंद्रीय विभाग से जुड़ा हो तो इसके लिए आपको केंद्रीय सूचना आयोग आना पड़ेगा। आप अगर बिहार, उत्तर प्रदेश या देश के अन्य किसी दूरदराज के इलाक़े के रहने वाले हैं तो बार-बार दिल्ली आना आपके लिए मुश्किल भरा काम हो सकता है। लेकिन अब आपको द्वितीय अपील या शिकायत दर्ज कराने के लिए केंद्रीय सूचना आयोग के दफ़्तर के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। अब आप सीधे सीआईसी में ऑनलाइन द्वितीय अपील या शिकायत कर सकते हैं। सीआईसी में शिकायत या द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए हीं HTTP:RTI.INDIA.GOV.IN में दिया गया फार्म भरकर जमा करना है। क्लिक करते ही आपकी शिकायत या अपील दर्ज हो जाती है।

दरअसल यह व्यवस्था भारत सरकार की ई-गवर्नेंस योजना का एक हिस्सा है। अब वेबसाइट के माध्यम से केंद्रीय सूचना आयोग में शिकायत या द्वितीय अपील भी दर्ज की जा सकती है। इतना ही नहीं, आपकी अपील या शिकायत की वर्तमान स्थिति क्या है, उस पर क्या कार्रवाई की गई है, यह जानकारी भी आप घर बैठे ही पा सकते हैं। सीआईसी में द्वितीय अपील दर्ज कराने के लिए वेबसाइट में प्रोविजनल संख्या पूछी जाती है। वेबसाइट पर जाकर आप सीआईसी के निर्णय, वाद सूची, अपनी अपील या शिकायत की स्थिति भी जांच सकते हैं। इस पहल को सरकारी कार्यों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है। सूचना का अधिकार क़ानून लागू होने के बाद से लगातार यह मांग की जा रही थी कि आरटीआई आवेदन एवं अपील ऑनलाइन करने की व्यवस्था की जाए, जिससे सूचना का अधिकार आसानी से लोगों तक अपनी पहुंच बना सके और आवेदक को सूचना प्राप्त करने में ज़्यादा द़िक्क़त न उठानी पड़े।

नेशनल आरटीआई अवार्डः सूचना के सिपाहियों का सम्मान

दिल्ली की एक संस्था पीसीआरएफ ने 2009 में एक अवार्ड की शुरुआत की। मक़सद था उन लोगों की हौसला अफजाई और सम्मान, जिन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगाकर भ्रष्टाचार के ख़िला़फ हल्ला बोला, जिन्होंने सूचना क़ानून का इस्तेमाल करके सरकारी व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। सच और ईमानदारी से काम करने वाले कई आरटीआई कार्यकर्ताओं को इसकी क़ीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 15 जून, 2005 को इसके क़ानून बनने के 120 वें दिन

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख