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'''बसंती देवी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Basanti Devi'', जन्म: [[23 मार्च]], [[1880]], [[कोलकाता]]; मृत्यु: [[1974]]) [[भारत]] की स्वतंत्रता सेनानी और [[बंगाल]] के प्रसिद्ध नेता [[चित्तरंजन दास]] की पत्नी थीं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=518|url=}}</ref> [[महात्मा गाँधी|राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] द्वारा आरंभ किए गये '[[असहयोग आंदोलन]]' में भी ये सम्मिलित हुईं। लोगों में खादी का प्रचार करने के अभियोग में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
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==परिचय==
==परिचय==
बंगाल के प्रसिद्ध नेता चित्तरंजन दास की पत्नी बसंती देवी का जन्म 23 मार्च, 1880 ई. को कोलकाता (पूर्व नाम कलकत्ता) में हुआ। बचपन में ये अपने पिता के साथ [[असम]] में रहती थीं तथा आगे की शिक्षा के लिए कोलकाता आ गई। यहीं [[1897]] में इनका बैरिस्टर चित्तरंजन दास के साथ [[विवाह]] हुआ।
असम के प्रमुख राजनैतिक नेता बसंत कुमार दास का जन्म 2 नवम्बर,1883 ई. को सिलहट ज़िले के एक गरीब [[परिवार]] में हुआ था। इन्होंने अपने परिश्रम से वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और सिलहट में वकालत करने लगे।
==आंदोलन में भाग==
==आंदोलन में भाग==
बसंती देवी भी स्वतंत्रता सेनानी थीं, जब [[1917]] में चित्तरंजन दास राजनीति में कूद पड़े तो बसंती देवी ने भी पूरी तरह से उनका साथ दिया। [[गांधी जी]] द्वारा आरंभ किए गये '[[असहयोग आंदोलन]]' में ये सम्मिलित हुईं। इनके द्वारा लोगों में खादी का प्रचार करने के अभियोग में इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और इसके बाद ही [[1921]] में इनके पति और पुत्र भी पकड़ लिये गये। लोगों में खादी के प्रचार के अभियोग में बसंती देवी की गिरफ्तारी का लोगों ने बहुत विरोध किया। देश के अनेक प्रमुख बैरिस्टरों ने भी इसके विरोध में आवाज़ उठाई और मामला [[वाइसराय]] तक ले गए। जहां इसके बाद सरकार ने इन्हें रिहा कर दिया।
बसंत कुमार दास ने अपनी वकालत छोड़ कर [[1921]] में [[कांग्रेस]] में सम्मिलित हो गये और [[असहयोग आंदोलन]] में भाग लिया। इसके बाद ये [[1923]] में [[पं. मोतीलाल नेहरू]] और सी. आर. दास की '[[स्वराज्य पार्टी]]' में सम्मिलित हो गए। स्वराज्य पार्टी के टिकट पर [[1926]] से [[1929]] तक असम कौंसिल के सदस्य रहें और फिर कांग्रेस के निश्चय पर त्यागपत्र दे दिया। [[1932]] में इन्हें गिफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष की सजा हुई।
 
==राजनीतिक जीवन==
जेल से बाहर आने पर भी बसंती देवी ने विदेशी शासन का विरोध जारी रखा। ये देश के विभिन्न स्थानों में गईं और लोगों को चित्तरंजन दास के राजनीतिक विचारों से परिचित कराया। [[1922]] में चित्तरंजन दास, [[मौलाना अबुल कलाम आज़ाद]], [[सुभाष चंद्र बोस]] आदि गिरफ्तार कर लिए गए। चित्तरंजन दास को चिटगांव राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता करनी थी। परंतु उनकी गिरफ्तारी पर बसंती देवी ने स्वयं इस सम्मेलन की अध्यक्षता की।
बसंत कुमार दास [[1937]] में असम असेम्बली के सदस्य चुने गए और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उसके स्पीकार बने। इस पद पर उन्होंने दलीय पक्षपात की बजाय संसदीय लोगतंत्र की परंपरा का निर्वाह किया। इसके लिए कुछ लोंगों ने इनकी आलोचना भी की थी। [[1946]] में ये [[असम]] के गृहमंत्री थे। उसी समय सिलहट में 'जनमत संग्रह' हुआ कि यह ज़िला [[भारत]] में बना रहेगा या [[पाकिस्तान]] में जाएगा। जब जनमत संग्रह का परिणाम पाकिस्तान के पक्ष में गया तो गृहमंत्री के रूप में फिर बसंत कुमार दास की आलोचना हुई। बाद में पता चला कि [[कांग्रेस]] का उच्च नेतृत्व पहले ही 'सिलहट' को भारत से अलग करने के लिए मन बना चुका था। असम के बहुत से नेता भी, असम में बंगालियों का प्रभाव कम करने के लिए 'सिलहट' के अलग होने के पक्ष में थे। विभाजन के बाद, अन्य नेताओं की भाँति, बसंत कुमार दास भारत नहीं आए। ये हिन्दू अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए पूर्वी पाकिस्तान में ही रहे। वहां की राजनीति में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। ये ईस्ट पाकिस्तान नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और वहां की विधान सभा में कुछ समय तक विरोधी दल के नेता रहे। फिर वित्त मंत्री तथा शिक्षा और श्रम मंत्री बने। [[1958]] में ये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के अध्यक्ष चुने गए। [[1960]] ई. में इनका देहांत हो गया।
==मृत्यु==
[[1925]] में [[चित्तरंजन दास|देशबंधु चित्तरंजन दास]] का देहांत हो गया। इसके बाद भी बसंती देवी बराबर [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] में भाग लेती रहीं और [[1974]] में इनका देहांत हो गया।

11:59, 27 नवम्बर 2016 का अवतरण

कविता बघेल 2
बसंत कुमार दास
बसंत कुमार दास
पूरा नाम बसंत कुमार दास
जन्म 2 नवम्बर, 1883
जन्म भूमि सिलहट ज़िला
मृत्यु 1960
मृत्यु स्थान असम
नागरिकता भारतीय
पार्टी कांग्रेस
अन्य जानकारी बसंत कुमार दास 1937 में असम असेम्बली के सदस्य चुने गए और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उसके स्पीकार बने। इस पद पर उन्होंने दलीय पक्षपात की बजाय संसदीय लोगतंत्र की परंपरा का निर्वाह किया।

बसंत कुमार दास (अंग्रेज़ी: Basanta Kumar Das, जन्म: 2 नवम्बर, 1883; मृत्यु: 1960) असम के प्रमुख राजनैतिक नेता तथा गृहमंत्री थे। ये अधिवक्ता भी थे परंतु ये अपनी वकालत छोड़ कर आंदोलन में सम्मिलित हो गयें। जिस कारण ये जेल भी गये।[1]

परिचय

असम के प्रमुख राजनैतिक नेता बसंत कुमार दास का जन्म 2 नवम्बर,1883 ई. को सिलहट ज़िले के एक गरीब परिवार में हुआ था। इन्होंने अपने परिश्रम से वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और सिलहट में वकालत करने लगे।

आंदोलन में भाग

बसंत कुमार दास ने अपनी वकालत छोड़ कर 1921 में कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इसके बाद ये 1923 में पं. मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास की 'स्वराज्य पार्टी' में सम्मिलित हो गए। स्वराज्य पार्टी के टिकट पर 1926 से 1929 तक असम कौंसिल के सदस्य रहें और फिर कांग्रेस के निश्चय पर त्यागपत्र दे दिया। 1932 में इन्हें गिफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष की सजा हुई।

राजनीतिक जीवन

बसंत कुमार दास 1937 में असम असेम्बली के सदस्य चुने गए और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उसके स्पीकार बने। इस पद पर उन्होंने दलीय पक्षपात की बजाय संसदीय लोगतंत्र की परंपरा का निर्वाह किया। इसके लिए कुछ लोंगों ने इनकी आलोचना भी की थी। 1946 में ये असम के गृहमंत्री थे। उसी समय सिलहट में 'जनमत संग्रह' हुआ कि यह ज़िला भारत में बना रहेगा या पाकिस्तान में जाएगा। जब जनमत संग्रह का परिणाम पाकिस्तान के पक्ष में गया तो गृहमंत्री के रूप में फिर बसंत कुमार दास की आलोचना हुई। बाद में पता चला कि कांग्रेस का उच्च नेतृत्व पहले ही 'सिलहट' को भारत से अलग करने के लिए मन बना चुका था। असम के बहुत से नेता भी, असम में बंगालियों का प्रभाव कम करने के लिए 'सिलहट' के अलग होने के पक्ष में थे। विभाजन के बाद, अन्य नेताओं की भाँति, बसंत कुमार दास भारत नहीं आए। ये हिन्दू अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए पूर्वी पाकिस्तान में ही रहे। वहां की राजनीति में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। ये ईस्ट पाकिस्तान नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और वहां की विधान सभा में कुछ समय तक विरोधी दल के नेता रहे। फिर वित्त मंत्री तथा शिक्षा और श्रम मंत्री बने। 1958 में ये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के अध्यक्ष चुने गए। 1960 ई. में इनका देहांत हो गया।

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 517 |